जम्मू कश्मीर में विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों के आरएसएस बैकग्राउंड की पड़ताल करने को लेकर जारी आदेश पर विवाद बढ़ने के बाद वापस ले लिया गया। बैकग्राउंड की पड़ताल की खबर के बाद ये अफवाह फैलने लगी थी कि जम्मू कश्मीर में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

गौरतलब है कि 19 अप्रैल को महाप्रशासनिक विभाग के उपसचिव मलिक सुहेल ने एक आरटीआई का हवाला देते हुए सभी सरकारी विभागों को अपने उन कर्मचारियों व अधिकारियों की सूची जम कराने को कहा था जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं। बताते चलें कि यह आरटीआई सुधीर कुमार नामक एक व्यक्ति ने दायर की थी। जिसमें विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों, अस्पतालों, बैंकों में कार्यरत कर्मचारियों के भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ संबंधों के बारे में पूछा गया था। इसके अलावा यह भी जानकारी भी मांगी गयी थी कौन-कौन शाखा में हिस्सा लेता है।

कई कर्मचारियों द्वारा इस मुद्दे पर नाराजगी व्यक्त किए जाने के बाद, लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा के प्रशासन ने इस प्रक्रिया को रोक दिया है। भाजपा प्रवक्ता अनिल गुप्ता ने कहा कि इस बात को लेकर लोगों में आक्रोश है। उन्होंने कहा कि आरएसएस एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है; इस तरह के डेटा को केवल प्रतिबंधित संगठनों से संबंधित रखा जाता है। जीएडी में सीपीआईओ को उन पंक्तियों पर स्पष्ट रूप से जवाब देना चाहिए था।

बताते चलें कि मार्च 2019 में, अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने अलगाववादी जमात-ए-इस्लामी और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ लोगों को आशंका थी क्या इस तरह की जानकारी लेने के बाद आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

हालांकि जम्मू कश्मीर सीविल सर्विसीज कंडक्ट रूल्स किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मी को किसी गैर राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक संगठन के साथ जुड़े रहने से नहीं रोकता है। इसके बावजूद महाप्रशासनिक विभाग ने विभिन्न विभागों से आरटीआई का हवाला देते हुए जानकारी मांगी थी। उच्च शिक्षा विभाग ने तो अपने अधिकारियों और कर्मियों को गूगल फाइल के जरिए यह जानकारी जमा कराने और आरएसएस से कोई संबंध न होने का हलफनामा भी जमा करने के लिए कह दिया था।