सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ कुछ मामलों में तल्ख हो सकते हैं लेकिन उनके व्यक्तित्व का दूसरा पहलू भी है। वो एक बेहद संजीदा और दूसरों के सुख दुख को समझने वाले शख्स भी हैं। अपने साथियों के विदाई समारोह में उनका यह रवैया भी दिखा। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो रहे एक साथी जस्टिस के बारे में उन्होंने तफसील से बताते हुए कहा कि एक समय गरीबी की वजह से उनको काफी कुछ झेलना पड़ा। लेकिन वो हिम्मत नहीं हारे और जीते।

चंद्रचूड़ ने बताया कि जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम एक ऐसे परिवार से आते हैं जहां बहुत ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं। मां उनको रोजाना ढाई रुपये देती थीं। इस पैसे में उनको अपने आने जाने का खर्च उठाने के साथ खाना भी खाना होता था। यानि मुश्किलें बहुत ज्यादा थीं। लेकिन जस्टिस राम सुब्रमण्यम ने दिखाया कि कड़ी मेहनत और हठ का कोई विकल्प नहीं है। उनके मन में कुछ बड़ा करने का सपना था और उन्होंने इसे करके भी दिखाया।

युवा वकीलों के लिए सबसे बेहतरीन जस्टिस

राम सुब्रमण्यम शुरुआती दिनों में एक वकील के तौर पर संघर्ष करके सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की कुर्सी तक पहुंचे और अपना एक मुकाम बनाया। चंद्रचूड़ ने बताया कि जस्टिस राम सुब्रमण्यम की कोर्ट युवा वकीलों के लिए एक बेहतरीन जगह थी। वो अपने लतीफों से कोर्ट रूम का माहौल हल्का रखकर युवाओं को सहज करते थे। युवा वकीलों के लिए सबसे पसंदीदा जज जस्टिस राम सुब्रमण्यम ही थे। वो उन्हें खासा पसंद करते हैं।

51 साल से दोस्ती, कई बार खटखटाया एक दूसरे का दरवाजा

सीजेआई ने अपने एक दूसरे साथी जस्टिस केएम जोसेफ के बारे में तफसील से बताया। उनका कहना था कि वो पिछले 51 सालों से एक दूसरे के दोस्त हैं। बचपन के साथी भी थे। फुटबाल खेलने के लिए दोनों ने कई दफा एक दूसरे के घर का दरवाजा खटखटाया। चंद्रचूड़ का कहना था कि जस्टिस जोसेफ और वो एक दूसरे के मन को समझते हैं।

दोनों एक दूसरे को समझते थे बखूबी, तभी बचा फोन का बिल

सुप्रीम कोर्ट के अपने करियर में जस्टिस जोसेफ ही ऐसे साथी रहे जिनको वो बखूबी समझते थे। वो भी उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं। दोनों ने कभी भी किसी केस को एक दूसरे से डिस्कस नहीं किया। सीजेआई ने कहा कि वो जानते थे कि जस्टिस जोसेफ का इस मामले में क्या रुख रहने वाला है। सीजेआई ने हंसते हुए कहा कि इस वजह सरकारी फोन का बिल भी बचा।