सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने रविवार को मध्यस्थता मामलों में देरी के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि कभी मुकदमेबाजी का त्वरित विकल्प मानी जाने वाली मध्यस्थता प्रणाली आज समय सीमाएं निर्धारित किए जाने और अत्यधिक स्थगन के कारण प्रभावित हुई है।

मध्यस्थता निर्णयों में गुणवत्ता और एकरूपता का मुद्दा भी उठाने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत एक पसंदीदा वैश्विक केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है, इसलिए अपेक्षा केवल यह नहीं है कि कोई निर्णय न्यायिक पड़ताल में खरा उतरेगा या नहीं, बल्कि यह अपेक्षा भी की जाती है कि उनमें तर्क व निष्पक्षता का ऐसा मानक प्रतिबिंबित होना चाहिए, जिसका विश्व स्तर पर सम्मान हो।

जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट और दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दिल्ली मध्यस्थता सप्ताहांत के तीसरे संस्करण के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में समापन भाषण दे रहे थे।

‘देरी मध्यस्थता पूरी तरह से पंगु बना सकती है’

उन्होंने कहा, “भले ही हमारा न्यायशास्त्र परिपक्व हो गया है, फिर भी समकालीन चुनौतियां बनी हुई हैं, जिनमें से पहली, मेरे विचार से, विलंब है। मध्यस्थता की कल्पना मूलतः मुकदमेबाजी के एक त्वरित विकल्प के रूप में की गई थी।”

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जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हालांकि, अब यह लगातार समय सीमाएं निर्धारित किए जाने और अत्यधिक स्थगन के कारण प्रभावित हुई है, जिसकी वजह से अक्सर वह अवधारणा विफल हो जाती है। यदि गति मध्यस्थता की आत्मा है, तो देरी इसे पूरी तरह से पंगु बना सकती है।”

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इसका समाधान न केवल कठोर न्यायिक समय-सारिणी बल्कि संस्थागत तौर-तरीकों जैसे आदर्श प्रक्रियात्मक नियमों को अपनाने में भी निहित है, जिनका पक्षों को पालन करना होगा।

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