जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले और उसके बाद सीमापार के आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई के बाद सरकार को कई ऐसे लोगों के बारे में जानकारी मिली है, जो भारत में रहकर पाकिस्तान के लिए मुखबिरी करते हैं। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने आतंकवाद से कथित संबंधों के चलते तीन सरकारी कर्मचारियों को मंगलवार को बर्खास्त कर दिया है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के आदेश पर ये कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 311(2)(C) के तहत की गई, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर बिना जांच के नौकरी से निकाला जा सकता है। बर्खास्त किए गए कर्मचारी पहले से ही जेल में हैं। इनमें शामिल हैं- पुलिस कांस्टेबल मलिक इश्फाक नसीर, स्कूल शिक्षक एजाज अहमद और सरकारी मेडिकल कॉलेज में जूनियर सहायक वसीम अहमद खान।

पुलिस कांस्टेबल का भाई पाकिस्तान में ले चुका था ट्रेनिंग

अधिकारियों के अनुसार, तीनों आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन से जुड़े थे और आतंकियों को मदद पहुंचा रहे थे।पुलिस कांस्टेबल मलिक इश्फाक पर आरोप है कि उसने हथियारों और नशीले पदार्थों की खेप की जानकारी पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के साथ साझा की। उसका भाई खुद भी पाकिस्तान में ट्रेनिंग ले चुका लश्कर का आतंकी था, जो 2018 में मारा गया था।

शिक्षक एजाज अहमद को नवंबर 2023 में हथियार और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन की प्रचार सामग्री के साथ गिरफ्तार किया गया था। जांच में सामने आया कि वह वर्षों से इस आतंकी संगठन की मदद कर रहा था।

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वसीम खान पर आरोप है कि वह 2018 में वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की साजिश में शामिल था। अधिकारियों का कहना है कि उसने आतंकियों को साजो-सामान देने और भागने में मदद की थी। अब तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से जुड़ाव के शक में 75 से ज्यादा सरकारी कर्मचारी बर्खास्त किए जा चुके हैं।

इस कार्रवाई पर पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “ईद से पहले तीन कर्मचारियों को नौकरी से निकालना अमानवीय है। सैकड़ों लोगों को बिना सुनवाई बर्खास्त किया गया है। यह तरीका जनता के मन में और असंतोष पैदा करेगा। स्थायी शांति का रास्ता ऐसे नहीं निकलता।”