वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने पूर्व पीएम दिंवगत अटल बिहारी वाजपेयी के साक्षात्कार से जुड़ा करीब तीस साल पुराना एक रोचक किस्सा साझा किया है। उन्होंने बताया कि जब वो भाजपा के दिग्गज नेता का साक्षात्कार लेने पहुंचे तो उन्होंने बड़ी शालीनता से बात की। बकौल आशुतोष वाजपेयी ने कहा अरे आशुतोष जी, लड्डू लीजिए, इसके लिए इंटरव्यू इतंजार कर सकता है। इस बात को लगभग तीस साल हो गए, मगर ये शब्द मेरी याद में आज भी ताजा हैं। मैं अटल बिहारी वाजपेयी का साक्षात्कार ले रहा था जो तब रायसीना रोड पर रहते थे। इंटरव्यू के बीच में उन्होंने समोसे और लड्डू मंगाए। अपनी शैली के अनुसार आंखें बंद कर वाजपेयी जी मेरे सवालों का जवाब दे रहे हैं। समोसे और लड्डू आए तो उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझसे खाने के लिए कहा।

आशुतोष कहते हैं कि पत्रकारित के मेरे लंबे करियर में मैंने बहुत से नेताओं और अभिनेताओं का साक्षात्कार लिया मगर कोई भी उनके मैग्नेटिस्म से मेल नहीं खा सकता था। बड़े नेता आमतौर पर दूसरे के साथ तिरस्कार वाला व्यवहार करते हैं मगर वाजपेयी जी की बात अलग थी। मैंने लालकृष्ण आडवाणी का भी साक्षात्कार लिया है। मगर मुझे वाजपेयी जैसी उनमें ऐसी कोई बात याद नहीं आती। पूर्व आप नेता आशुषोत विनय सीतापति की नई कितान Jugalbandi: The BJP Before Modi का जिक्र कर कहते हैं कि वाजपेयी और आडवाणी में यही फर्क है। सीतापति ने अपनी किताब में 1952 से 2004 तक हिंदुत्व के उत्थान की व्याख्या करने के लिए दोनों के बीच सहानुभूति को खोजने के लिए खासी कोशिश की है।

उन्होंने कहा कि वाजपेयी और आडवाणी के नेतृत्व ने हिंदुत्व और उसके राजनीतिक अवतार के लिए पहले जनसंघ और बाद में भाजपा के लिए सम्मान अर्जित किया। ऐसे में सीतापति की कितान उन लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए जिनके लिए वाजपेयी और आडवाणी पुराने हो गए और मोदी ऐसे महान शख्स हैं जिन्होंने अपनी राय में दूसरों को बौना बना दिया है।

बकौल आशुतोष जब 1950 के दशक में वाजपेयी और आडवाणी ने राजनीतिक में एंट्री की तब नेहरुवादी आम सहमति का युग था जो क्रांतिकारी और साम्यवादी सोच में लिपटा था। विश्व राष्ट्रवाद की पीड़ा से ऊपर उठ रहा था। तब अंतर्राष्ट्रीयवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और आधुनिकतावाद प्रमुख थे और दुनिया दो खेमों में बंट गई थी। इधर गांधी की हत्या के बाद हिंदुत्व को एक ऐसे चेहरे की जरुरत थी जो भारतीयों को इसकी मासूमियत के बारे में समझा सके। तब धोती पहनने वाले वाजपेयी संघ परिवार में एक आधुनिक सलाहकार थे। उन्होंने गोवलकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय के उलट वैचारिक कटुता नहीं बरती।