JK Assembly Elections: जम्मू-कश्मीर में पिछले एक दशक बाद चुनाव का बिगुल बज चुका है लेकिन खास बात यह है कि पिछले एक दशक में जम्मू कश्मीर का चुनावी परिदृश्य में काफी बदलाव हो चुका है। साल 2014 के विधानसभा चुनावों और उसके बाद हुए दो लोकसभा चुनावों के बाद यह देखने को मिला है, कि सीटों पर जीत का अंतर काफी बढ़ा है और मामूली अंतर से होने वाली जीत काफी कम रही हैं।
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने देश के बाकी हिस्सों में जबरदस्त जीत हासिल की थी, पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में तीन सीटें जीती थीं। खास बात यह है कि उस दौरान लद्दाख भी जम्मू- कश्मीर का ही हिस्सा था। अन्य तीन में सीटें पीडीपी ने जीती थीं, जिसे उस वक्त मोहम्मद सईद लीड कर रहे थे। वहीं बाद में पार्टी को महबूता मुफ्ती नेतृत्व कर रही थीं।
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पीडीपी 2014 में बनी थी सबसे बड़ी पार्टी
2014 के विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प नतीजों वाले रहे थे। पीडीपी ने उसमें 28 सीटें अपने नाम की थी। दूसरे नंबर पर बीजेपी रही थी। हालांकि पीडीपी 44 के जादुई आंकड़े से दूर रह गई थी। बीजेपी ने राज्य के जम्मू रीजन की 25 सीटें अपने नाम की थी और उसने पीडीपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी। फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने 15 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं।
10% से कम से 50 सीटों पर जीते प्रत्याशी
2014 के लोकसभा चुनाव में 50 विधानसभा सीटों का फैसला प्रत्येक सीट पर कुल वोटों के 10% से कम के अंतर से हुआ था। पीडीपी ने सबसे ज़्यादा 18 सीटें जीतीं, उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 13 सीटें जीतीं। बीजेपी ने सात और कांग्रेस ने छह सीटें जीतीं। 10% से कम के अंतर से जीती गई बाकी छह सीटें निर्दलीय और छोटी पार्टियों के खाते में गईं थीं। कुल मिलाकर जीत का औसत अंतर 6,700 वोट था।
पीडीपी ने जहां सबसे ज्यादा सीटें करीबी अंतर से जीतीं थीं। वहीं उसने सबसे ज्यादा सीटें करीबी मुकाबलों में हारीं थीं। पार्टी 18 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही, जहां जीत का अंतर कुल डाले गए वोटों के 10% से भी कम था। इनमें से 16 सीटों पर एनसी दूसरे नंबर पर रही, उसके बाद नौ सीटों पर कांग्रेस और तीन सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही।
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बीजेपी का जीत का मार्जिन रहा विरोधियों से बेहतर
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर थी । ऐसे में बीजेपी ने प्रमुख दलों के बीच सबसे अधिक औसत अंतर 14,428 वोटों से जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस को 5,290, पीडीपी को 3,754 और नेशनल कॉन्फ्रेंस को 2,295 वोटों का अंतर रहा था। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 52 सीटें ऐसी थीं, जहां तीसरे उम्मीदवार को जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले, जिससे पता चलता है कि वे चुनाव को अंतिम विजेता के पक्ष में मोड़ सकते थे। 23 सीटों पर, कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे या उससे भी खराब स्थान पर रहे, लेकिन जीत के अंतर से ज़्यादा वोट हासिल किए थे। इसके अलावा छह सीटों पर नोटा को जीत के मार्जिन से ज्यादा वोट मिले थे।
2019 के लोकसभा चुनावों में विधानसभा क्षेत्र-स्तरीय आंकड़ों पर नजर डालें तो कुल 87 क्षेत्रों में से केवल 22 में ही नतीजे प्रत्येक सीट पर कुल वोटों के 10% से कम के जीत के अंतर से तय हुए थे। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से कुछ महीने पहले हुए चुनावों में बीजेपी औऱ एनसी ने तीन-तीन सीटें जीतीं। 2014 में तीन लोकसभा सीटें जीतने के बाद पीडीपी एक भी सीट नहीं जीत पाई, जबकि कांग्रेस फिर से कोई सीट जीतने में विफल रही।
2019 में कश्मीर पर था एनसी और पीडीपी का फोकस
कांटे की टक्कर की बात करें तो पीडीपी पांच क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही, उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस चार, कांग्रेस और पीसी तीन-तीन और बीजेपी दो क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही थी। बीजेपी ने विधानसभा क्षेत्र स्तर पर सबसे अधिक 32,212 मतों के साथ औसत जीत का अंतर दर्ज किया, जिसके बाद कांग्रेस 23,981, नेशनल कॉन्फ्रेंस 3,268 और पीडीपी 320 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रही। उल्लेखनीय है कि बीजेपी ने प्रत्येक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा था, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने कश्मीर घाटी की संसदीय सीटों पर फोकस रखा था।
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कैसा रहा 2024 का लोकसभा चुनाव
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव का जिक्र करें तो 2022 में हुए परिसीमन और अनुच्छेद 370 हटने के बाद, बीजेपी ने दो सीटें जीती थीं, जो कि जम्मू की थीं। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर में दो सीटें जीतीं, जबकि घाटी में एक सीट जेल में बंद अलगाववादी नेता अब्दुल रशीद शेख के खाते में गई, जिन्हें इंजीनियर रशीद के नाम से जाना जाता है।
विधानसभा क्षेत्र के लिहाज से सबसे करीबी मुकाबला 5 सीटों में देखने को मिला। यहां कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी, और जीत का अंतर महज 10 प्रतिशत से कम का था। इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस 4, बीजेपी तीन और पीडीपी दो पर रही थी।
