Ejaz Ahmed Aslam: एजाज अहमद असलम की उम्र उस समय सिर्फ 32 साल थी, जब उन्हें आपातकाल के दौरान जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया था। एजाज अहमद 19 महीने तक जेल में रहे और आपातकाल के 50 साल पूरे होने के बाद भी उन्हें जेल में बिताए गए दिन अच्छी तरह याद हैं। असलम तमिलनाडु के रहने वाले हैं और उस वक्त वह जमात-ए-इस्लामी हिंद की उत्तरी अर्काट जिला इकाई के प्रमुख थे। आपातकाल के दौरान तमिलनाडु में इस संगठन के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था।

आइए, पढ़ते हैं कि उस दौरान एजाज अहमद असलम को किन मुश्किलों से गुजरना पड़ा और उनके इसे लेकर क्या अनुभव हैं?

आठ महीने की गर्भवती थी पत्नी

असलम बताते हैं, ‘आपातकाल की घोषणा के बाद मुझे जमात, CPI, CPI(M) और DMK के अन्य कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ मद्रास सेंट्रल जेल में डाल दिया गया था। उस वक्त मेरी पत्नी आठ महीने की गर्भवती थी और घर पर दो छोटे बच्चे थे- एक चार साल का और दूसरा दो साल का। जेल जाने के तीन महीने बाद मैंने अपनी नवजात बेटी को जेल में ही देखा…मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता।’

असलम Radiance Views Weekly पत्रिका के एडिटर-इन-चीफ हैं। यह जमात की पत्रिका है और 61 साल पुरानी है। असलम का जन्म 1943 में कर्नाटक के हासन जिले में हुआ था लेकिन 1954 में उनके पिता बिहार के मुजफ्फरपुर आ गए थे और एक शुगर मिल में उन्होंने नौकरी की।

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1969 में असलम ने मुजफ्फरपुर के एलएस कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स किया और फिर वह तमिलनाडु के मेलविशारम में सी अब्दुल हकीम कॉलेज में लेक्चरर बन गए। इस दौरान उन्होंने जमात-ए-इस्लामी हिंद के लिए सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया। वह सिर्फ 15 साल की उम्र में इस संगठन में शामिल हो गए थे।

क्या जिंदगी भर जेल में ही रहना पड़ेगा?

असलम बताते हैं कि जेल में बंद कैदियों को शुरुआत में लगता था कि वे जल्दी ही रिहा हो जाएंगे लेकिन कुछ वक्त बाद सभी डर गए कि क्या उन्हें जिंदगी भर जेल में ही रहना पड़ेगा? असलम ने मद्रास की सेंट्रल जेल को आपातकाल के दौरान बर्बरता की जगह बताया।

असलम कहते हैं कि जेल की जिस बैरक में वह थे, उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कई कार्यकर्ता भी थे। इनमें प्रमुख नाम तमिलनाडु में संघ के तत्कालीन प्रमुख रंगासामी थेवर का है। असलम कहते हैं कि वह अलग दौर था जब लोग एक-दूसरे की विचारधारा को समझने की कोशिश करते थे और बातें करते थे। वह बताते हैं कि थेवर के साथ उनकी खूब बातें होती थी।

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वरदान साबित हुआ आपातकाल

जमात-ए-इस्लामी-हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य मौलाना मोहम्मद जफर कहते हैं कि आपातकाल जमात के लिए वरदान साबित हुआ क्योंकि इसके पदाधिकारियों को जेल में कई नेताओं से बातचीत का मौका मिला और बाद में यही नेता सरकार का हिस्सा बने। चूंकि ये नेता जेल में जमात को बेहतर ढंग से जान चुके थे इसलिए उनके इस संगठन को लेकर सारे भ्रम दूर हो गए।

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