राज सिंह
सनातन धर्म की वैष्णव परंपरा ने विश्व को अनेक महान संत दिए हैं। इनमेंं से रामानंदी संप्रदाय के संत, बाबा लालदास बैरागी को एक विशेष स्थान प्राप्त है। वे स्वामी रामानंद की चौथी पीढ़ी के संत थे। उनका स्थान पंजाब में अमृतसर से ‘ध्यानपुर’ नामक स्थान पर है। बाबा लालदास का स्थान, 52 बैरागी (वैष्णव) द्वारों में से एक है, जिसे ‘लाल तुरंगी’ द्वारा भी कहते हैं। इस द्वारे से दीक्षित बैरागी समाज के लोग, ‘लाल तुरंगी’ गोत्र के रूप में प्रयोग करते हैं। वर्तमान में भी इस पीठ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लाल तुरंगी द्वारे के उपद्वारे, दतारपुर के रामानंदी बैरागी संत, महंत राम प्रकाश दास, वर्ष 1967 से 1972 तक पंजाब के उप मुख्यमंत्री भी रहे हैं।
बाबा लालदास का जन्म जहांगीर के शासनकाल में लाहौर से 22 किलोमीटर दूर कसूर नामक स्थान पर हुआ। बचपन में ही उन्होंने रामानंदी संप्रदाय के संत चेतन स्वामी से धर्म दीक्षा ली। बाबा लालदास बैरागी ने पंजाब के अतिरिक्त काबुल, गजनी, पेशावर, दिल्ली और सूरत का भ्रमण कर अपने गुरु का उपदेश दिया। पंजाब के गुरदासपुर जिले में अमृतसर से 50 किलोमीटर दूर ध्यानपुर में इनकी समाधि है।
शाहजहां और मुमताज महल के ज्येष्ठ पुत्र, औरंगजेब के बड़े भाई, दारा शिकोह का राजनीतिक सफर वर्ष 1634 में शुरू हुआ और वर्ष 1657 तक के वह 60,000 सैनिकों और 40,000 घुड़सवारों का कमांडर बन चुका था। यद्यपि दारा एक सफल योद्धा नहीं थे लेकिन दारा शिकोह के जीवन का एक बहुत रोचक पहलू है, विभिन्न धर्मों में उनकी रुचि।
सूफी संत मुल्ला शाह और मियां मीर से वे बहुत प्रभावित थे। हिंदू संतों में दारा शिकोह, रामानंदी संप्रदाय के महान वैष्णव संत लालदास बैरागी के मुरीद थे। एक बार उन्होंने बाबा लालदास से पूछा कि ‘क्या संसार की बुराइयों के मध्य नजर बैरागी जीवन संभव है?’ जिसका जवाब बाबा लालदास ने सकारात्मकता में दिया।
दारा शिकोह आध्यात्मिक विषयों के बहुत बड़े लेखक थे। उनका लेखन कार्य वर्ष 1639 में शुरू हुआ, जब उन्होंने सफीनात अल औलिया नाम का ग्रंथ पूर्ण किया। इसके बाद उन्होंने सकीनात अल औलिया, रिसाला ए हकनुमा (1646), हसनात अल आरीफीन, मजम अल बहरेन, अक्सीर ए आजम तथा योग वशिष्ठ ग्रंथों की रचना की। उनके पहले चार ग्रंथ तो सूफीवाद पर थे। लेकिन पांचवा ग्रंथ, मजम अल बहरेन, सूफीवाद और वेदांत के शास्त्रीय शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन था। उनके दो ग्रंथ केवल वेदांत पर रहे। जिनमें अधिक महत्त्वपूर्ण है- मुकालम ए बाबा लाल ओ दारा शिकोह, जो बाबा लालदास बैरागी द्वारा दारा शिकोह के आध्यात्मिक प्रश्नों का उत्तर है। इसमें धर्म और वैराग्य का विवेचन हुआ है।
मजम अल बहरेन (दो समुद्रों का संगम) नामक ग्रंथ में दारा शिकोह, बाबा लालदास को अपवाद के रूप में उन संतो के फेहरिस्त में शामिल करते हैं, जिनमें केवल मुसलिम नाम थे। शायद वे एक संदेश देना चाहते थे कि साधुत्व और रहस्यवाद को किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। इस ग्रंथ में दारा शिकोह ने बाबा लालदास को सम्मान के साथ ऊंचा स्थान दिया और महान रहस्यवादी के रूप में परिचित किया। वे लिखते हैं कि मैंने वेद ऋषियों की संगत में शांति प्राप्त की, विशेष रूप से संत गुरु के समीप रहकर जो ज्ञान और आध्यात्मिक के स्वयं एक प्रतीक हैं। बाबा लाल दास ने ईश्वर की कृपा से उच्च तपस्या, ज्ञान और उच्च प्रज्ञा का फल प्राप्त किया है। मैं उनसे अक्सर मिलता तथा वार्तालाप करता था।
अपने ग्रंथ हसनात में दारा शिकोह ने बाबा लालदास को महान औलिया कहा। यद्यपि दारा शिकोह, मियां मीर और मुल्ला शाह से अत्यंत प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने हिंदू संत बाबा लाल दास बैरागी को भी आरिफान (महान रहस्यवादी) की श्रेणी में रखा। उन्होंने उस परंपरा और सोच को बदल दिया ,जिनके अनुसार केवल मुसलिम ही महान रहस्यवादी के स्तर तक पहुंचने के योग्य माने जाते थे। मुकालम ए बाबा लाल ओ दारा शिकोह, सुआल वा जवाब नामक ग्रंथ, दारा शिकोह और बाबा लालदास बैरागी के बीच हुई उस बातचीत का संकलन है जो वर्ष 1653 में हुई। इस ग्रंथ में दारा शिकोह द्वारा बाबा लालदास से किए गए प्रश्नों से स्पष्ट है कि उससे पहले ही दारा शिकोह रामायण और भगवत गीता का अध्ययन कर चुके थे। इस प्रक्रिया में उनका सनातन धर्म से गहरा रिश्ता कायम हो चुका था और उन्हें इस्लाम एवं सनातन धर्म में कोई विशेष अंतर नहीं मिला। इसके बाद दारा ने 50 उपनिषदों का संस्कृत से प्रशियन में अनुवाद किया। बाद में फ्रांसीसी विलान आकेंतिल दुपरों ने दारा की पर्शियन अनुवाद से उपनिषदों को फ्रेंच और लैटिन भाषा में अनुवाद किया।
दारा शिकोह और बाबा लालदास बैरागी के बीच कई वार्ताएं हुई। इन वार्ताओं को दारा शिकोह ने दो लिपिकों से लिपिबद्ध करवाया। ये लिपिक थे जाधव दास राय और चंद्रभान ब्राह्मण। दारा शिकोह और बाबा लालदास के बीच संवाद सात दिन तक चला और प्रतिदिन दो मजलिसें होती थी। बाबा लाल दास उस वक्त कोटल मेहरा में निवास कर रहे थे। सात वार्तालापों में, पहली वार्ता जफर खान के बाग में हुई। दूसरी वार्ता बादशाही बाग के सराय अनवर महल में हुई।
तीसरी और छठी वार्ता धन बाई के बाग में हुई। चौथी वार्ता शाहगंज के पास आसिफ खान के महल में हुई। पांचवी वार्ता निकलानपुर के पास गावान के शिकारगाह में हुई। सातवीं वार्ता जो तीन दिन तक चली, उसके स्थान के बारे में इतिहास में वर्णन नहीं मिलता। इन वार्ताओं में दारा शिकोह ने बाबा लालदास से अनेक प्रश्न किए- जैसे नाद एवं वेद में क्या अंतर है? हिंदुओं में मूर्ति पूजा का क्या सिद्धांत है? परमात्मा क्या है तथा जीवात्मा क्या है और जीवात्मा परमात्मा के साथ एक कैसे हो जाता है? तब यह कैसे हो सकता है कि दंड और पुरस्कार दोनों का स्पष्ट अस्तित्व है? इस तरह दारा शिकोह ने बाबा लालदास से अनेक प्रश्न पूछे और उन्होंने सभी प्रश्नों का बहुत विस्तार से उत्तर दिया। बाबा लालदास और दारा के बीच हुई इसी वार्ता को एक ग्रंथ के रूप में संकलित किया गया। इस ग्रंथ पर दुनिया के 24 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तर के शोध हुए हैं।
दारा ने किया गीता का अनुवाद
दारा शिकोह ने कुरान में उपनिषदों के संदर्भ की बात कही। फरीडमन के अनुसार हिंदू धार्मिक साहित्य और कुरान के बीच संबंध, दारा शिकोह द्वारा इस्लामिक विचारधारा में महत्त्वपूर्ण योगदान है। दारा शिकोह ने भगवत गीता का पऱशियन में अनुवाद किया। ब्रिटिश लाइब्रेरी में भागवत गीता का एकमात्र पर्शियन अनुवाद दारा शिकोह द्वारा की गई पांडुलिपि ही है। हिंदुत्व पर दारा शिकोह के लेखन के अनुसार हिंदुत्व और इस्लाम, सत्य के दो पहलू हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं।
मुकालम दारा शिकोह ए बाबा लाल दास में ज्यादा अहम योगदान बाबा लाल दास बैरागी का है। वे दारा शिकोह के लिए एक संपूर्ण संत थे। अपने विभिन्न ग्रंथों में दारा शिकोह ने बाबा लालदास को अलग-अलग नामों से संबोधित किया है। हसनात अल आरिफीन में उनको लालदास मुंडिया लिखा, जबकि मज़म अल बहरेन में उन्होंने बाबा लाल को बैरागी कहा। उन्हें सतगुरु बाबा लाल भी कहा। कई पेंटिंग में उनको लाल स्वामी और लाल दास भी संबोधित किया गया है। निसंदेह, बाबा लालदास बैरागी एक महान वैष्णव संत थे, जिनका सनातन धर्म की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
(लेखक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं)