जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में यौन उत्पीड़न की सबसे ज्यादा घटनाएं होने की खबर आने के बाद प्रशासन ने छात्रों और शिक्षकों से कहा है कि वे इस तरह की घटनाओं को गुप्त रखने और इनका प्रचार नहीं करने की कोशिश करें। जेंडर सेंसिटाइजेशन कमिअी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएससीएएसएच) ने एक आधिकारिक संदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि संपूर्ण जेएनयू कम्युनिटी से आग्रह है कि वे जेंडर जस्टिस (लैंगिक न्याय) के सिद्धांत का पालन करें। इसके तहत जीएससीएएसएच के पास आने वालों मामलों में पूर्ण गोपनीयता बरते जाना भी शामिल है। किसी भी केस या व्यक्ति से जुडी गोपनीय या निजी जानकारी सार्वजनिक करने से स्थितियां बिगड़ती ही हैं। कैंपस में किसी के द्वारा राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार करना उचित नहीं माना जाएगा। संदेश में यह भी कहा गया है कि इस तरह की हरकत जीएससीएएसएच में भरोसा जताने वालों के प्रति भी नाइंसाफी है। इससे केस से जुड़े व्यक्तियों की परेशानी और बढ़ती है।
हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी ने लोकसभा में बताया था कि 2013-14 में जेएनयू में यौन उत्पीड़न के 25 मामले सामने आए थे। यह जानकारी उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के डेटा के हवाले से दी थी। डेटा में 104 संस्थानों में हुई इस तरह की घटनाओं को शामिल किया गया था। इन संस्थानों में से सबसे ज्यादा घटनाएं जेएनयू में ही हुई थीं।
यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के चलते हो रही आलोचनाओं के मद्देनजर जेएनयू ने नई सेक्सुअल हैरेसेमेंट पॉलिसी घोषित की है। इसमें झूठे मामले दर्ज कराने वालों पर जुर्माना लगाने की भी व्यवस्था की गई है। पिछले सप्ताह जेएनयू ने एक असिस्टेंट प्रोफेसर को बर्खास्त भी किया है। उन पर एक विदेशी स्कॉलर छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप सही पाए जाने के बाद कार्रवाई हुई थी।