ICSE syllabus, jamun ka ped: कृष्ण चंदर द्वारा लिखित व्यंग्यात्मक लघु कथा ‘जामुन का पेड़’ को आईसीएसई हिंदी के सिलेबस से हटा दिया गया है। यह कदम बोर्ड परीक्षाओं से महज 3 महीने पहले उठाया गया है। इसमें एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो जामुन के पेड़ के नीचे दब जाता है। उसे बचाने के लिए विभिन्न अधिकारी एक दूसरे पर जिम्मेदारियां डालते रहते हैं और मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचता है।
अंग्रेजी अखबार द टेलिग्राफ ने सूत्रों के हवाले से बताया कि एक राज्य विशेष के अधिकारियों ने ‘जामुन का पेड़’ कहानी पर आपत्ति जताई। यह कहानी 2015 से हिंदी सिलेबस का हिस्सा थी। चंदर ने यह कहानी 60 के दशक में लिखी थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी इसे वर्तमान सरकार की आलोचना के तौर पर देख रहे थे। आईसीएसई काउंसिल की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक, 2020 और 2021 की बोर्ड परीक्षाओं में इस कहानी से जुड़े सवाल नहीं पूछे जाएंगे।
काउंसिल के सेक्रेटरी और चीफ एग्जीक्यूटिव गेरी अराथून ने द टेलिग्राफ से बताया कि कहानी को सिलेबस से इसलिए हटाया गया क्योंकि यह ‘दसवीं के बच्चों के लिए सही नहीं थी।’ हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि ऐसा क्यों है या कहानी को लेकर किस बात पर आपत्ति है। कहानी के मुताबिक, आंधी-तूफान में सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगा एक जामुन का पेड़ गिर जाता है और एक मशहूर कवि इसके नीचे दब जाता है।
लॉन का माली दबे हुए शख्स को बचाने की पहल करता है। वह इस बारे में चपरासी को जानकारी देता है। चपरासी यह मामला क्लर्क पर छोड़ देता है। मामला बिल्डिंग सुपरीटेंडेंट तक पहुंचता है और ऐसे ही बढ़ते हुए उच्चाधिकारियों तक पहुंच जाता है। पेड़ के नीचे दबा शख्स बचाने की गुहार लगाता रहता है और मामला चार दिन बाद चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचता है। इसके बाद, दोबारा से एक दूसरे पर जिम्मेदारियां थोपने का दौर चलता है। मामला कृषि, वन विभाग से लेकर संस्कृति विभाग तक पहुंचता है। संस्कृति विभाग के पास इसलिए क्योंकि दबा हुआ शख्स कवि है।
कहानी के मुताबिक, संस्कृति विभाग का अधिकारी मौके पर पहुंचता है और उस किताब की तारीफ करता है जिसकी वजह से कवि को अवॉर्ड मिल चुका है। हालांकि, वह कवि से यह भी कहता है कि उसे बचाना उसका काम नहीं है। इसके बाद फाइल हेल्थ डिपार्टमेंट के पास पहुंचती है जो इसे विदेश मंत्रालय भेज देता है। विदेश मंत्रालय इसलिए क्योंकि पेड़ को पड़ोसी मुल्क के पीएम ने बोया था।
विदेश मंत्रालय पेड़ को काटने की इजाजत देने से इनकार कर देता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे पड़ोसी मुल्क से रिश्तों पर असर पड़ेगा। देर सबेर यह मामला प्रधानमंत्री के पास पहुंचता है। अधिकारियों से राय मशविरा करने के बाद पीएम शख्स की जान बचाने के लिए पेड़ को काटने पर सहमत होते हैं भले ही इससे कूटनीतिक रिश्तों पर असर पड़े। हालांकि, जब तक बिल्डिंग सुपरीटेंडेंट यह आदेश पाता है, दबे शख्स की मौत हो जाती है। बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार पर पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी जैसे अर्थशास्त्री यह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार में निर्णय लेने की प्रक्रिया ‘अति केंद्रीकरण’ की वजह से धीमी हो गई है।

