जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कल वोटों की गिनती होगी। चुनाव परिणाम से पहले सामने आए ज्यादातर एग्जिट पोल्स में त्रिशंकु विधानसभा होने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या एनसी-कांग्रेस गठबंधन को बढ़त मिलने की स्थिति में पीडीपी ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाएगी?
आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से जुड़े कुछ पॉइंट्स जो नई सरकार के गठन को प्रभावित करने के अलावा चुनाव परिणामों पर भी असर डाल सकते हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस ने मिलकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ा है। दोनों ही राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं। सीट बंटवारे के समझौते के तहत, एनसी ने जम्मू-कश्मीर की 90 में से 51 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा। दोनों भागीदारों ने पांच अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में फ्रेंडली फाइट का भी विकल्प चुना। एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने कश्मीर क्षेत्र में सीपीआई (एम) के मोहम्मद यूसुफ तारिगामी और जम्मू संभाग में जेएंडके नेशनल पैंथर्स पार्टी के लिए एक-एक सीट छोड़ी।
हालांकि, एनसी-कांग्रेस गठबंधन को बेहतर स्थिति में माना जा रहा है और एग्जिट पोल में त्रिशंकु सदन के पूर्वानुमान के बावजूद इसे बढ़त दी गई है। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या गठबंधन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें हासिल कर पाता है या फिर उसे अन्य दलों या निर्दलीयों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
PDP निभा सकती है महत्वपूर्ण भूमिका
महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के लिए चुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। 2014 के पिछले विधानसभा चुनावों में पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पार्टी ने तब गठबंधन सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन किया था लेकिन जून 2018 में भाजपा ने उससे अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर केंद्र के शासन के अधीन है। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पीडीपी में भी विभाजन देखने को मिला है।
मौजूदा चुनावों में, एनसी-कांग्रेस गठबंधन के पूर्ण बहुमत से चूक जाने की स्थिति में पीडीपी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इंडिया गठबंधन के घटक के रूप में पीडीपी त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में गठबंधन के लिए एक स्वाभाविक सहयोगी हो सकती है। हालांकि, पार्टी को एनसी के विरोध का सामना करना पड़ेगा जो घाटी में इसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रही है। एनसी की पीडीपी के साथ चुनाव लड़ने की अनिच्छा के कारण इंडिया गठबंधन ने पार्टी के साथ सीटें साझा नहीं कीं, जिससे उसे चुनावों में अकेले उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इंजीनियर राशिद की पार्टी
लोकसभा चुनाव 2024 में इंजीनियर राशिद ने राज्य के दो दिग्गजों – नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के प्रमुख सज्जाद लोन को हराकर बारामुल्ला सीट पर कब्जा करके सबको चौंका दिया था। तिहाड़ जेल से चुनाव लड़ने वाले राशिद ने बारामूला निर्वाचन क्षेत्र के 18 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 में बढ़त हासिल की। राशिद तब से जमानत पर बाहर हैं। उनकी अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने विधानसभा चुनावों में कश्मीर में 34 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवारों को निर्दलीय के रूप में मैदान में उतारा है।
एआईपी ने प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी के एक धड़े के साथ स्ट्रैटेजिक चुनावी गठबंधन की भी घोषणा की है, जो घाटी में 10 उम्मीदवारों को निर्दलीय के तौर पर समर्थन दे रहा है। हालांकि राशिद से चुनावों में “एक्स फैक्टर” बनने की उम्मीद थी लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा लगाए गए आरोपों कि वे बीजेपी के प्रतिनिधि हैं, ने उनकी पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है।
अन्य छोटी पार्टियां और निर्दलीय
अल्ताफ बुखारी की जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) और पीसी जैसी छोटी पार्टियों का भविष्य चुनाव नतीजों से तय होगा। पीडीपी के पूर्व नेता बुखारी ने 2020 में अपनी अलग पार्टी बनाई थी। राजनीतिक हलकों में उन्हें घाटी में कथित तौर पर “भाजपा के प्रतिनिधि” के तौर पर देखा जाता है। हालांकि, उनकी पार्टी अब तक अपना विस्तार करने में विफल रही है और ये चुनाव उसके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।
एग्जिट पोल के अनुसार जम्मू संभाग में भाजपा अपनी स्थिति बरकरार रख सकती है। अगर अपनी पार्टी और पीसी भी अच्छा प्रदर्शन करती है और कई सीटें जीतती है, तो वे कुछ निर्दलीय विजेताओं के साथ मिलकर भाजपा की सरकार बनाने की कोशिश को बढ़ावा दे सकती है।
