प्रदीप उपाध्याय

अब हर कोई निष्ठा परखने लगा है। लोगों की निष्ठा संदिग्ध होने लगी है और इसे बदलते देर नहीं हो रही है। निष्ठा का दिखावा भी किया जा रहा है। यह कैसी निष्ठा होती है जो अवसर देखकर बदल जाए। आज कोई किसी का होने का दावा करता है और नजर पलटते ही किसी और का हो जाता है! जो व्यक्ति किसी दल का सच्चा सिपाही होने का दावा करता है, टिकट न मिलने पर पार्टी से दगा कर किसी और की टोपी धारण कर लेता है।

सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन हो या फिर विवाह, हर जगह खतरा

सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन हो या फिर प्रेम विवाह, सबमें अब निष्ठा जोखिम में है। मंत्री-संत्री देश, संविधान या आम जन के प्रति समर्पित न होकर खुद की हित साधना में रत रहने लगे हैं।

जहां लोकहित में कर्तव्य पालन की अपेक्षा की जाती है, जिस बात की संविधान और नियमों के तहत शपथ ली जाती है, वहीं बिना रिश्वत, बिना भ्रष्टाचार के कोई काम नहीं होने पाने की शिकायतें आम हैं। तब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि व्यक्ति की निष्ठा किसके प्रति रहती है। क्या वह स्वयं के प्रति संनिष्ठ नहीं हो गया है। इस भाव में ईमानदारी, समर्पण, विश्वास के स्थान पर स्वार्थ, बेईमानी, अविश्वास का मनोभाव उत्पन्न होने लगा है। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है?

व्यक्तिगत संबंधों से लेकर शासन-प्रशासन, राजनीतिक क्षेत्र, सामाजिक ताने-बाने, आर्थिक क्षेत्र में यानी हरेक जगह व्यक्ति की संनिष्ठा पर अंगुली उठने लगी है।

सामान्य रूप से कहें तो निष्ठा वह कर्तव्य है, जिसमें एक व्यक्ति या नागरिक से व्यापक रूप से अपेक्षा की जाती है कि वह उस राज्य या व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी हो, जिससे वह संबंधित है। इसमें व्यक्ति से कर्म, भाव और वचन पालन की अपेक्षा सन्निहित रहती है। निष्ठा लैटिन शब्द ‘फाइड्स’ से संबंधित है, जिसका अर्थ है विश्वास। इसलिए निष्ठा विश्वासयोग्य होने की अवस्था है। राजकीय कार्यों में निष्ठा की शपथ एक शपथ है, जिसके द्वारा एक नागरिक निष्ठा के कर्तव्य को स्वीकार करता है और देश के प्रति वफादारी की शपथ लेता है। जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में, आधुनिक गणराज्यों में शपथ सामान्य रूप से देश या देश के संविधान प्रति निष्ठा की शपथ के रूप में होती है।

हमारे देश में भी निष्ठा की शपथ इस तरह से दिलाई जाती है- ‘मैं, सत्यनिष्ठा से पुष्टि (या शपथ) करता हूं कि मैं कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखूंगा और यह कि मैं भारत के कानूनों का ईमानदारी से पालन करूंगा और भारत के नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों को पूरा करूंगा।’

अमेरिका में निष्ठा एक तरह की शपथ घोषणा है, जिसके द्वारा प्रत्येक नागरिकता आवेदक को एक औपचारिक समारोह के दौरान एक प्राकृतिक अमेरिकी नागरिक बनने के लिए शपथ पढ़नी होती है। यह शपथ समारोह की परंपरा अठारहवीं सदी से चली आ रही है। शपथ लेते समय नया नागरिक निम्नलिखित कर्तव्यों को पूरा करने का वादा करता है, जिसमें अपने दुश्मनों के खिलाफ अमेरिकी संविधान और संयुक्त राज्य अमेरिका के कानूनों का समर्थन और बचाव करने की घोषणा रहती है। इसमें यह भी सम्मिलित है कि किसी अन्य राष्ट्र या संप्रभु के प्रति निष्ठा को छोड़ना और वंशानुगत या महान उपाधियों का त्याग करना, यदि कोई हो। सरकार द्वारा ऐसा करने के लिए बुलाए जाने पर सैन्य या नागरिक सेवा प्रदान करने की भी शपथ लेनी होती है।

इस प्रकार से हरेक देश के अपने नियम हैं, कानूनी प्रावधान हैं, विधिक प्रक्रिया है, जिसके तहत देश के नागरिक विधिक रूप से संनिष्ठा व्यक्त करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो निष्ठा की शपथ एक महत्त्वपूर्ण औपचारिक संकेत है जो शासन-प्रशासन में किसी के कार्यकाल की आधिकारिक शुरुआत को दर्शाता है। महत्त्वपूर्ण रूप से यह पदीय दायित्वों और कर्तव्यों के निर्वहन के लिए विधिक द्वारा स्थापित अधिकारों और शक्तियों के समुचित प्रयोग के लिए मान्य अवस्था के रूप में स्वीकारणीय है।यह स्थिति उसे सार्वजनिक पद संभालने से जुड़े कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति सार्वजनिक प्रतिबद्धता का बोध भी कराती है।

देखा जाए तो व्यक्ति का अपने अधिकार और कर्तव्य पालन की सामाजिक रूप से परस्पर नैतिक बाध्यताएं ही संनिष्ठा है। व्यक्तिगत रूप से या फिर सार्वजनिक रूप से व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्य पालन में कितना ईमानदार रह पाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह इनका उपयोग स्वहित के लिए करता है या रूढ़ियों, परंपराओं, नियमों द्वारा स्थापित व्यवस्था के अनुसार या अनुरूप चलने का प्रयास करता है।

देखा यह भी जाना चाहिए कि व्यक्ति की निष्ठा स्वयं के प्रति है या समाज और राज्य के प्रति है। आज के दौर में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यही है कि व्यक्ति व्यक्तिनिष्ठ हो गया है। उसकी निष्ठा स्वयं के प्रति है। इसीलिए समाज में सर्वत्र दुरावस्था व्याप्त होती जा रही है। अगर सम्यक रूप से हरेक व्यक्ति अपने प्रति निष्ठा न रखकर परिवार, समाज, राज्य के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से संनिष्ठा रखे तो यकीनन सर्वत्र खुशहाली व्याप्त होने में समय नहीं लगेगा।