देश में अब कोरोना का प्रकोप कुछ कम हो गया है। डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स दिन रात लोगों की इस बीमारी से लड़ने में मदद कर रहे हैं। इसी बीच झारखंड की एक महिला हेल्थ वर्कर ने सेवा की ऐसी भावना पेश की है जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है।

‘द टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक महुआडांड़ की रहने वाली मानती कुमारी रोजाना पिछड़े इलाकों में बच्चों के टीकाकरण के लिए उफनती नदी को पार करके जाती हैं। इस दौरान मानती अपनी डेढ़ साल की बच्ची को पीठ पर बांध लेती हैं। एक हाथ में चप्पल और एक हाथ में वैक्सीन, बच्चे के भोजन और अन्य आवश्यक चीजों से भरा बैग पकड़कर वे रोजाना इस नदी को पार करती हैं।

अपने बच्चे और बेरोजगार पति को खिलाने के लिए, मंटी सप्ताह में छह दिन, घने जंगलों के माध्यम से हर दिन लगभग 40 किमी की यात्रा करके, कम वेतन के लिए कड़ी मेहनत करती है। लेकिन उनका काम सुनिश्चित करता है कि अन्य परिवार और उनके बच्चे लातेहार जिले के सुदूर वन गांवों में सुरक्षित रहें, जहां चिकित्सा उपचार तक पहुंचना मुश्किल है और रोकथाम महत्वपूर्ण है।

अपने बच्चे और बेरोजगार पति को पालने के लिए मानती रोज घने जंगलों से 40 किमी की यात्रा करती हैं। वे हफ्ते में छह दिन काम करती हैं। दूरदराज के इलाकों में भी कोरोना संक्रमण फैल रहा है। ऐसे में इन इलाकों में चिकित्सा उपचार आसानी से नहीं पहुंच पाता। मानती लातेहार जिले के सुदूर वन गांवों तक चिकित्सा उपचार पहुंचती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि गांव के सभी परिवार और उनके बच्चे सुरक्षित रहें।

मानती एक संविदा सहायक नर्स हैं। वे अक्सी पंचायत में छोटे बच्चों के लिए सरकार के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम और सोहर पंचायत के कुछ केंद्रों पर कोविड टीकाकरण अभियान चलाती है। उनके घर से वन गांव मात्र 10-12 किमी दूर हैं, लेकिन उन्हें पहले 25 किमी की यात्रा कर चेतमा स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है। जहां उन्हें रिपोर्ट करना होता है।

मानती बताता है कि उनके पति सुनील उरांव इस समय बेरोजगार है। वे उसे स्कूटी से स्वास्थ्य केंद्र और गांवों के रास्ते पर छोड़ देते हैं। लॉकडाउन के चलते इन दिनों सार्वजनिक परिवहन नहीं चल रहे हैं, जिसके चलते थोड़ा मुश्किल होती है।