अविभाजित भारत के आखिरी ब्रिटिश वायसराय लुई माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना से जुड़े दस्तावेजों को लेकर विवाद जारी है। माउण्टबेटन पर किताब लिखने वाले ब्रिटिश इतिहासकार एंड्रयू लोनी पिछले कई सालों से दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का मुकदमा लड़ रहे हैं। लोनी का दावा है कि ब्रिटिश सरकार दस्तावेजों को छिपाए रखने के लिए लाखों रुपये खर्च कर रही है।
लोनी की कानूनी लड़ाई के बाद ब्रिटिश अदालत ने माउण्टबेटन से जुड़ी ज्यादातर सामग्री सार्वजनिक करने का आदेश दिया था, लेकिन उनकी 1943, 1947 और 1948 की डायरी को छोड़कर। वहीं एडविना की 1947 और 1948 की डायरी भी सार्वजनिक नहीं करने का आदेश दिया गया था।
सूचना को गुप्त रखने के पीछे सरकार की दलील है कि दस्तावेजों के सार्वजनिक होने से भारत के साथ संबंध खराब हो सकते है। अब किसी भी खुलासे से नुकसान हो सकता है। हालांकि डॉ लोनी इस बात से नाराज़ हैं। क्योंकि जो दस्तावेज सरकार छिपाने की कोशिश कर रही है, वह 2010 से माउण्टबेटन फैमिली का निजी दस्तावेज नहीं है।
दरअसल माउंटबेटन परिवार ने माउण्टबेटन दंपती से जुड़े सारे दस्तावेज साल 2010 में करीब 28 लाख पाउण्ड में एक विश्वविद्यालय को बेच दिया था। इस 28 लाख पाउण्ड का एक बड़ा हिस्सा लॉटरी फंडिंग से आया था यानी विश्वविद्यालय ने उन दस्तावेजों को लोगों के पैसों से खरीदा। लेकिन अब विश्वविद्यालय भी ‘निजी दस्तावेज’ होने की बात कहकर, पत्रों और डायरियों को सार्वजनिक करने में आनाकानी कर रहा है।
डॉ लोनी इसी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि यह बहुत ही अहम दस्तावेज हैं और उन्हें सार्वजनिक न करना सत्ता का दुरुपयोग और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। लोनी का दावा है कि सरकार ने उन्हें लेखन देखने से रोकने के लिए लगभग 2 मिलियन पाउंड खर्च किए हैं।
भारतीय पत्रकार ने भी की थी कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर जब ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे तब उनको पता चला कि एयर इंडिया की फ़्लाइट से नेहरू रोज एडविना को पत्र भेजा करते थे। एडविना उसका जवाब देती थीं और उच्चायोग का आदमी उन पत्रों को एयर इंडिया के विमान तक पहुंचाया करता था। नैयर ने एडविना के नाती लार्ड रैमसे से सीधे-सीधे पूछ लिया था कि क्या उनकी नानी और नेहरू के बीच इश्क़ था? रैमसे का जवाब था, ”उनके बीच आध्यात्मिक प्रेम था”
कुलदीप नैयर ने भी भारत में नेहरू और एडविना के बीच हुए बातचीत को पढ़ने की मांग रखी थी लेकिन नेहरू-गांधी परिवार ने ये संभव नहीं होने दिया। इस बात जिक्र खुद नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘Beyond the Lines’ में की है।