Nehru Letter Lady Mountbatten Edwina Missing: देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एक बार फिर चर्चा में है। इस बार अपने पुराने खतों की वजह से खबरों में बने हुए हैं। असल में नेहरू के कई पुराने खत नेहरू मेमोरियल में सुरक्षित थे, लेकिन साल 2008 में सोनिया गांधी ने उन्हें मंगवा लिया था। अब प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय (PMML) ने उन खतों को वापस मांगा है, राहुल गांधी को एक चिट्ठी भी लिख दी गई है। अब जिन चिट्ठियों की मांग की जा रही है, वो नेहरू ने लेडी माउंटबेटन एडविना, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित को लिखी हैं।
यहां भी सबसे ज्यादा विवाद नेहरू और लेडी माउंटबेटन एडविना के रिश्तों को लेकर रहता है। इतिहास टटोलने पर कई ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जिन्हें देख सवाल उठते हैं कि नेहरू और एडविना सिर्फ दोस्त थे या कुछ और, आखिर उनका रिश्ता कैसा था? अब अटकलों पर ना जाकर अगर इस मुद्दे का अध्ययन किया जाए तो कुछ जवाब जरूर मिल सकते हैं। ऐसे ही जवाब खोजने के लिए हमने माउंटबेटन की बेटी लेडी पामेला हिक्स की किताब Daughter of Empire: Life as a Mountbatten पूरी पढ़ी। उस किताब के 118,119,130,173,174,175,177,187,212 पेज पर एडविना और नेहरू के रिश्ते के बारे में विस्तार से बताया गया है।
नेहरू और एडविना की पहली मुलाकात
118 पेज पर जब पहुंचते हैं तो नेहरू और एडविना की पहली मुलाकात की बात सामने आती है। बेटी लेडी पामेला हिक्स लिखती हैं कि मेरी मां कई भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से घिरी हुई थीं, वो सभी नेहरू प्रशंसक थे। मां अपना परिचय दे ही रही थी कि पीछे से उन्हें धक्का लगा और फिर वे टेबल के नीचे से धीरे-धीरे निकलने की कोशिश करती रहीं। तब उस भीड़ से नेहरू ने उनको रेस्क्यू किया। मां जब भी नेहरू का जिक्र करती थीं, यह मुलाकात, यह रेस्क्यू उनकी सबसे पसंदीदा स्टोरी रही थी। पहले तो मुझे लगा था कि शायद नेहरू के साथ मेरी पहली मुलाकात काफी निराशाजनकर रहेगी। लेकिन असल में तो मैं बहुत ज्यादा इंप्रेस हो चुकी थी।
पामेला आगे लिखती हैं कि मैं तो नेहरू की खूबसूरत आवाज, उनकी ड्रेस, प्रसिद्ध नेहरू कॉलर वाला एक सफेद बटनदार अंगरखा देख दंग रह गई थी। उनके साथ मेरा पहला हैंडशेक काफी खास था। वे जिस तरह से सभी से बात करते थे, मैं समझ गई थी कि वे तुरंत प्रतिक्रिया देने में विश्वास रखते थे। वे खुद तो तुरंत हंस ही देते थे, दूसरों को भी ऐसे ही हंसा दिया करते थे। मैं तो मानती हूं कि अगर मैं दो सबसे अद्भुत लोगों से मिली थी- एक रहे गांधी तो दूसरे नेहरू।
जब नेहरू ने एडविना के सामने योगा को किया प्रमोट
अब इस पहली मुलाकात का जिक्र इसलिए किया गया क्योंकि इसी से पता चलता है कि नेहरू काफी हंसमुख व्यक्तित्व वाले थे, वे आसानी से लोगों को अपना दोस्त बना लेते थे। अब नेहरू सिर्फ हंसमुख नहीं थे, वे अपनी फिटनेस का भी काफी ध्यान रखते थे। इस बारे में भी एक बड़ा हिंट पामेला की किताब से ही मिल जाता है। पेज नंबर 130 पर पामेला ने बताया है कि कैसे एक बार उन्होंने, उनकी मां एडविना और नेहरू ने साथ में योगा किया था। वे लिखती हैं कि कुछ दिनों बाद नेहरू वापस आए थे। वे काफी दिलचस्प इंसान थे, ऐसे में उनके साथ आसानी से सहज हुआ जा सकता था। जैसे सब उन्हें पंडित जी बोलने लगे थे, हम भी ऐसा ही करने लगे थे। तभी कृष्णा मेनन भी वहां आ गए थे, वे नेहरू के एक पुराने दोस्त थे, विशेष प्रतिनिधि की भूमिका भी निभा रहे थे।
पामेला आगे लिखती हैं कि मेनन से मुलाकात के बाद अगले दिन पंडित जी ने हमे योगा सिखाया। वे अपने सिर के बल खड़े होकर हमे बोल रहे थे- मैं इस तरह से हर सुबह भारती की समस्याएं सुलझाने की कोशिश करता हूं। यह कहने के कुछ ही सेकेंड के बाद हम चारों ही अलग-अलग योगा आसन में बैठे हुए थे। तब नेहरू ने मुझ से कहा- पैमी तुमने देखा, योगा हर जगह काम आता है। अब यह नेहरू की एडविना के साथ दूसरी या तीसरी ही मुलाकात होगी, लेकिन धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ रही थी, एक दूसरे के साथ जान पहचान भी हो रही थी। पामेला के मुताबिक महात्मा गांधी की हत्या के बाद नेहरू काफी टूट गए थे। उस समय भी उनकी मां एडविना के साथ दोस्ती देखने को मिली थी।
गांधी की हत्या के बाद कैसे एडविना ने की नेहरू की मदद
किताब के पेज नंबर 172 पर इस बारे में विस्तार से बताया गया है। असल में जब इलाहाबाद में गांधी जी का अंतिम संस्कार होना था, नेहरू तो वहां मौजूद थे ही, माउंटबेटन का पूरा परिवार भी आया था। पामेला लिखती हैं कि कहने को वो काफी दुख का समय था, लेकिन क्योंकि पंडित जी के साथ और ज्यादा समय बिताने का मौका मिला, वो अच्छा रहा। वे उस समय कई बार घंटों के लिए चुप हो जाया करते थे। जब भी वे ऐसी स्थिति आते थे, साफ पता चलता था कि किसी बड़ी परेशानी से वे जूझ रहे हैं, वे चाहते हैं कि उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए। लेकिन उनका मूड काफी जल्दी बदल जाता था। मुझे आज भी याद है कि एक बार कई सारे लोग ऑटोग्राफ किताब पर साइन करवाने के लिए मेरे माता-पिता के पास आए थे। काफी ज्यादा लोग हो गए थे वो, ऐसा देख नेहरू जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने सारी किताबें हवा में फेंक दी। मेरी मां हैरान थीं, लेकिन तभी नेहरू के चेहरे पर मुस्कान आई, उन्होंने अपना हाथ मेरे और मेरी मां के कंधे पर रखा और हम सभी हंसने लगे।
अब 173 पेज पर तो पामेला ने पहली बार खुलकर नेहरू और एडविना की दोस्ती की बात स्वीकार की। उन्होंने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में लिखा कि उस समय तो ऐसा नहीं लगता था कि गहरी दोस्ती के अलावा मेरी मां और नेहरू के बीच में कुछ था। लेकिन जब पंडित जी खुद को दुख से उबारने के लिए कुछ समय के लिए पहाड़ों पर गए थे, तब जरूर एक कनेक्शन बनना शुरू हो गया था। यह बात हमारे भारत छोड़ने से 6 हफ्ते पुरानी है। दोनों ही एक दूसरे के अकेलेपन को पूरा कर रहे थे। नेहरू की पत्नी को गए भी 10 साल हो चुके थे, अब उन्होंने मिस गांधी (इंदिरा गांधी) की कंपनी भी खो दी थी, उनकी शादी हो चुकी थी, बच्चे छोटे थे। उनकी एक बहन भी थी नान पंडित, वे मॉस्को की एम्बेसडर थीं, बॉम्बे में रहती थी।
नेहरू की उन चिट्ठियों में ऐसा क्या है
जब घंटों बात करने लगे थे नेहरू-एडविना
अब समझने वाली बात यह है कि उस अकेलेपन की वजह से ही दोनों नेहरू और एडविना को एक दूसरे में एक अच्छा दोस्त दिखने लगा था। जब पहाड़ों पर माउंटबेटन अपनी फैमिली के साथ थे, नेहरू भी वहां गए थे। पामिला के मुताबिक कई बार तब उनकी मां एडविना और नेहरू की घंटों तक बातचीत होती रहती थी, उस समय उनके पिता माउंटबेटन कभी भी उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया करते थे, बल्कि कई मौकों पर पिता-बेटी रूम खाली छोड़ देते थे।
पामेला अपनी किताब में लिखती हैं कि मेरे पिता दोनों पर विश्वास करते थे। उल्टा कहना चाहिए कि नेहरू के आने के बाद उनकी लाइफ थोड़ी और आसान हो चुकी थी, क्योंकि मां को मिली नई खुशी की वजह से देर रात वाले तानों से पिता की मुक्ति मिली थी। असल में हाल के कुछ महीनों में जब भी मेरे पिता अपना काम छोड़ रात में गुडनाइट बोलने के लिए मां के पास जाया करते थे, वो पाते थे कि उनसे कई सारी शिकायतें थीं, कहा जाता था कि वे अब कुछ समझते नहीं है, वे मेरी मां को इग्नोर करने लगे हैं, उनका व्यवहार रूड हो चुका है। अब वो सब सुन मेरे पिता थोड़े शर्मिंदा होते थे, लेकिन उन्हें यह भी लगता था कि उन्होंने गलत क्या किया है। लेकिन शायद यह सब उस महिला की शिकायत थी जो खुद को अकेला महसूस करने लगी थी।
नेहरू-एडविना के लेटर और ‘प्यार’ की बात
लेकिन पामेला बताती हैं कि जब नेहरू, एडविन की जिंदगी में आए थे, माउंटबेटन की जिंदगी में बदलाव आना शुरू हो गया था। इस बारे में वे लिखती हैं कि जब हम पहाड़ों पर छुट्टी मनाकर वापस लौटे थे, स्थिति थोड़ी बदल गई थी। अब जब भी मेरे पिता कभी ऊपर मां से मिलने जाते थे, वे उन्हें एटलस की किताब हाथ में पकड़े देखते, मां बस स्माइल करती थीं और उन्हें गुडनाइट कहतीं। इस वजह से मेरे पिता भी बिना भारी दिल के साथ अपना काम कर पाते थे। यह तो बाद के सालों में जब मैंने पंडित जी के मां को लिखे लेटर पढ़े, मुझे पता चला कि वो दोनों एक दूसरे से कितना प्यार करते थे, एक दूसरे की कितनी इज्जत करते थे। सोचती तो मैं भी थी कि उन दोनों का रिश्ता क्या सेक्शुअल था, लेकिन जब लेटर पढ़ती थी, पता चल जाता था कि ऐसा नहीं हो सकता था।
इस बारे में पामेला आगे अपनी किताब में कहती हैं कि शारीरिक अफेयर में आने का समय ना पंडित जी के पास था और ना ही मेरी मां के पास। दोनों पूरी ही समय लोगों से घिरे रहते थे। मेरे पिता के एडीसी Freddie Burnaby Atkins ने तो कहा था कि दोनों की जैसी पब्लिक लाइफ रही है, अफेयर रखना दोनों के लिए नाममुकिन था।
एडविना का नेहरू को दिया गया खास गिफ्ट
वैसे ऐसा नहीं था कि दोस्ती सिर्फ नेहरू की तरफ से दिखाई पड़ती हो, पामिला की किताब पढ़ कहा जा सकता है कि एडविना भी पंडित जी को पसंद करने लगी थीं। किताब एक जगह बताया गया है कि एडविना भारत छोड़ने से पहले नेहरू को एक गिफ्त देना चाहती थीं, उनकी एक बेशकीमती अंगूठी उनके लिए छोड़ना चाहती थीं। लेकिन क्योंकि उन्हें पता था कि नेहरू उस तोहफे को स्वीकार नहीं करते, ऐसे में उन्होंने वो गिफ्ट इंदिरा गांधी को दे दिया, यहां तक बोला जब लगे की पैसी कमी हो रही हो, इसे बेच देना।
वैसे जिस वक्त एडविना भारत छोड़ गई थीं, तब ऐन वक्त पर भी विमान में अपने पीए को बोलकर उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को एक खास गिफ्ट भिजवाया था। पामेला ने इस बारे में भी अपनी किताब में जिक्र किया है, वे तो यहां तक कहती हैं कि उनकी मां की आंखों में आंसू थे, वे कुछ परेशान सी लग रही थीं। उनकी वो बेचानी भी एक मजबूत दोस्ती की तस्दीक करती है।
नेहरू की कविताएं एडविना को आतीं पसंद
एक जगह किताब में इसी दोस्ती को लेकर पामेला ने कहा है कि नेहरू के साथ दोस्ती की वजह से उनकी मां आर्ट से प्यार करने लगी थीं, जब दोनों अलग भी थे, नेहरू की चिट्ठियों की वजह से एक रिश्ता बना हुआ था। पंडित जी अक्सर अपनी चिट्ठियों में कविताएं लिखा करते थे, अगर कुछ अच्छा पढ़ते थे तो वो भी लिखा करते थे। मेरी मां उनकी कंपनी में खुश रहा करती थी।
वैसे पामेला की किताब में नेहरू और एडविना की दोस्ती का प्रमाण इस बात से भी मिल जाता है कि दोनों ही एक दूसरे के साथ कितने सहज हो चुके थे। जब 1953 में रानी एलिजाबेथ की ताजपोशी होनी थी, भारत का प्रतिनिधित्व जवाहर लाल नेहरू ने ही किया था। पामेला के मुताबिक वहां पर नेहरू उनकी मां एडविना के साथ ही थे। बड़ी बात यह थी कि उन्होंने बीच-बीच में उनकी मां के कंधे पर हाथ रखा था, लगातार कुछ बाते कर रहे थे। तब वहां मौजूद भीड़ ने कई बार बोला- लेडी माउंटबेटन के साथ यह इंडियन नेहरू कैसे बैठा है, उसने तो उनके कंधे पर हाथ रख रखा है।
एडविना के निधन पर नेहरू का ट्रिब्यूट
अब बताया जाता है कि नेहरू जब भी विदेशी दौरे पर जाते थे या कहना चाहिए लंदन जाते थे तो उनकी मुलाकात एडविना से जरूर होती थी। एमजे अकबर की किताब में ऐसी मुलाकातों के बारे में और डिटेल में बताया गया है, लेकिन ज्यादा प्रमाण नहीं होने की वजह से उस बारे में यहां साझा नहीं किया जा रहा। इतना जरूर है कि नेहरू और एडविना एक खास रिश्ता जरूर रखते थे, अब इसे क्या नाम दिया जाए यह लोगों के ऊपर है। वैसे जब लेडी माउंटबेटन एडविना का निधन हुआ था, नेहरू के आदेश पर ही भारतीय युद्धपोत आईएनएस त्रिशाल ने फूलों की बरसात कर दी थी। वैसे आज भी ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती कि नेहरू और एडविना के लिखे खत पब्लिक हो जाएं। इस बारे में और जानने के लिए यहां क्लिक करें