Justice Yashwant Varma Cash Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में जांच के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि यह जांच समिति 3 महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। समिति का गठन संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा संसद के मानसून सत्र के दौरान किया जाएगा।

सरकार की कोशिश है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई में और ज्यादा वक्त ना लगे। याद दिलाना होगा कि दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायाधीश रहते हुए जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जले हुए नोटों के ढेर बरामद किए गए थे। इसके बाद जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था। बताना होगा कि केंद्र सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रही है और इसे लेकर सरकार ने विपक्षी दलों से संपर्क किया है।

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का बयान

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि न्यायपालिका से जुड़े मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए इसलिए सरकार ने सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से संपर्क किया है और सरकार अगले सप्ताह सांसदों के हस्ताक्षर जुटाना शुरू करेगी। इस दौरान यह भी तय किया जाएगा कि किस सदन को प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई के लिए आगे बढ़ी मोदी सरकार

रिजिजू ने कहा, ‘इसके बाद Judges Inquiry Act, 1968 के तहत एक कमेटी का गठन किया जाएगा, यह कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी और फिर उस पर चर्चा होगी।’ सरकार के सूत्रों ने यह भी बताया है कि वह कमेटी के 3 महीने के कार्यकाल को खत्म करने के लिए विशेष प्रावधानों पर विचार कर रही है।

जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक पैनल बनाया गया था और पैनल ने इन आरोपों को सही बताया था कि जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जले हुए नोटों की गड्डियां बरामद की गई थी। पैनल ने जस्टिस वर्मा को गलत बर्ताव के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

जस्टिस यादव का मामला

सूत्रों ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव को हटाने की मांग को लेकर सरकार कोई जल्दबाजी नहीं कर रही है। जस्टिस शेखर यादव ने बीते साल विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में विवादित बातें कही थी और विपक्ष ने उन्हें हटाने की मांग की थी।

क्या कहता है Judges Inquiry Act, 1968?

Judges Inquiry Act, 1968 के मुताबिक, किसी जज के खिलाफ अगर लोकसभा में शिकायत की जाती है तो इसके लिए प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 100 सदस्यों के दस्तखत होने चाहिए और अगर राज्यसभा में ऐसा किया जाना है तो इसके लिए 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। सांसदों के द्वारा प्रस्ताव रखे जाने के बाद सदन का पीठासीन अधिकारी इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।

अगर किसी भी सदन द्वारा महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो स्पीकर/अध्यक्ष को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या जज की अध्यक्षता में कमेटी का गठन करना होता है। इस कमेटी में किसी भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक और शख्स शामिल होता है। अगर व्यक्ति को दोषी पाया जाता है तो समिति की रिपोर्ट को सदन स्वीकार कर लेता है और जज को हटाने पर बहस होती है।

सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में “मौजूद और मतदान करने वालों” में से कम से कम दो-तिहाई को जज को हटाने के पक्ष में मतदान करना होगा। इस प्रस्ताव के पक्ष में पड़ने वाले वोट हर सदन की कुल सदस्यता के 50% से ज्यादा होने चाहिए। अगर संसद ऐसे किसी प्रस्ताव को पास कर देती है तो राष्ट्रपति जज को हटाने के संबंध में आदेश दे देते हैं।

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