फर्जी गौ हत्या के केस में फंसाए गए बाली मुंडा जेल में बिताए 89 दिनों को कभी नहीं भूल सकते। वो उन 21 यात्राओं को भी नहीं भूल सकते जो उन्होंने अपने गांव से खूंटी जिला न्यायालय तक जाने के लिए तय कीं और खुद को निर्दोष साबित करने लिए रिश्तेदारों से 14,000 रुपए उधार लिए। सबूतों के अभाव में इस साल जनवरी में निर्दोष साबित हुए 63 वर्षीय बाली मुंडा कहते हैं कि वो भाग्यशाली है कि जीवित हैं। झारखंड के इसी जिले में पुलिस ने पिछले सप्ताह यानी 22 सितंबर को गौहत्या के शक के एक चालीस वर्षीय कलंतस बारला की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या के मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया था।

खूंटी जिला न्यायालय के रिकॉर्ड्स की छानबीन से इंडियन एक्सप्रेस को पता चला कि कम से कम 53 लोगों को खिलाफ गौ हत्या से जुड़ी धाराएं लगाई गईं। इनमें से साल 2018 के बाद से 16 मामलों में आरोपी बनाए गए लोगों को बरी किया जा चुका है। इसी तरह कुछ आरोपों तब बरी कर दिए गए जब न्यायालयों ने देखा कि जब्त किए गए कथित गाय के मांस को FSL नहीं भेजा गया जबकि कुछ मामलों में गवाह कभी पेश नहीं हुए। ऐसे ही दो मामलों में गवाह दक्षिणपंथी हिंदू संगठन जबरंग दल के थे।

अगस्त 2017 में खूंटी के जलतांडा बाजार के निकट खुद को गाय समर्थक बताने वाली भीड़ ने बाली मुंडा पर हमला कर दिया और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाली मुंडा कहते हैं, ‘मैं सोच सकता हूं कि जब भीड़ हमला करती है तो क्या होता है…बजरंग दल के सदस्यों ने मुझे थप्पड़ मारे और पुलिस के हवाले कर दिया। मैं भाग्यशाली हूं कि आज जीवित हूं।’ दरअसल जहां भीड़ ने मुंडा को निशाना बनाया वहां से मुश्किल से आठ किलोमीटर की दूरी पर कलंतस बारला की हत्या कर दी गई। इस घटना में अन्य लोग भी बुरी तरह घायल हुए।

यहां आपको ऐसे कुछ मामलों की जानकारी दे रहें जिनमें न्यायालय ने गो अपराध से जुड़े मामलों में आरोपी बनाए लोगों को बरी कर दिया-
केस: 23 अगस्त, 2013, खूंटी पुलिस स्टेशन
एफआईआर: गौ तस्करी के चार आरोपी
फैसला: 27 सितंबर, 2018- न्यायालय ने कहा कि उसके समक्ष कोई सबूत पेश नहीं किया गया जबकि उसने समन और वारंट भी जारी किए। इसके अलावा खूंटी के एसपी को भी पत्र लिखा मगर अभियोजन पक्ष ने ना तो कोई गवाह पेश किया और ना ही दस्तावेजी सबूत साबित किए। इस पर जज तरुण कुमार फैसला दिया कि आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

केस: 26 सितंबर, 2013, तोरपा पुलिस स्टेशन
एफआईआर: गौ हत्या के लिए मवेशियों को ले जाने का आरोप
फैसला: 30 जनवरी, 2019- न्यायालय ने कहा कि गवाह की तरफ से दिए गए बयान अफवाह पर आधारित हैं जिसका कोई स्पष्ट मूल्य नहीं है। जज रवि प्रकाश तिवारी ने कहा कि किसी गवाह ने आरोपी की पहचान नहीं की और फैसला दिया अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा।

केस: 9 दिसंबर, 2016, रानियां पुलिस स्टेशन
एफआईआर: पुलिस पार्टी ने चार लोगों पर गाय को पीटने का आरोप लगाया। इस दौरान पुलिस ने पाया कि इन लोगों के पास ऐसे कोई सबूत भी नहीं थे जिससे साबित हो कि वो गाय पर मालिका हक रखते थे
फैसला: 16 अप्रैल, 2019- जज ने चारों आरोपियों को यह कहते हुए रिहा कर दिया कि अभियोजन पक्ष के पास उनके खिलाफ कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था जिससे केस को मजबूती मिले।

केस: 27 अगस्त, 2017, कर्रा पुलिस स्टेशन
एफआईआर: 4 शख्स पर गो हत्या का केस दर्ज
फैसला: 25 फरवरी, 2019- कोर्ट ने कहा कि पांच गवाह शत्रुतापूर्ण थे और अन्य को नहीं मालूम कि अपराध में कौन शामिल था। उन्होंने पेपर पर महज हस्ताक्षर किए थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब्त किया गया मांस उसके समक्ष पेश नहीं किया गया। जज ने चारों आरोपियों को यह कहते हुए रिहा कर दिया कि गवाहों को नहीं मालूम कि अपराध किसने किया था।