करगिल के भीषण युद्ध को 25 साल पूरे हो चुके हैं, इस एक युद्ध में अटल विश्वास टूटा था, पाकिस्तान की नापाक साजिश से पर्दा उठा था और भारतीय जवानों का शौर्य सर चढ़कर बोला था। इस युद्ध में ऊंची बर्फीली चोटियों पर सैनिकों ने जो जज्बा दिखाया, जिस तरह से दुश्मनों का सामना किया, आज भी उन्हें सुनहरे अक्षरों में लिखा भी जाता है और याद भी किया जाता है। लेकिन क्या आप लोग जानते हैं कि सैनिकों के अलावा भी कई ऐसे हीरो रहे जिनका इतिहास जिक्र नहीं करता लेकिन करगिल में उनकी भूमिका सक्रिय, सरहानीय और साहसी रही थी।
करगिल युद्ध में सेना की सबसे बड़ी चुनौती
अब लेखिका रचना बिष्ट ने अपनी किताब ‘करगिल द अनटोल्ड स्टोरी’ में एक ऐसे ही किस्से के बारे में काफी विस्तार से बताया है। असल में जिस समय करगिल में युद्ध छिड़ा हुआ था, भौगोलिक स्थिति भारत के लिहाज से बिल्कुल भी मुफीद नहीं थी ,पाकिस्तान के फौजी हमसे ज्यादा ऊंचाई पर डटे हुए थे और लगातार ऊपर से ही बमबारी-गोलीबारी कर रहे थे। इसके ऊपर किस तरह समय रहते फौजियों को हथियार मिलते रहें, यह सोचना भी जरूरी था। उस समय करगिल सेक्टर में ऑल इंडिया रेडियो का एक स्टेशन हुआ करता था, उस स्टेशन की एक महिला डायरेक्टर थीं- Tsering Angmo Shunu
लेह के ‘लड़ाके’ बने सेना की ताकत
अब दो तरह से उनकी तरफ से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया जा रहा था। युद्ध की हर जरूरी जानकारी तो उनकी तरफ से मिल ही रही थी, इसके ऊपर समय रहते हर जरूरी हथियार,खाना सेना को मिलता रहे, इसका ख्याल भी उनकी तरफ से रखा जा रहा था। असल में उस समय सेना के पास उस तरह के संसाधन नहीं थे कि इतनी ऊंची चोटियों तक जल्द से जल्द हथियार पहुंच सकें। ऐसे में ऑल इंडिया रेडियो की उस समय की स्टेशन डायरेक्टर ने लेह के सभी माता-पिताओं से अपील की कि वे अपने बच्चों को देश सेवा के लिए सेना के साथ भेज दें। उनका उद्देश्य यह था कि वो बच्चे सेना की मदद करेंगे, समय रहते हथियार पहुंचाएंगे, जरूरत पड़ने पर खाने की सामग्री भी ऊपर तक लेकर जाएंगे।
Kargil Vijay Diwas: वो शहीद जिसने 22 दिन तक झेली PAK सेना की हैवानियत
एक पुकार और 900 की फौज तैयार
अब उस महिला की सबसे बड़ी बात यह थी उसने सिर्फ लेह के दूसरे बच्चों को सेना के साथ जोड़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया था बल्कि खुद के बच्चे को भी वहां भेजने का फैसला किया। उनका तर्क था कि अगर उनका खुद का बच्चा सेना की मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ेगा तो दूसरे बच्चों को किस मुंह से वे मदद करने के लिए कहेंगी। इस जज्बे की वजह से भारी संख्या में युवा सेना के साथ करगिल युद्ध के दौरान जुड़े थे। किसी को भी अलग से कोई सम्मान या अवार्ड नहीं मिला, लेकिन कह सकते हैं कि वे भी वो नायक थे जिनकी वैसे तो सक्रिय भूमिका रही लेकिन इतिहास उन्हें भूल गया
पाक करता रहा गोलीबारी, ना डरी, ना झुकीं
यहां पर Tsering Angmo Shunu की यह वाली बात भी पता होनी चाहिए कि उनका जहां पर स्टेशन मौजूद था, पाकिस्तान की सेना की तरफ से लगातार गोलीबारी हो रही थी। लेकिन उनकी रणनीति एकदम स्पष्ट थी। अगर गोलीबारी शुरू होती, वे तुरंत गाड़ी में बैठतीं और दूर एक दूसरे इलाके में चली जातीं। जैसे ही पाकिस्तान की तरफ से फायरिंग रुकती, वे वापस अपना काम करने के लिए उस स्टेशन में पहुंच जातीं। युद्ध दौरान लगातार इसी तरह से आने और जाने का सिलसिला जारी रहा, जान को जोखिम में डालकर उन्होंने हर जरूरी जानकारी लोगों तक भी पहुंचाई और सेना की भी एक बड़ी मदद की।
बताया जाता है उनकी एक पुकार की वजह से दो हफ्तों के अंदर में 900 से ज्यादा ऐसे नौजवान खड़े हो गए थे जो हर कीमत पर देश सेवा के लिए तैयार थे और अपनी जान भी देने को पूरी तरह सज दिखाई दे रहे थे। उन लड़कों का इस्तेमाल न सिर्फ जरूरी सामान ले जाने के लिए किया गया बल्कि जब कोई जवान शहीद हो रहा था, उसके शव को भी सम्मानजनक तरीके से वापस लाने में इन्हीं लड़कों की अहम जिम्मेदारी रही।
एक सलाम जरूरी!
रचना बिष्ट ने अपनी किताब में बताया है कि उस ऑल इंडिया रेडियो की स्टेशन डायरेक्टर की जिम्मेदारी सिर्फ सेना की मदद करना नहीं था बल्कि पाकिस्तान की एक नापाक साजिश को भी बेनकाब करना था। असल में करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की तरफ से लगातार फर्जी प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा था, ज्यादा भारतीय सैनिकों की मौत हो गई- इस प्रकार के दावे लगातार उनके रेडियो स्टेशन द्वारा किए जा रहे थे। ऐसे में शाम 5:00 बजे की अपनी एक बुलेटिन में हर बार उनकी तरफ से उन दावों को खारिज किया गया था और सेना की असल सच्चाई बताई जा रही थी। इसके ऊपर भारतीय सैनिकों को भी जो संदेश दिए जा रहे थे, उसमें उनके स्टेशन की एक बड़ी भूमिका थी। देश के वीर सपूतों को लगातार इस बात का एहसास हो रहा था कि हर नागरिक इस मुश्किल समय में उनके साथ डटकर खड़ा है। ऐसे में आज Tsering Angmo Shunu को भी एक सलाम जरूर करना चाहिए।