जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने सरला भट्ट हत्या मामले में सोमवार देर रात आठ जगहों पर छापेमारी की। कश्मीरी पंडित सरला भट्ट की वर्ष 1990 में अपहरण के बाद हत्या कर दी गयी थी। सरला भट्ट को 18 अप्रैल 1990 को सौरा स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के हब्बा खातून हॉस्टल से अगवा किया गया था। भट्ट का शव अगली सुबह उमर कॉलोनी में मिला था।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “भट्ट का अपहरण कर जम्मू -कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से जुड़े आतंकियों ने हत्या कर दी थी। उनके शव के पास से एक नोट मिला था जिसमें उन्हें पुलिस मुखबिर बताया गया था। निगीन पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन उस समय जांच में असली अपराधियों के बारे में पता नहीं चल सका।
सरला भट्ट के परिवार को मिली धमकियां
इतना ही नहीं पुलिस सूत्रों ने यह भी बताया कि भट्ट ने पंडितों को सरकारी नौकरी छोड़कर घाटी छोड़ने के लिए दिए गए उग्रवादी फरमानों की अवहेलना की थी। इसी वजह से उनकी हत्या कर दी गई थी। उन्होंने आगे बताया कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके परिवार को धमकियां मिलीं और स्थानीय लोगों ने उन्हें उनके अंतिम संस्कार में शामिल न होने की चेतावनी दी। पिछले साल इस मामले को एसआईए को सौंप दिया गया था। पुलिस के सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को यह भी बताया कि अपराध को सिद्ध करने वाले सबूत मिले हैं। यह भट्ट और उनके परिवार को न्याय दिलाने में मदद करेंगे।
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बीजेपी ने दी प्रतिक्रिया
बीजेपी आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, “अप्रैल 1990 में जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था, श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में एक युवा कश्मीरी पंडित नर्स, सरला भट्ट की नृशंस हत्या कर दी गई थी। हथियारबंद आतंकवादियों ने उन्हें उनकी वर्कप्लेस से अगवा कर लिया, एक अज्ञात जगह पर ले गए और उन्हें भयानक यातनाएं दीं। उनके साथ रेप किया गया, उनके शरीर को विकृत किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें आतंक फैलाने के लिए फेंक दिया गया। उनकी हत्या न केवल एक जघन्य अपराध थी, बल्कि कश्मीरी पंडितों के खिलाफ जातीय सफाए का हिस्सा थी। इसका उद्देश्य हिंदू अल्पसंख्यकों को घाटी से खदेड़ना था। सरला भट्ट की हत्या 1990 में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन को भड़काने वाले अत्याचारों की सबसे भयावह यादों में से एक है।”
जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता दरख्शां अंद्राबी ने कहा, “जिन परिवारों ने पिछले 35 सालों में आतंकवाद के कारण अपने बच्चों को खोया, उन्हें 35 साल बाद एलजी प्रशासन द्वारा न्याय दिया गया और आज प्रशासन के माध्यम से न्याय की लहर चल रही है। अगर सरकार ने फाइल फिर से खोली है, तो यह सही है। जहां भी अन्याय हुआ है, वहां न्याय मिलना जरूरी है।” जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए और ज्यादा ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत