जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक आरआर स्वैन इस समय विवादों में फंस गए हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों को लेकर कुछ ऐसा बोल दिया जिस वजह से महबूबा मुफ्ती से लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिर्ची लग गई। हालात ऐसे बन गए कि आरआर स्वैन को बर्खास्त करने की मांग होने लगी, यहां तक कहा गया कि कुछ लोगों के द्वारा कश्मीरियों के साथ पाकिस्तानियों जैसा व्यवहार हो रहा है।

पुलिस अधिकारी ने क्या कहा था?

अब जानकारी के लिए बता दें कि IIM जम्मू के छात्रों को संबोधित करते हुए आरआर स्वैन ने कहा था कि मरे हुए आतंकियों के घर जाकर उनके परिवार के प्रति संवेदना दिखाना स्थानीय नेताओं के लिए एक नया नॉर्मल बन चुका है। उन्होंने यहां तक कहा कि पाकिस्तान ने कश्मीर की हर सिविल सोसाइटी में सफल तरह से घुसपैठ की है, इसका श्रेय स्थानीय पार्टियों को देना पड़ेगा।

डीजीपी ने अपने बयान में जमीयत ए इस्लामी को भी निशाने पर लिया और जोर देकर कहा कि शांति स्थापित करने के सभी प्रयासों को विफल करने की पूरी कोशिश हुई। आतंकवादियों को धार्मिक और वैचारिक समर्थन देने का काम किया गया। अब इसी बयान को लेकर सारा बवाल खड़ा हो गया है, स्थानीय पार्टियां पुलिस अधिकारी को बर्खास्त करने की मांग कर रही हैं। महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया है कि सरकार और पुलिस की सोच एक समान हो चुकी है।

महबूबा मुफ्ती क्यों नाराज हो गईं?

पीडीपी प्रमुख ने कहा कि डीजीपी को बर्खास्त कर देना चाहिए क्योंकि पिछले 32 महीनों में लगभग 50 जवानों की जान जा चुकी है…मौजूदा डीजीपी राजनीतिक तौर पर चीजों को ठीक करने में लगे हैं। उनका काम पीडीपी को तोड़ना, लोगों और पत्रकारों को परेशान करना और लोगों को धमकाना है…. वे अधिकतम लोगों पर यूएपीए लगाने के तरीके ढूंढ रहे हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस भी खफा

मुफ्ती ने आगे कहा कि हमें यहां फिक्सर की जरूरत नहीं है, हमें एक डीजीपी की जरूरत है। हमारे पास पहले भी दूसरे राज्यों के डीजीपी रहे हैं और उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। किसी ने भी साम्प्रदायिक आधार पर काम नहीं किया जैसा कि अब किया जा रहा है….जब से ये डीजीपी आए हैं तब से ज्यादा जाने जा रहे हैं.. मुझे लगता है कि रक्षा मंत्री और गृह मंत्री को इस पर ध्यान देना चाहिए।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि मेनस्ट्रीम पार्टियों को लेकर जो बोला गया, वो पूरी तरह गलत है। लोकतंत्र में एक पुलिस अधिकारी का इस तरह से बोलना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।