CAA NRC Protest: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दिसंबर महीने में सीएए के खिलाफ जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हुए थे। पुलिस ने सीएए विरोधियों के खिलाफ दंगे और हत्या का प्रयास का आरोप लगाते हुए में मुकदमे दर्ज किए थे और जेल भेज दिया। लेकिन कोर्ट में पुख्ता सबूत न पेश कर पाने की वजह से अदालत ने इन्हें जमानत देना शुरू कर दिया। कोर्ट में पटखनी खाने के बाद यूपी पुलिस ने एक नया दांव चला है।

एक महीने बाद CAA प्रदर्शकारियों के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट 2015 लगाया गया है। यह एक्ट 107 आरोपियों के खिलाफ दर्ज किए गए मामले के करीब एक महीने बाद लगाया गया है। पुलिस ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों ने ‘अवैध गतिविधियों के लिए’ बच्चों का इस्तेमाल किया।

मुजफ्फरनगर के सिविल लाइन पुलिस स्टेशन में 21 दिसंबर को दर्ज एफआईआर में से कम से कम 33 आरोपियों के खिलाफ जेजे एक्ट की धारा 83 (2) लगाई गई। 21 दिसंबर को 3,000 अज्ञात आरोपियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस आरोप के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को सात साल तक की जेल हो सकती है। अब तक 107 आरोपियों में से 33 को जमानत दे दी गई है। इनमें से 14 के खिलाफ फिर से जेजे एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है।

जमानत का पहला आदेश 17 जनवरी को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजय कुमार पचौरी द्वारा पारित किया गया था। उन्होंने आरोपी मोहम्मद शहजाद और साहिब को रिहा करने का आदेश दिया था। इससे पहले, पुलिस ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दिया था, जिसमें अदालत को बताया गया था इसमें जेजे एक्ट के प्रावधान लगाया जाएगा।

संयोग से, जबकि पुलिस ने घटना के लगभग एक महीने बाद विरोध स्थल पर तैनात पुलिस कर्मियों की गवाही के आधार पर अतिरिक्त आरोप लगाया, फिर भी एफआईआर ने किसी भी बच्चे को “अवैध गतिविधि” में लिप्त होने का कोई उल्लेख नहीं किया। जमानत आदेश में भी “अवैध गतिविधि” के लिए बच्चों का इस्तेमाल का कोई जिक्र नहीं किया गया है।

एफआईआर में कहा गया है, ” मदीना चौक पर मौजूद आरोपी व्यक्ति दंगा में शामिल था। उसने भय का माहौल बनाया और सभी को अपनी दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया। उसने सार्वजनिक संपत्ति को भी नष्ट कर दिया और आगजनी की। इसमें पुलिस अधिकारी भी घायल हो गए और उन्हें मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया। आरोपी मौके पर तैनात पुलिस को नुकसान पहुंचाने के इरादे से पथराव में भी शामिल था।”

हालांकि सत्र न्यायालय ने जमानत दे दी। इसने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आधार पर कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21, जो जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है, जमानत देने का निर्णय लेने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। जिन अन्य आरोपियों को जमानत दी गई है उनमें वसीम, आसिफ, शावेज, सरताज, शाहनवाज, वसीम, नौमान, इकराम, राजा, जीशान, कलीम और दिलशाद शामिल हैं।

पुलिस ने 19 लोगों को जमानत पर रिहा करने के बाद अतिरिक्त आरोप लगाया है। इन लोगों को या तो पुलिस ने या फिर अदालत ने सबूतों की कमी के कारण या शिकायत के आरोपों को वापस लेने के बाद रिहा कर दिया था। पांच आरोपियों के मामले में पुलिस ने खुद को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 169 के तहत जमानत दे दी थी, जो कि “साक्ष्य की कमी होने पर” लागू की जाती है। 10 अन्य को कोर्ट ने जमानत दे दी क्योंकि पुलिस सिर्फ यह साबित कर पाई कि वे निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने में शामिल थे। पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि वे दंगा या हत्या के प्रयास में शामिल थे।