जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस लेने और पीडीपी से गठबंधन तोड़ने के बाद बीजेपी अपने प्लान बी पर काम करने लगी है। तीन दिन बाद यानी 23 जून को पार्टी जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर एक विशाल रैली करने जा रही है। वैसे तो हर साल यह रैली होती है लेकिन अब बदले राजनीतिक घटनाक्रम में यह रैली अहम हो गई है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी वहां पहुंचकर न केवल उपस्थित जनसभा को संबोधित करेंगे बल्कि इसी बहाने राज्य में बीजेपी को मजबूत बनाने की रणनीति पर भी मंथन करेंगे। जम्मू-कश्मीर बीजेपी के अध्यक्ष रविन्द्र रैना ने मीडिया को बताया कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर पार्टी एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है। बतौर रैना इस रैली को अमित शाह संबोधित करेंगे।

‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ पर जोर: राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी का गठबंधन बेमेल था। दोनों पार्टियों की विचारधारा में कोई तालमेल नहीं था। बावजूद इसके गठबंधन हुआ। 3.5 साल तक सरकार भी चली लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन तोड़ दिया गया। बीजेपी ने पीडीपी पर आतंकवाद से निपटने में विफल रहने का आरोप लगाकर जम्मू-कश्मीर के बहाने देश की सियासत को अलग धार देने की कोशिश की है। बीजेपी अब उसी के तहत ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ और ‘राष्ट्र सर्वप्रथम’ का दर्शन न केवल जम्मू-कश्मीर में बल्कि देशभर में प्रचारित करेगी। इससे पार्टी का आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रव्यापी स्टैंड मजबूत हो सकेगा और हिन्दुओं में धूमिल होती छवि निखर सकेगी।

हिन्दू अंसतोष पाटना: जम्मू-कश्मीर में भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक नजरिए से दो संभाग हैं। जम्मू और कश्मीर। जम्मू में जहां बीजेपी की पकड़ अच्छी है, वहीं कश्मीर खासकर घाटी में बीजेपी की पकड़ कमजोर है। जम्मू क्षेत्र में जहां हिन्दू मतदाताओं की बहुलता है, वहीं कश्मीर घाटी में मुस्लिमों की आबादी अच्छी है। बीजेपी जम्मू में जनाधार बढ़ाने पर लगातार काम करती रही है। यही वजह है कि 2014 में बीजेपी 25 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जो पिछले चुनाव से 11 सीट ज्यादा है। कठुआ गैंगरेप के बाद जम्मू क्षेत्र के हिन्दुओं में बीजेपी के खिलाफ भयंकर रोष उपजा था। अब पार्टी की कोशिश होगी कि उसे पाटा जा सके।

घाटी में शांति बहाली और आतंकी दमन: गठबंधन सरकार खत्म होने के बाद वहां परोक्ष रूप से केंद्र सरकार का शासन हो गया है। बीजेपी की कोशिश होगी कि वो इस दौरान घाटी में आतंकियों का सफाया कर पीएम मोदी के उस वादे को अमल में लाया जा सके जिसे उन्होंने 2014 के चुनावों में प्रचारित किया था। नरेंद्र मोदी चुनावी सभाओं में एक के बदले 10 सिर लाने की बात किया करते थे। संभवत: चुनावी साल में मोदी सरकार पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ कुछ हद तक ठोस कार्रवाई कर आम जनमानस की सहानुभूति बटोर सके क्योंकि सैकड़ों जवानों की शहादत के बाद देश इस मुद्दे पर बेसब्री से जवाबी कार्रवाई की चाहत में है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने वाली बीजेपी अब पूर्ण बहुमत पाने की कोशिश में जनता के बीच तो जाएगी ही कार्यकर्ताओं में भी सत्ता के लिए नया जोश भरने की कोशिश करेगी।