Supreme Court on Jammu Kashmir Statehood: जम्मू कश्मीर चल रही इंडिया गठबंधन की सरकार के सीएम उमर अब्दुल्ला से लेकर विपक्षी दलों तक सभी लगातार ये सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिलेगा। इसको लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है, क्योंकि आज ही के दिन 6 साल पहले 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाया गया था। उस दौरान ही इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था। जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और कोर्ट इस पर 8 अगस्त को सुनवाई करेगा।
लाइव लॉ की रिपोर्ट बताती है कि वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे के मुद्दे पर याचिका लगाई है। वकील ने चीफ जस्टिस बीआर गवई के सामने मामले का उल्लेख किया और कहा कि इस तारीख को सुनवाई हो। वकील ने मांग की है कि इस तारीख को बदला न जाए।
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सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था अनुच्छेद 370 का फैसला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पूर्ण राज्य की डिमांड वाली इस याचिका पहले निपटाए गए मामले ‘संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध’ में एक विविध आवेदन के रूप में दायर किया गया है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के फैसले को बरकरार रखा था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही चुनाव कराए गए थे, जिसके बाद राज्य में उमर अब्दुल्ला की सरकार बनी थी।
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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में कोई टाइम लिमिट तो नहीं दी थी लेकिन यह जरूर कहा था कि जम्मू कश्मीर को ‘राज्य का दर्जा यथाशीघ्र बहाल किया जाना चाहिए।
संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन
याचिकाकर्ता कॉलेज शिक्षक ज़हूर अहमद भट और एक्टिविस्ट खुर्शीद अहमद मलिक ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल द्वारा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के आश्वासन के बावजूद, अनुच्छेद 370 मामले में फैसले के बाद पिछले ग्यारह महीनों में केंद्र ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया है।
अपनी याचिका में आवेदकों ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल न करना संघवाद की मूल विशेषता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को समयबद्ध तरीके से बहाल न करना संघवाद की अवधारणा का उल्लंघन है, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है।
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