बंबई हाई कोर्ट ने राजस्थान के एक हिंदू-मुसलिम जोड़े को फिर से मिला दिया है। युवती को उसके अभिभावक जबर्दस्ती ले गए थे और उसका विवाह एक अन्य व्यक्ति से करा दिया था। राजस्थान पुलिस ने युवती को 23 नवंबर को न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति शालिनी फानसाल्कर जोशी के एक पीठ के समक्ष उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पेश किया जो उसके पति (जिससे उसने पहले विवाह किया था) ने दायर किया था।
अल्पसंख्यक समुदाय की युवती को एक हिंदू व्यक्ति से प्यार हो गया और वे राजस्थान के अपने गांव से भाग गए। वे मध्य प्रदेश के उज्जैन गए जहां उन्होंने इस साल आठ जून को हिंदू रीति-रिवाज से शादी कर ली। हालांकि, युवती के रिश्तेदार उसे इस बहाने से ले गए कि उसे बाद में मध्य प्रदेश स्थित उसके ससुराल ले आया जाएगा। बाद में उसका विवाह गुजरात के एक व्यक्ति के साथ कर दिया गया।
इस बीच वह व्यक्ति (जिससे युवती ने पहले विवाह किया था) मुंबई आया और पास के ठाणे जिले के अंबरनाथ नगर में एक पुलिस शिकायत दर्ज कराई और कहा कि उसकी पत्नी लापता है जो कि गर्भवती थी। उसने पुलिस से उसका पता लगाने और उसे वापस लाने का आग्रह किया। चूंकि पुलिस युवती का पता नहीं लगा पाई, पति ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की और अनुरोध किया कि पुलिस से उसे खोजने के लिए कहा जाए।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट को बताया कि उसे उसकी पत्नी ने टेलीफोन करके कहा कि उसे राजस्थान में गलत तरीके से कैद करके रखा गया है। अदालत ने राजस्थान पुलिस को निर्देश दिया कि वह युवती के घर जाए और उसे उसके समक्ष पेश करे। इसके तहत उसे 23 नवंबर को पीठ के समक्ष पेश किया गया। जजों ने युवती से पूछा कि वह अपने अभिभावकों के पास वापस जाना चाहती है या अपने पति के साथ रहना चाहती है जिसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। इस पर युवती ने कहा कि वह अपने पति के साथ ही मुंबई में रहना चाहती है जिससे उसने पहले विवाह किया था। पीठ ने जोड़े को साथ रहने की इजाजत दे दी।

