जम्मू कश्मीर के उपमुख्यमंत्री और राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता सुरिंदर चौधरी ने बीते रविवार को बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में दोहरे तरीके से सत्ता पर अंकुश बनाया गया है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को लेकर आरोप लगाया कि निर्वाचित सरकार होने के बाद भी हम लोगों के लिए पर्याप्त काम करने में सक्षम नहीं हैं।
सुरिंदर चौधरी ने कहा, “हमें इस बात का दुख है कि सत्ता संभालने के आठ महीने बाद भी हम अपने युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रहे हैं।” उन्होंने कहा कि उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर सरकार देश की अन्य निर्वाचित सरकारों की तरह युवाओं और बुजुर्गों के कल्याण के लिए बड़े फैसले लेना चाहती थी, लेकिन दोहरे सत्ता केंद्रों के कारण ऐसा करने में असमर्थ रही।
नौशेरा विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले चौधरी द्वारा इस तरह की टिप्पणियों को दोहराने का राजनीतिक महत्व है, क्योंकि अब्दुल्ला की तुलना में वह इस मुद्दे पर अधिक मुखर रुख अपनाते देखे गए हैं। अब्दुल्ला पिछले साल अक्टूबर में मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद से लोगों के कल्याण के लिए उपराज्यपाल के साथ सहयोग करने पर जोर दे रहे हैं। जबकि चौधरी सीधे तौर पर उपराज्यपाल पर निशाना साधते रहे हैं।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रैना को हराकर विधायक बने थे चौधरी
2024 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में चौधरी एक बड़े प्रभावशील नेता के रूप में उभरे थे। उन्होंने चुनाव में नौशेरा से तत्कालीन राज्य बीजेपी अध्यक्ष रवींद्र रैना को हराया था। चौधरी के राज्य का दर्जा, बिजली वितरण और विशेष दर्जे की बहाली जैसे मुद्दों को लेकर मुखर रहे हैं। इसका उद्देश्य यह रहा है कि जम्मू के लोग, कश्मीर के लोगों की तरह ही, 5 अगस्त, 2019 को केंद्र के फैसले से खुश नहीं हैं, जब सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया।
बताया जाता है कि चौधरी को सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद इसी उद्देश्य के साथ दिया गया है ताकि पार्टी को कश्मीर के साथ-साथ जम्मू में पीर पंजाल और चिनाब घाटी के कुछ हिस्सों में अपना वोट आधार बरकरार रखने में मदद मिलती रहे, साथ ही पार्टी को बीजेपी के गढ़ जम्मू, सांबा और कठुआ में बीजेपी से मुकाबला करने में मदद करना है।
अधिकारियों के ट्रांसफर को लेकर शुरू हुआ विवाद
उपमुख्यमंत्री ने विधानसभा में भी ये मुद्दे उठाए हैं। बीजेपी विधायकों के विरोध के बीच चौधरी ने सदन में एक प्रस्ताव पेश किया था जिसमें केंद्र से अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए जम्मू-कश्मीर के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने का आग्रह किया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल ही में आरोप लगाया था कि जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के 48 अधिकारियों को ट्रांसफर करने के एलजी के कदम ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
बीते रविवार को चौधरी ने मनोज सिन्हा को उनके हालिया बयान को याद दिलाते हुए कहा कि केवल “पुलिस ही उनके अधीन आती है”, इसको लेकर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के बीजेपी नेताओं से इस मुद्दे को एलजी के समक्ष उठाने का भी आग्रह किया।
हालांकि, बीजेपी ने दावा किया कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में एलजी के साथ-साथ निर्वाचित सरकार की शक्तियों को “स्पष्ट रूप से परिभाषित” किया गया है। बीजेपी उपाध्यक्ष और जम्मू उत्तर के विधायक शाम लाल शर्मा ने कहा, “यह मुद्दा एलजी और सरकार से संबंधित है। दोनों को अपने-अपने क्षेत्रों का ध्यान रखना चाहिए और लोगों को परेशान करने के बजाय किसी भी भ्रम को दूर करना चाहिए।”
दरअसल बीते 14 जून को, “यूटी में दो सत्ता केंद्रों” के अस्तित्व पर विवाद को शांत करने के लिए, सिन्हा ने कहा था कि केवल पुलिस ही उनके अधीन आती है जबकि बाकी प्रशासनिक विभाग निर्वाचित सरकार के अधीन आते हैं। बाद में उन्होंने राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू की आलोचना का जवाब देते हुए यही बात दोहराई।