सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि एक नागरिक के रूप में भारतीयों को सरकार की आलोचना का अधिकार है…और आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जा सकता है।’ हालांकि अपने भाषण की शुरुआत में जस्टिस गुप्ता ने साफ कर दिया कि व्यक्त किए गए उनके व्यक्तिगत विचार है और सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में वह ऐसा नहीं कह रहे हैं। वह ‘राजद्रोह और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही, सशस्त्र बलों की आलोचना को राष्ट्रद्रोह नहीं कहा जा सकता। अगर हम इन संस्थानों की आलोचनाओं को झेलने में लड़खड़ाते हैं तो हम लोकतंत्र के बजाय एक पुलिस स्टेट बन जाएंगे।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए, एक बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है जिसे संविधान में नहीं लिखा गया है….विचार की स्वतंत्रता का अधिकार और अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार। अपने आप में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है असंतोष का अधिकार। हर समाज के अपने नियम होते हैं और समय के साथ जब लोग सिर्फ पुराने-पुराने नियमों से चिपके रहते हैं तो समाज पतित होता है और इसका विकास नहीं होता है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘नए विचारक तब पैदा होते हैं जब वे समाज के स्वीकृत मानदंडों से असहमत होते हैं। अगर हर कोई स्वीकृत मानदंडों का अनुसरण करेगा तो नया मार्ग नहीं बनाया जा सकेगा और ना ही मन को कोई नई दिशा मिलेगी। अगर कोई व्यक्ति सवाल नहीं पूछता और पुराने सिस्टम पर सवाल नहीं उठाता तो कोई भी नई प्रणाली विकसित नहीं होगी और मन में नए ज्ञान का विस्तार नहीं होगा।’ उन्होंने कहा कि नए विचारों और धार्मिक प्रथाओं का विकास तभी हुआ जब उन्होंने पुरानी प्रथाओं पर सवाल किए।’
इसीलिए जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘कभी भी जिज्ञासा का त्याग ना करें। हमेशा सवाल करें कि-‘यह विश्वास क्यों? कुछ नया क्यों नहीं? तभी समाज विकसित होगा’
बता दें कि जस्टिस गुप्ता अहमदाबाद में लॉयर्स की एक वर्कशॉप को संबोधित करने के लिए पहुंचे थे। विषय था ‘भारत में राजद्रोह का कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।’ कार्यक्रम का आयोजन प्रेलीन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट और जस्टिस पी डी देसाई मेमोरियल लेक्चर कमेटी ने शनिवार को किया।

