जम्मू कश्मीर में 74 कर्मचारी बीते तीन सालों में बगैर कारण बताए ही बर्खास्त किए जा चुके हैं। इस मामले को लेकर प्रदेश के प्रशासक उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना है कि सभी कर्मचारियों को बर्खास्त सबूतों के आधार पर किया गया है।
इस मामले में जम्मू कश्मीर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि जिन-जिन लोगों खिलाफ कार्रवाई की गई है वो विरोध प्रदर्शन या पत्थरबाजी में संलिप्त थे। उन सभी लोगों के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज भी किया है। साथ ही उन सभी के खिलाफ सबूत भी है। इसके साथ बर्खास्त कर्मचारियों का कोई न कोई रिश्तेदार पहले आतंकवादी रहा है।
पिछले तीन सालों में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बिना किसी जांच के इसके साथ ही बिना कारण बताए ही राज्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 74 कर्मचारियों को बर्खास्त कर चुका है। इसको लेकर सरकार का कहना है कि अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत यह कार्रवाई की गई है। यह अनुच्छेद किसी भी कर्मचारी को बिना किसी वजह बताए उसको बर्खास्त करने का अधिकार देता है। बर्खास्त किए गए 74 कर्मचारियों में से 67 कश्मीर घाटी और सात जम्मू इलाके के हैं। जबकि इसमें से तीन महिलाएं (दो शिक्षिकाएं एक सिविल सेवक) हैं। बर्खास्त हुई सिविल सेवक की शादी जेकेएलएफ के पूर्व उग्रवादी से हुई थी।
अनुच्छेद 311 के तहत किया गया बर्खास्त
जम्मू कश्मीर द्वारा बर्खास्तगी को लेकर दिए गए आदेश को लेकर प्रदेश के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं कि ऐसा एक भी मामला नहीं है, जिसमें एफआईआर न हो, जिसमें इतिहास या ठोस सबूत न हों। जब संविधान में अनुच्छेद 311 का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तब इस पर बहस हुई थी। सरदार पटेल ने खुद कहा था कि अगर राज्य को कोई खतरा है और उसके लिए पुख्ता सबूत हैं, तो उस व्यक्ति को कोई मौका देने की जरूरत नहीं है। उसे हटा दिया जाना चाहिए।
बर्खास्त कर्मचारी प्रशासन से कर सकते हैं संर्पक
इसके साथ ही एलजी सिन्हा ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं। अगर किसी को ऐसा लगता है, तो वह इसका प्रतिनिधित्व कर सकता है और हम इसका मूल्यांकन करेंगे। हम दो मामलों में खुले हैं। मैंने खुद सुनिश्चित किया कि प्रतिनिधित्व वास्तविक पाए जाने के बाद सत्यापन दिया जाए। लेकिन अगर कोई कहता है कि मैं अब अपना व्यवहार बदल दूंगा, लेकिन उसका अतीत संदिग्ध है तो हम उन्हें सेवा सत्यापन कैसे दे सकते हैं।