जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल बनाए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में लोकपाल की नियुक्ति के लिए समिति की बैठक हुई थी। इस बैठक के दौरान जस्टिस पीसी घोष के नाम पर सहमति बनी और जल्द ही इस संबंध में सरकार की तरफ से इसका औपचारिक ऐलान किया जा सकता है। बता दें कि देश में साल 2014 में ही लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट बन गया था, लेकिन अब 5 साल के बाद पहली बार लोकपाल की नियुक्ति होने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में जिस समिति ने लोकपाल पद के लिए जस्टिस पीसी घोष के नाम पर अपनी मुहर लगायी, उसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, मशहूर न्यायविद् मुकुल रोहतगी शामिल थे। विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे को भी इस बैठक में शामिल होना था, लेकिन उन्होंने सरकार पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया।

कौन हैं जस्टिस पीसी घोषः जस्टिस पीसी घोष मई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट आने से पहले जस्टिस पीसी घोष आंध्र प्रदेश और कोलकाता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर भी अपनी सेवाएं दे चुके थे। फिलहाल जस्टिस घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। जस्टिस घोष मानवाधिकार कानूनों पर अपनी बेहतरीन समझ और विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं। लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट के तहत जस्टिस पीसी घोष के पास अधिकार होगा कि शिकायत मिलने पर वह देश के मौजूदा और पूर्व प्रधानमंत्रियों के खिलाफ भी जांच कर सकते हैं। इनके अलावा लोकपाल केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों, सरकारी कर्मचारियों और गैर-सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी जांच कर सकता है।

लोकपाल के पद पर नियुक्ति भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की ही हो सकती है। लोकपाल में अधिकतम 8 सदस्य हो सकते हैं। जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए। आधे सदस्यों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होने चाहिए। लोकपाल रह चुके लोगों की अध्यक्ष या सदस्य के रुप में प्रतिनियुक्ति नहीं हो सकती।