Jagjit Singh Dallewal Hunger strike: किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की उम्र 70 साल है और वह कैंसर से पीड़ित हैं। डल्लेवाल हरियाणा और पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर किसानों की मांगों को लेकर 42 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। लगातार सेहत बिगड़ने के बावजूद डल्लेवाल ने आमरण अनशन खत्म करने से इनकार कर दिया है। वह कहते हैं कि जब तक केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का गारंटी कानून नहीं बनाती वे अनशन खत्म नहीं करेंगे।
डॉक्टर्स का कहना है कि बुजुर्ग किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे हैं और इस वजह से उनके सही वजन का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।
भारत में अलग-अलग आंदोलनों के दौरान आमरण अनशन होते रहे हैं। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी ने अनशन किया था और उन्होंने विरोध दर्ज कराने के लिए कम से कम 20 बार ऐसा किया था। महात्मा गांधी ने सबसे लंबी भूख हड़ताल 1943 में की थी जब उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर अपनी हिरासत के विरोध में 21 दिनों तक अनशन किया था।

58 दिन का अनशन किया था श्रीरामुलु ने
1947 में भारत के आजाद होने के बाद पहला बड़ा अनशन 1952 में हुआ था। जब पोट्टी श्रीरामुलु तत्कालीन मद्रास राज्य से अलग आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। 58 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उनकी मौत हो गई थी। श्रीरामुलु की मौत के बाद पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और लोग सड़कों पर उतर आए। इसे देखते हुए केंद्र सरकार को 1953 में मद्रास राज्य से अलग आंध्र प्रदेश का गठन करना पड़ा था।
74 दिन तक किया था अनशन
1969 में सिख नेता दर्शन सिंह फेरुमान ने 74 दिन तक अनशन किया था। उनकी मांग थी कि चंडीगढ़ सहित पंजाबी भाषा बोलने वाले इलाकों को उस वक्त नए बने पंजाब राज्य में शामिल किया जाए। अनशन के दौरान उनकी मौत हो गई थी। मौत के बाद उनके समर्थकों ने शहीद फ़ेरुमान अकाली दल बनाया लेकिन यह दल पंजाब की राजनीति में कोई बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर सका।
दिल्ली में नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रही कांग्रेस, AAP-BJP को कितनी सीटों पर दे पाएगी टक्कर?

इरोम शर्मिला का संघर्ष
नवंबर, 2000 में जब मणिपुर में आठ असम राइफल्स के जवानों पर 10 नागरिकों की हत्या करने का आरोप लगा था। इस घटना और Armed Forces Special Powers Act के खिलाफ उस वक्त 28 साल की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। भूख हड़ताल शुरू करने के तीन दिन बाद ही उन्हें आत्महत्या करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था और 16 साल तक पुलिस हिरासत में रखा गया।
पुलिस हिरासत के दौरान उन्हें जबरदस्ती नाक से खाना खिलाया गया। संघर्ष करने की वजह से ही शर्मिला को मणिपुर की आयरन लेडी का खिताब दिया गया लेकिन 2016 में उन्होंने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी। इस मामले में संयुक्त राष्ट्र से लेकर अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस और कई इंटरनेशनल समूहों ने कहा कि इरोम शर्मिला को नाक से खाना दिया जाना गलत है।
25 दिन तक भूख हड़ताल पर रही थीं ममता बनर्जी
साल 2006 में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी 25 दिन तक भूख हड़ताल की थी। ममता बनर्जी ने यह भूख हड़ताल टाटा समूह की नैनो फैक्ट्री के लिए पश्चिम बंगाल की तत्कालीन सरकार के द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण के विरोध में की थी। उस समय ममता बनर्जी की भूख हड़ताल एक बड़ा मुद्दा बनी थी और तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनसे भूख हड़ताल खत्म करने की अपील की थी।
ममता बनर्जी की भूख हड़ताल के बाद टाटा ने पश्चिम बंगाल में अपनी फैक्ट्री नहीं लगाई। इस घटना की वजह से ममता बनर्जी को काफी लोकप्रियता मिली और इसके 5 साल बाद यानी 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी सत्ता में आईं और पश्चिम बंगाल में तीन दशक से सरकार चला रहे वामपंथी दलों को उखाड़ फेंका।
Maharashtra Politics: सरकार बनने के एक महीने के अंदर महायुति में नया झगड़ा क्यों शुरू हो गया?

केसीआर ने भी किया था अनशन, बना था तेलंगाना राज्य
साल 2009 में तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अलग राज्य की मांग को लेकर आमरण अनशन किया था। उनके अनशन से दबाव में आई कांग्रेस ने 10 दिन के अंदर ही और तेलंगाना राज्य बनाने का वादा किया था लंबी कवायद के बाद 2014 में तेलंगाना राज्य बना और केसीआर इसके मुख्यमंत्री बने।
लोकपाल विधेयक को लेकर अन्ना हजारे की भूख हड़ताल
साल 2011 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की मांग को लेकर आमरण अनशन किया था। उन्होंने अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का ऐलान किया था लेकिन चार दिन से पहले ही तत्कालीन यूपीए सरकार उनकी मांगों पर सहमत हो गई थी और लोकपाल विधेयक का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया था। संसद द्वारा 2013 में लोकपाल विधेयक पारित किया गया था। इस आंदोलन से ही आम आदमी पार्टी निकली और अरविंद केजरीवाल इसके नेता बने।
नायडू ने किया था अनशन
इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी तमिलनाडु के लिए विशेष दर्जे की मांग को लेकर 2018 में भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। नायडू इस हद तक आगे बढ़ गए थे कि उन्होंने सहयोगी बीजेपी के साथ अपने राजनीतिक रिश्ते तोड़ लिए थे। हालांकि अब वह फिर से बीजेपी के साथ आ गए हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता से नेता बने हार्दिक पटेल ने 2018 में पाटीदार युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण और कृषि ऋण माफी की मांग को लेकर अनशन किया था।
कृषि कानूनों के खिलाफ हुई थी क्रमिक भूख हड़ताल
साल 2020 में जब बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार तीन कृषि कानून लाई थी तो किसानों ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। इस दौरान किसानों ने क्रमिक भूख हड़ताल की थी और कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पुरजोर ढंग से उठाई थी। बाद में मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया था।
मराठा आरक्षण को लेकर भूख हड़ताल
सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने बीते कुछ सालों में महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर कई बार अनशन किया। उनके लगातार अनशन करने के बाद महाराष्ट्र की सरकार को नौकरियों और एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में 10% रिजर्वेशन लागू करना पड़ा था।
बीते साल अक्टूबर में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 21 दिन तक भूख हड़ताल की थी। सोनम वांगचुक ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा के उपाय करने की मांग को लेकर यह हड़ताल की थी।