बर्फीले पहाड़ों पर हजारों फीट की ऊंचाई पर देश की सरहदों की रक्षा करने वाले भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) जवानों को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से हुई तबाही के बाद आईटीबीपी के जवान वहां फंसे लोगों को बाहर निकाल रहे हैं। जोशीमठ मलेरिया राजमार्ग पर बीआरओ पुल भी पूरी तरह से तबाह हो गया है। जवानों ने एक मुश्किल ऑपरेशन चलते हुए अबतक 16 लोगों को मौत के मुंह से सुरक्षित निकाला है।

हिमालय की गोद में बैठ पहरा देने वाले इन जवानों से चीन भी खौफ खाता है। आईटीबीपी का गठन 24 अक्टूबर, 1962 को भारत चीन सीमा संघर्ष के दौरान किया गया था। तब से आईटीबीपी भारत-चीन सीमा पर सुरक्षा के लिए तैनात हैं। बल की उच्चतम सीमा चौकी 18, 800 फीट पर स्थित है और कई सीमा चौकियों पर तापमान शून्य से 45 डिग्री तक नीचे चला जाता है। आईटीबीपी देश का अग्रणी अर्धसैनिक बल है। इस बल के जवान अपनी कडी ट्रेनिंग एवं व्यावसायिक दक्षता के लिए जाने जाते हैं तथा किसी भी हालात व चुनौती का मुकाबला करने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं।

वर्षभर हिमालय की गोद में बर्फ से ढंकी अग्रिम चौकियों पर रहकर देश की सेवा करना इनका मूल कर्तव्य है, इसलिए इनको ‘हिमवीर’ के नाम भी जाना जाता है। मौजूदा समय में आईटीबीपी की कुल 56 सर्विस बटालियन, 4 स्पेशल बटालियन और 17 ट्रेनिंग सेंटर हैं। आईटीबीपी के लगभग 90000 सैनिक देश की सेवा कर रहे हैं। साल 2004 के बाद भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर की सरहद की सुरक्षा का पूरा जिम्मा आईटीबीपी के कंधों पर है।

पाकिस्तान से हुए 1971 के युद्ध में इसकी दो पलटनों ने श्रीनगर और पुंछ क्षेत्र में घुसपैठियों के ठिकानों के अनेक क्षेत्रों की पहचान/पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के विशेष कार्य को अंजाम दिया था। इस अभियान के लिए इनकी काफी सराहना हुई थी। 1978 में राष्ट्रीय आदेशों ने बलों की भूमिका को पुनः परिभाषित किया जिससे इसके मूल स्वभाव में परिवर्तन किया गया। एक बहुआयामी बल बनाने के लिए इसे विविध कार्य सौंपे गए।