बिहार विधानसभा में विश्वास मत के दौरान हार के आसार साफ तौर पर देख रहे मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शुक्रवार को यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया कि उनके समर्थकों को जान से मारने की धमकी दी गई और वे नहीं चाहते थे कि विधानसभा से उनके समर्थक विधायकों की सदस्यता खत्म हो। मांझी ने अपने आवास पर मीडिया से कहा-जब यह स्पष्ट हो गया कि किसी और के कहने पर काम कर रहे विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी विश्वास मत के दौरान गुप्त मतदान की इजाजत नहीं देंगे तो मैंने सोचा कि अपने समर्थक विधायकों को खतरे में डालना उचित नहीं होगा। फिर मैंने इस्तीफा दे दिया।

इससे पहले मांझी शुक्रवार को विश्वास मत हासिल करने के लिए बिहार विधानसभा जाने के पहले करीब सवा दस बजे राजभवन गए। वहां राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद वे विधानसभा नहीं गए बल्कि पूर्वाह्न साढ़े 11 बजे उन्होंने मुख्यमंत्री आवास पर पत्रकारों को संबोधित किया।

राज्यपाल त्रिपाठी ने विधानसभा अध्यक्ष से विश्वास मत के लिए मत विभाजन और गुप्त मतदान के विकल्प में से एक चुनने को कहा था। मांझी ने अभी भी 140 से अधिक विधायकों का समर्थन होने का दावा करते हुए कहा कि खून-खराबे और अपने समर्थक विधायकों को प्रताड़ित होने से बचाने के लिए उन्होंने आगे न बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि इस्तीफा देने के बाद उन्होंने राज्यपाल से वह फैसला करने का आग्रह किया जो प्रदेश के हित में सर्वश्रेष्ठ हो। पत्रकार सम्मेलन के दौरान उनका समर्थन करने वाले सभी आठ मंत्री उनके साथ थे। इनमें से सात जद (एकी) के और एक निर्दलीय विधायक हैं।

मांझी ने नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी पर जोरदार हमला किया और दावा किया कि जद (एकी) के 40 से 52 विधायक उनके पक्ष में हैं, ‘लेकिन नीतीश कुमार के भय के कारण वे मेरे साथ नजर नहीं आना चाहते। जब यह साफ हो गया कि गुप्त मतदान नहीं होगा तो मैंने सोचा कि उन्हें संकट में नहीं डालना चाहिए। इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया’।

उन्होंने दावा किया कि नीतीश कुमार के घर से बड़ी संख्या में जद (एकी) के विधायक देर रात करीब एक बजे पिछले दरवाजे से उनके आवास पर आए। उन्होंने कहा-उनके चेहरों पर भय साफ दिख रहा था और मैंने सोचा कि मुझे विश्वास मत के लिए आगे बढ़ कर नीतीश कुमार खेमे के समक्ष उनकी पहचान उजागर कर उन्हें संकट में नहीं डालना चाहिए। इसलिए मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया।

यह पूछे जाने पर कि क्या वे नई पार्टी बनाने की सोच रहे हैं, मांझी ने पत्रकारों से कहा कि उन्होंने 28 फरवरी को पटना में अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है और अगर आम राय बनती है तो वे इस बारे में विचार करेंगे। मांझी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद पर भी कटाक्ष किया और पिछले 15 दिन से जारी उनकी खामोशी को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा-लालू प्रसाद कहते हैं कि महादलित जाति के एक व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुत अच्छा काम हुआ। लेकिन वे पिछले 15 दिन से चुप क्यों हैं?

कभी अपने मार्गदर्शक रहे नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए मांझी ने आरोप लगाया कि उनके खेमे ने बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि विधायकों ने मुझे बताया कि नीतीश कुमार के खेमे की ओर से दो करोड़ रुपए, मंत्री पद और विधानसभा चुनाव के लिए पसंदीदा सीट से टिकट दिए जाने की पेशकश की गई थी। मांझी ने विधानसभा अध्यक्ष के आचरण पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने जो किया वह लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ था।

उन्होंने कहा-विधायकों की सदस्यता खत्म किए जाने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को पटना हाई कोर्ट के पीठ द्वारा दरकिनार किए जाने के बावजूद उन्होंने हमारे चार विधायकों की सदस्यता बहाल नहीं की। मैंने सोचा कि यह उचित नहीं होगा कि कुछ और विधायक मेरा समर्थन करके कानूनी उलझन में फंसें और इस साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले कानूनी लड़ाई में चार से पांच लाख रुपए खर्च करें।

उन्होंने नीतीश कुमार पर काम करने की स्वतंत्रता न देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा-यह सच है कि मैंने दो-तीन माह तक रबड़ स्टैंप की तरह काम किया। मुझे नीतीश कुमार से अधिकारियों के तबादले की या पदस्थापना की सूची मिल जाती थी जिस पर मुझे सिर्फ अपने हस्ताक्षर करने होते थे।

मांझी ने यह भी कहा कि मैं बहुत कुंठा में था। नीतीश कुमार ने मई में संपन्न आम चुनाव में हार के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और इस पद के लिए मांझी को चुना था। नीतीश के इस्तीफे के लिए अनिच्छा से सहमत हुए जद (एकी) विधायक दल ने मांझी से अगले विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा था जिसके बाद नीतीश उनसे यह दायित्व ले लेते। बिहार में नवंबर से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं।

बहरहाल, पूरी योजना धरी रह गई और मांझी व नीतीश के बीच सत्ता का संघर्ष शुरू हो गया, जिसकी परिणति सिर्फ आठ माह बाद मांझी के इस्तीफे में हुई। नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले मांझी को जद (एकी) ने निष्कासित कर दिया था और उन्हें शुक्रवार को विधानमंडल में राज्यपाल का अभिभाषण होने के बाद, बहुमत साबित करना था।

भाजपा ने गुरुवार को मांझी को समर्थन का एलान किया था लेकिन फिर भी उनके पास विश्वास मत जीतने के लिए आवश्यक संख्या नहीं थी क्योंकि जद (एकी) और उसके सहयोगी, राजद और कांग्रेस नीतीश के साथ खड़े हो गए थे।
नीतीश कुमार ने कहा कि मांझी के इस्तीफे से उनके राज्यपाल से किए गए इस आग्रह का औचित्य सही साबित हो गया है कि विश्वास मत के लिए अधिक समय नहीं दिया जाए। उन्होंने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से कहा कि हमारा विचार सही साबित हुआ। कुमार ने कहा कि 14 दिन के बाद यह सब हो रहा है और यह हैरान कर देने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा का ‘गेम प्लान’ भी उजागर हो गया।

नीतीश कुमार के कार्यालय में उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि भावी रणनीति तय करने के लिए कुमार जद (एकी) के वरिष्ठ नेताओं और समर्थक दलों राजद, कांग्रेस, भाकपा विधायकों व एक निर्दलीय विधायक की बैठक बुलाएंगे। इससे पहले नीतीश कुमार का समर्थन कर रहे जद (एकी), राजद, कांग्रेस, भाकपा विधायकों और एक निर्दलीय विधायक ने बिहार विधानमंडल के संयुक्त सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला किया था।

जद (एकी) के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार ने कहा था कि राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला नीतीश कुमार के इस आग्रह पर ध्यान न देने के विरोध में था कि मांझी को 48 घंटे में बहुमत साबित करने को कहा जाए। इसके बजाए उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 14 दिन का समय दे दिया गया जिससे ‘खरीद-फरोख्त’ का मौका मिल जाए।