10 सालों बाद जम्मू कश्मीर में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव को लेकर सभी पार्टियों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है, जम्मू कश्मीर की जनता भी लोकतंत्र के इस पर्व में हिस्सा लेने के लिए पूरी तरह तैयार है। वैसे तो जम्मू कश्मीर के चुनाव में कभी भी ज्यादा कांटे की टक्कर देखने को नहीं मिली है, लेकिन कई ऐसी सीटं सामने आई हैं जहां पर अगर थोड़ा वोट भी इधर से उधर हो जाए तो खेल पलट सकता है, कोई भी पार्टी हार या जीत सकती है।
जम्मू-कश्मीर चुनाव: मुकाबला वहीं जहां मार्जिन कम
जम्मू कश्मीर विधानसभा की कुछ ऐसी ही सीटें हैं जहां पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर हजार वोटों से भी कम का रहा है। इन सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस से लेकर पीडीपी तक ने, बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक में जीत दर्ज की है। इन सीटों के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह किसी भी एक पार्टी की सगी नहीं हैं, थोड़ा भी समीकरण अगर बदलेगा तो उन सीटों पर परिणाम भी अलग देखने को मिल सकते हैं।
अगर 2014 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो जम्मू कश्मीर की कम मार्जिन वाली 18 ऐसी सीटें सामने आई थीं जिन पर नेशनल कांफ्रेंस ने जीत दर्ज की थी। लेकिन बीजेपी को भी ऐसी 7 सीटों पर जीतने का मौका मिला था, 6 सीटें कांग्रेस के नाम गई थीं। बड़ी बात यह भी रही कि 10 सीटें ऐसी रहीं जहां पर जीत का अंतर हजार वोट से भी कम का रहा यानी कि कांटे की टक्कर।
कहां है कांटे की टक्कर, किन मुद्दों पर जबरदस्त सियासत? हरियाणा चुनाव की हर डिटेल
कई सीटें, 1000 वोट बिगाड़ देंगे खेल
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान कुपवाड़ा, गुरेज, सोनावरी, बीरवा, गांदरबल, कुलगाम, ईदगाह, दुरु पहलगाम और जांस्कर ऐसी सीटें थीं जहां पर जीत का अंतर हजार वोटों से कम का रहा। अगर कुपवाड़ा सीट की बात करें तो पीपल कांफ्रेंस के बशीर धार 151 वोटों से जीत पाए थे। इसी तरह गुरेज सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के नजीर अहमद खान मात्र 141 वोटों से वो सीट अपने नाम कर पाए। इसी तरह सोनावारी सीट पर भी हाल काफी कांटे का रहा और नेशनल कांफ्रेंस के मोहम्मद अकबर लोन ने 406 वोटों से वो सीट अपने नाम की थी। नेशनल कांफ्रेंस का गढ़ माने जाने वाली गांदरबल सीट पर एनसी ने जीत तो दर्ज की थी, लेकिन वहां पर अहमद शेख मात्र 597 वोटों से जीत मिली थी।
सीट | कौन जीता | मार्जिन |
कुपवाड़ा | बशीर धार (पीपल कांफ्रेंस) | 151 |
गुरेज | नजीर अहमद खान (नेशनल कांफ्रेंस) | 141 |
सोनावारी | मोहम्मद अकबर लोन (नेशनल कांफ्रेंस) | 406 |
गांदरबल | अहमद शेख (नेशनल कांफ्रेंस) | 597 |
बीरवा | उमर अब्दुल्ला (नेशनल कांफ्रेंस) | 910 |
कुलगाम | मोहम्मद यूसुफ (सीपीएम) | 334 |
दुरु | अल्ताफ अहमद वानी (नेशनल कांफ्रेंस) | 904 |
ईदगाह | मुबारक अहमद गुल (नेशनल कांफ्रेंस) | 608 |
जांस्कर | सैयद मोहम्मद बाकिर रिजवी (निर्दलीय) | 566 |
पिछले विधानसभा चुनाव में एक हैरान कर देने वाला पैटर्न यह भी देखने को मिला था कि कई बड़े चेहरे भी मुश्किल से अपनी सीट निकाल पाए थे। इसी कड़ी मैं बीरवा सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला मात्र 910 वोटों से जीत हासिल कर पाए थे। इसी तरह कुलगाम सीट पर भी हाल काफी कांटे का रहा था और सीपीएम के मोहम्मद यूसुफ 334 वोटों से जीत का परचम लहरा पाए थे। दुरु विधानसभा में भी हाल ऐसा ही देखने को मिला जहां पर एनसी के अल्ताफ अहमद वानी ने 904 वोटों से वो सीट अपने नाम की थी।
वैसे इसी तरह का चुनावी ट्रेंड ईदगाह विधानसभा सीट में भी देखने को मिला था जहां पर नेशनल कांफ्रेंस के मुबारक अहमद गुल को मात्र 608 वोटों से जीत दर्ज करने का मौका मिला। अब जांस्कर विधानसभा सीट की बात करें तो वहां पर एक निर्दलीय ने बाजी मारते हुए मात्र 566 वोटों से जीत दर्ज की थी। बड़ी बात यह है कि यह सारी जम्मू कश्मीर की वो सीटे हैं जहां पर अगर समीकरण थोड़ा भी इधर से उधर हुआ तो परिणाम भी अलग देखने को मिल सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर चुनाव में निर्दलीय फैक्टर
इस बार के विधानसभा चुनाव में इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि अकेले पहले दो चरणों में ही 44% निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में खड़े हैं। यह निर्दलीय उम्मीदवार ही दूसरी पार्टियों का खेल बिगाड़ सकते हैं और बना भी सकते हैं। जानकार मानते हैं कि इस बार के चुनाव में यह निर्दलीय प्रत्याशी ही किंगमेकर की भूमिका में रहेंगे अगर किसी एक पार्टी को या किसी एक गठबंधन को बहुमत अपने दम पर नहीं मिलेगा। ऐसे में पूरी संभावना है कि निर्दलीय ही सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखने वाले हैं।
J-K चुनाव का मुद्दा 1- अनुच्छेद 370
जम्मू कश्मीर के चुनाव में कई अहम मुद्दे भी सियासत को गर्म रखने वाले हैं। 10 सालों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में काफी कुछ बदल चुका है। सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह हुआ है कि अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है। जिस मुद्दे के दम पर जम्मू कश्मीर में पहले चुनाव होते थे, अब वह मुद्दा ही नदारत हो चुका है। ऐसे में इस बार जब अनुच्छेद 370 मौजूद नहीं है, बीजेपी अपने पक्ष में हवा बनाने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी अभी भी 370 की बहाली की बात कर रही है। जानकार मानते हैं कि जम्मू क्षेत्र में तो बीजेपी को अनुच्छेद 370 हटाने का फायदा मिल सकता है, लेकिन घाटी में अभी भी उसकी उपस्थिति कमजोर है, ऐसे में वहां पर लोगों को साधना एक चुनौती बन सकता है।
J-K चुनाव का मुद्दा 2- पहाड़ी आरक्षण
जम्मू कश्मीर में इस बार एक बड़ा मुद्दा पहाड़ी समुदायों को मिलने वाला आरक्षण भी रहने वाला है। असल में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर के पहाड़ी समुदाय को 10% आरक्षण देने का ऐलान किया है, बड़ी बात यह है किसी भी दूसरे समुदाय का आरक्षण कम नहीं किया गया है। बीजेपी को ऐसा लगता है कि इस एक फैसले की वजह से घाटी के मुसलमान भी कुछ हद तक उनके पक्ष में आ सकते हैं। इसी तरह इस बार के चुनाव में फिर विकास, सड़क निर्माण और बिजली एक बड़ा मुद्दा रहने वाला है। जम्मू कश्मीर में कहने को दावे बड़े होते रहे हैं,विकास को लेकर भी अलग-अलग बातें कही जाती हैं, लेकिन कनेक्टिविटी की चुनौती बरकरार है। ऐसे में एक बार फिर इस चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनने वाला है और सभी पार्टियों के घोषणा पत्र से भी यह बात स्पष्ट होती दिख रही है।
J-K चुनाव का मुद्दा 3- पूर्ण राज्य वाला विवाद
जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, यह मुद्दा भी सियासत में लगातार बना हुआ है। कहने को मोदी सरकार की तरफ से आश्वासन दिया जा रहा है कि चुनाव के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा, लेकिन कांग्रेस से लेकर नेशनल कांफ्रेंस तक आरोप लगा रही है कि केंद्र सरकार वादा खिलाफी कर रहा है और उसकी तरफ से जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा रहा।
J-K चुनाव का मुद्दा 4- जम्मू में बढ़ते आतंकी हमले
इस बार के चुनाव में फिर सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है। अगर केंद्र सरकार दावा करती है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से आतंकी हमलों में कमी हुई है, विरोधियों का आरोप है कि जम्मू अब हमलों का नया एपीसेंटर बन चुका है। लगातार हो रहे हमले भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान की भूमिका, आंतकवादी वारदातें भी इस चुनाव में अपना असर रखने वाली हैं।