Jammu-kashmir News: जम्मू-कश्मीर सरकार और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच एक बार फिर से टकराव देखने को मिल रहा है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने शुक्रवार को एक आदेश में डीएम और डिप्टी कमिश्नरों को 215 स्कूलों को अपने नियंत्रण में लेने का निर्देश दिया। यह इंटेलिजेंस एजेंसियों के अनुसार प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी या उसके फलाह-ए-आम ट्रस्ट से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से संबद्ध (Affiliated) हैं।

सरकार ने अपने आदेश में कहा, “जम्मू और कश्मीर सरकार की तरफ से दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इन स्कूलों में एनरोल छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की सुरक्षा के लिए, यह आदेश दिया जाता है कि 215 स्कूलों की प्रबंध समिति को संबंधित जिला मजिस्ट्रेट-डिप्टी कमिश्नर अपने नियंत्रण में लिया जाएगा, जो संबंधित स्कूलों के लिए सत्यापन के बाद सही समय पर एक नई प्रबंध समिति का प्रस्ताव देंगे।”

इस आदेश के बाद एक बार फिर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के खिलाफ खड़ा कर दिया है क्योंकि राज्य की शिक्षा मंत्री सकीना इटू ने कहा कि उनके विभाग ने डीएम या डीसी द्वारा इन स्कूलों को अधिग्रहण करने का आदेश नहीं दिया था और यह आदेश उनकी जानकारी के बिना मोडिफाई किया गया था। सरकार का यह कदम तत्कालीन एलजी प्रशासन द्वारा 1990 में जारी प्रतिबंध आदेश का हवाला देते हुए फलाह-ए-आम ट्रस्ट को जम्मू-कश्मीर में शैक्षणिक संस्थान चलाने से रोके जाने के तीन साल बाद आया है।

फलाह-ए-आम ट्रस्ट क्या है?

अब फलाह-ए-ट्रस्ट की बात की जाए तो ट्रस्ट को 1972 में जमात-ए-इस्लामी ने स्थापित किया था। इस पर साल 2019 में केंद्र सरकार ने बैन कर लगा दिया था। एफएटी के संविधान का आर्टिकल 4 बताता है कि यह एक गैर-राजनीतिक निकाय है। यह एजुकेशन और लोगों की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित है। इसके आर्टिकल 3 में बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों के छात्रों को शिक्षित करने के लिए शैक्षणिक संस्थान खोलना इसका मुख्य उद्देश्य है। जम्मू-कश्मीर के शिक्षा विभाग की तरफ से मान्यता प्राप्त यह ट्रस्ट लगभग 350 मिडिल और हाई स्कूल चलाता था। इनमें से 300 स्कूल घाटी में थे, जबकि लगभग 50 स्कूल जम्मू में फैले हुए थे।

कैसे चलाए जाते हैं ये स्कूल?

1972 से पहले जमात-ए-इस्लामी ने घाटी में कई स्कूल खोले थे। इन स्कूलों का संचालन जमात ही करता था। हालांकि, 1972 में एफएटी की स्थापना के बाद जमात द्वारा संचालित स्कूल ट्रस्ट को सौंप दिए गए। उसके बाद जो नए स्कूल खुले, उनका संचालन और प्रशासन पूरी तरह से ट्रस्ट द्वारा किया गया। एफएटी जमात-ए-इस्लामी का एक सहयोगी था, लेकिन यह जमात से अलग था और खुद को एक गैर-राजनीतिक संस्था कहता था।

1990 में जब तत्कालीन राज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने छह साल के राष्ट्रपति शासन के दौरान जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया, तो उसने एफएटी पर भी प्रतिबंध लगा दिया। बैन के बाद ट्रस्ट ने अपने ज्यादातर स्कूलों को अलग-अलग स्थानीय प्रबंधन समितियों को सौंप दिया। 2022 में जब प्रशासन ने ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूलों को सील करने का आदेश दिया, तो उसने 1990 के प्रतिबंध आदेश का हवाला दिया। 2022 में एफएटी सीधे तौर पर दो दर्जन से भी कम स्कूलों का संचालन कर रहा था। बाकी स्कूल स्थानीय समितियों द्वारा संचालित किए जा रहे थे। शुक्रवार को जारी सरकारी आदेश में इन्हीं स्कूलों को एडवर्स पुलिस रिपोर्ट और हजारों छात्रों के भविष्य के आधार पर शामिल किया गया है।

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2019 में जब केंद्र ने यूएपीए के तहत जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया, तो उसने एफएटी पर प्रतिबंध नहीं लगाया। एफएटी स्कूल छात्रों को जम्मू-कश्मीर शिक्षा विभाग और जम्मू-कश्मीर राज्य विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा तय किया गया एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं। इसके अलावा, इनमें इस्लामी अध्ययन और अरबी भाषा के लिए अलग-अलग क्लास भी हैं। इन स्कूलों ने सरकारी स्कूलों से दो दशक से भी पहले प्री-प्राइमरी लेवल पर इंग्लिश की शुरुआत की थी।

एनसी सरकार का क्या रुख है?

कश्मीर के पिछले शैक्षिक सफर में इन स्कूलों की अहम भूमिका रही है, ऐसे में शुक्रवार को जारी आदेश ने उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। सरकार ने तुरंत सफाई दी कि हालांकि यह फैसला हजारों छात्रों के हित में लिया गया था, लेकिन अधिग्रहण का आदेश सरकार ने नहीं दिया था और अंतिम आदेश सरकार की जानकारी के बिना मोडिफाई किया गया था।

शिक्षा मंत्री सकीना इटू ने कहा कि उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि एफएटी स्कूलों की देखरेख नजदीकी सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल की तरफ से की जाएगी और प्रस्तावित प्रिंसिपल की एक लिस्ट भी तैयार कर ली गई है। उन्होंने दावा किया कि शिक्षा सचिव राम निवास शर्मा, जो उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को रिपोर्ट करते हैं, द्वारा जारी आदेश को उनकी जानकारी के बिना मोडिफाई किया गया था ताकि जिलों या डिप्टी कमिश्नरों द्वारा अधिग्रहण का प्रावधान किया जा सके।

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