तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की राजनीति इस समय एक बड़े सियासी झटके से उबरने की कोशिश कर रही है। बीआरएस ने अपना इकलौता राज्य तेलंगाना कांग्रेस के हाथों गंवा दिया है। 10 साल तक सरकार चलाने के बाद केसीआर को इस राज्य में हैट्रिक दोहराने का मौका नहीं मिला। ये चूक अब सिर्फ तेलंगाना तक सीमित नहीं रह गई है, नेशनल लेवल पर इसका असर दिखने लगा है।
कैसे टूटा राष्ट्रीय नेता बनने का सपना?
यहां ये समझना जरूरी है कि केसीआर लंबे समय से लोकसभा चुनाव के लिए थर्ड फ्रंट बनाने की बात कर रहे थे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने एक नहीं कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की, उन्हें समझाने का भी प्रयास रहा। उनके थर्ड फ्रंट के जरिए कांग्रेस को भी बेदखल करने की तैयारी थी। अब कागज पर केसीआर की तैयारी काफी अच्छी थी क्योंकि अगर तेलंगाना में जीत मिल जाती तो ये कहना गलत नहीं होता कि केसीआर की स्वीकार्यता बढ़ रही है और आगे चलकर वे राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
नहीं दोहरा पाए मोदी वाला करिश्मा
राजनीति में ये बात भी मायने रखती है कौन नेता कितने सालों तक किसी राज्य में शासन करता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी 12 सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, कहने को वे भी उस समय एक राज्य तक सीमित थे, लेकिन उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी थी। इसका कारण ये था कि वे एक राज्य के सीएम थे, ऐसे में उनसे कई नेता मिलते थे, उनकी एक अहमियत बनी रहती थी। इसी तरह अगर ओडिशा जाया जाए तो वहां तो अभी भी नवीन पटनायक का शासन है। उनकी भी छवि अब एक सशक्त नेता की बन चुकी है।
बड़े सपनों ने तेलंगाना में कमजोर किया?
अब इन्हीं नेताओं के जैसा करिश्मा केसीआर करना चाहते थे, लेकिन असल में ऐसा हो नहीं पाया है। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम जरूर बदलकर टीआरएस से बीआरएस कर लिया, लेकिन उनकी पहुंच राष्ट्रीय नहीं हो पाई है। इसके ऊपर उन्हें तेलंगाना में जो ये हार मिली है, ये अप्रत्याशित है। इसका एक कारण तो ये भी माना जा रहा है कि उन्होंने क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा होने पर ज्यादा फोकस किया, इसी वजह से वे अपना ही राज्य गंवा बैठे। बड़ी बात ये भी है कि वे खुद कामारेड्डी से चुनाव हार गए, यानी कि राष्ट्रीय स्तर पर तो जनाधार कमजोर था ही, तेलंगाना में भी पिच कुछ टूट सी गई है।
बदले समीकरण, कांग्रेस के साथ बीजेपी की टक्कर
अब आगामी लोकसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव के सामने चुनौती काफी बड़ी है। एक तरफ हाल ही में जीती कांग्रेस खड़ी है तो दूसरी तरफ राज्य की आठ सीटें निकालने वाली बीजेपी भी मजबूत दिखाई पड़ रही है। जानकार मानते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में कई सीटें ऐसी भी रह सकती हैं जहां पर मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी का बन जाए और बीआरएस कहीं पीछे छूट जाए। इस स्थिति से तो केसीआर हर कीमत पर बचना चाहते हैं, वे दस साल तक सरकार चलाने के बाद अपनी पार्टी की ऐसी दुर्गति नहीं देख सकते।
इंडिया गठबंधन में जाएंगे केसीआर?
इसी वजह से सवाल ये उठता है कि क्या केसीआर थर्ड फ्रंट का सपना छोड़कर इंडिया गठबंधन से हाथ मिला लेंगे? अब इस सवाल का जवाब एक बार के लिए केसीआर की तरफ से हां भी हो सकता है क्योंकि उस विपक्षी कुनबे में कई ऐसे नेता शामिल हैं जिन्हें वे खुद अपने थर्ड फ्रंट का हिस्सा बनाना चाहते थे। अखिलेश यादव से लेकर अरविंद केजरीवाल तक इस समय इंडिया गठबंधन के साथ बने हुए हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि कांग्रेस ही बीआरएस को लेकर सहज नहीं रहने वाली है।
कांग्रेस क्या हो जाएगी राजी?
जिस तरह से बंगाल में ममता को लेफ्ट से समस्या है, कुछ वैसा ही हाल तेलंगाना में कांग्रेस और बीआरएस के बीच चल रहा है। राहुल गांधी ने तो कई सभाओं में जिस तरह से केसीआर और उनकी पार्टी को निशाने पर लिया है, जिस तरह से बार-बार उन्हें बीजेपी की बी टीम कहा है, उस स्थिति में तो उनका इंडिया गठबंधन में शामिल होना काफी मुश्किल है। इसके ऊपर इंडिया गठबंधन में अगर वे शामिल हो भी गए तो तेलंगाना में उन्हें ज्यादा सीटें मिलना मुश्किल रहने वाला है। हाल ही में जनता का जबरदस्त गुस्सा इस पार्टी ने देखा है, ऐसे में किसी भी सूरत में इंडिया गठबंधन वो गुस्सा अपनी उम्मीदों पर पानी फेरने नहीं दे सकता।
एनडीए के साथ जाने की कितनी संभावना?
वैसे के चंद्रशेखर राव के पास एक विकल्प एनडीए के साथ जाने का भी खुला हुआ है। कांग्रेस तो वैसे भी लंबे समय से उनकी पार्टी को बीजेपी से जोड़कर ही देख रही है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यहां पर ये आने वाली है कि बीजेपी के साथ जाने के लिए केसीआर को अपने राष्ट्रीय सपनों की कुर्बानी देनी पड़ जाएगी। उस स्थिति में वे दूसरे राज्यों तक अपना विस्तार नहीं कर पाएंगे। उनकी सियासी सीमाएं सिर्फ तेलंगाना तक रह जाएंगी और वहां भी उन्हें बीजेपी के साथ अच्छी-खासी सीटें शेयर करनी पड़ेंगी। उस स्थिति में एक पार्टी के लिहाज केसीआर के लिए ये बड़ा नुकसान साबित हो सकता है।
बुरा फंसे केसीआर, कैसे होंगे फिर खड़े?
यानी कि इंडिया गठबंधन के दरवाजे लगभग बंद चल रहे हैं, बीजेपी में जाने के लिए बड़ी कुर्बानी देनी पड़ेगी, इधर कुआ उधर खाई वाली स्थिति चल रही है। एक तेलंगाना हार ने केसीआर को अजीब असमंजस में डाल दिया है, उन्हें उनका सियासी भविष्य ही धुंधला दिखाई देने लगा है। वैसे ये अलग बात है कि केसीआर ने कई बार असफलताओं से सीखकर मजबूत वापसी भी की है। तेलंगाना बनाने के लिए जो आंदोलन चला था, तब उनकी सशक्त और हार ना मानने वाली छवि ने बता दिया था- नेता में तो दम है!