Madhya Pradesh News: इंदौर की एक फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत राहत देने से इनकार करने के बाद जैन समुदाय के कई सदस्यो ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। फर्स्ट एडिशनल प्रिंसिपल जज धीरेंद्र सिंह ने हाल ही में जैन धर्म का पालन करने वाले एक जोड़े को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक देने से इनकार कर दिया और कहा कि जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जो हिंदू धर्म की मौलिक वैदिक परंपराओं और मान्यताओं का विरोध करता है और वैदिक परंपरा पर आधारित नहीं है। वहीं हिंदू धर्म पूरी तरह से वैदिक परंपरा में स्थापित है।
आवेदकों में से एक पंकज खंडेलवाल के वकील ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हमने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और बताया है कि फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज की गई लगभग 28 ऐसी याचिकाएं हैं, जिन पर अब अपील की जा रही है।’ खंडेलवाल ने तर्क दिया था कि जैन धर्म में इस समय अपना खुद का कोई भी अधिनियमित व्यक्तिगत कानून नहीं है।
कोर्ट ने दोनों धर्मों के बीच के अंतर को बताया
फैमिली कोर्ट के इस सवाल पर विचार करते हुए कि क्या अल्पसंख्यक समुदाय के अनुयायियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत राहत दी जा सकती है, दोनों धर्मों के बीच के अंतरों पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू धर्म में अलग-अलग जातियां और वर्ग शामिल हैं, जबकि जैन धर्म जाति या वर्ग के आधार पर विभाजन को मान्यता नहीं देता है। कोर्ट ने कहा, ‘हिंदू धर्म में वेद, उपनिषद और स्मृति जैसे ग्रंथों को पवित्र माना जाता है। हालांकि, जैन धर्म वेदों या अन्य हिंदू धर्मग्रंथों को स्वीकार नहीं करता है और इसके अपने अलग पवित्र ग्रंथ हैं, जैसे आगम और सूत्र।’
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जैन धर्म में तीर्थकरों की पूजा की जाती है- कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि हिंदू मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसके बजाय जैन धर्म का मानना है कि ब्रह्मांड शाश्वत है और इसकी कभी रचना नहीं हुई। हिंदू धर्म में आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि जीवन के अंत में आत्मा वापस परमात्मा में विलीन हो जाती है। इसके उलट जैन धर्म का मानना है कि हर एक आत्मा खुद एक परमात्मा है। हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जबकि जैन धर्म में तीर्थंकरों की पूजा की जाती है।
कोर्ट ने कहा कि जैन धर्म में विवाह का पहला उद्देश्य अपने धर्म से संबंधित मानवता को लगातार बनाए रखना है और इस अवधारणा में कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं माना जाता है। वहीं हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र धार्मिक संस्कार माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि 1947 की शुरुआत में ही जैन धर्म के अनुयायियों ने अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के तौर पर मान्यता की मांग पर जोर देना शुरू कर दिया था।
केंद्र ने साल 2014 में दिया अल्पसंख्यक का दर्जा
फैमिली कोर्ट ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने साल 2014 में जैन धर्म को अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के तौर पर मान्यता दी। इस तरह यह साफ है कि जैन धर्म के अनुयायियों को भी अपने धार्मिक और सामाजिक विश्वासों और परंपराओं का स्वतंत्र रूप से पालन करने का संवैधानिक अधिकार है। जैन धर्म के अनुयायियों को हिंदू धर्म के नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करना उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता के उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित करने के जैसा होगा।’ कपिल मिश्रा को फंसाया जा रहा, दिल्ली दंगों में उनकी कोई भूमिका नहीं
