धराली गांव में आई अचानक आई बाढ़ में कई लोगों के मारे जाने की आशंका है और अधिकारियों का अनुमान है कि 60 से ज्यादा लोग लापता हैं। अब तक दो शव निकाले जा चुके हैं और बचाव अभियान शुक्रवार को चौथे दिन भी जारी रहेगा। उत्तरकाशी आपदा ने कई लोगों को कभी ना भूलने वाले जख्म दिए हैं। मंगलवार को दोपहर डेढ़ रजनीश पंवार स्थानीय मंदिर में फूल चढ़ा रहे थे। वहीं कोलकाता के डॉ. सुमन मलिरतीय अपने दो साथियों के साथ सोमेश्वर मंदिर में आयोजित उत्सव में शामिल होने के लिए पास के मुखबा गांव में थे। फिर अचानक से एक बहुत ही तेज धमाके की आवाज सुनी। उन्होंने ऊपर देखा तो पानी का एक पहाड़ गांवों में गिर रहा था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ ही पल में सब कुछ बदल गया। पंवार ने इस आपदा में अपने चचेरे भाई आकाश को खो दिया। उन्होंने बताया कि वह मंगलवार दोपहर एक बजे के बाद तक बाजार में ही थे। उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘मेरा घर बस पांच मिनट की दूरी पर है और मैं दोपहर का खाना खाने घर जा रहा था, तभी मुझे लगा कि मुझे मंदिर जाना चाहिए। मैं अपनी मां को बताकर वहां पहुंचा। मंदिर में पूजा चल रही थी और मेरे चारों ओर ढोल-नगाड़े गूंज रहे थे। लेकिन जैसे ही फूल चढ़ाने की मेरी बारी आई, मुझे बम फटने जैसी आवाज सुनाई दी।’

पंवार ने कहा, ‘ढोल बजना बंद हो गए और हमने नदी के उस पार से लोगों की चीखें और सीटी बजने की आवाजें सुनीं। पानी का एक बड़ा हिस्सा तेजी से हमारी ओर आ रहा था। हम सब छिपने के लिए इधर-उधर भागे और पहाड़ी पर चढ़ गए।’ पंवार का घर पानी के रास्ते में नहीं था, हालांकि उनके रिश्तेदार का होटल पानी में बह गया। पंवार ने कहा, ‘पूरे दिन बारिश होती रही, लेकिन किसी ने भी इतनी बड़ी घटना की उम्मीद नहीं की थी।’

हर तरफ चीख-पुकार मच गई – सेमवाल

गंगोत्री के पुजारियों में से एक सेमवाल बाढ़ आने पर मंदिर में पूजा करने के लिए पैतृक गांव मुखबा गए हुए थे। पुजारी ने कहा, ‘बारिश हो रही थी और जब मैं अपने घर से बाहर निकला तो ग्रामीण धीरे-धीरे मंदिर में इकट्ठा हो रहे थे। हालांकि, इससे पहले कि मैं आगे बढ़ पाता, एक गर्जना भरी आवाज ने मेरा ध्यान भटका दिया। फिर पानी, मलबा और धूल का गुबार आया। हमें कुछ समझ आने से पहले ही हर कोई चीख-पुकार और सीटियां बजा रहा था, लेकिन कुछ नहीं किया जा सका।’

उत्तरकाशी में 225 सैनिकों, 61 हेलिकॉप्टरों की मदद से जारी बचाव अभियान

अचानक पानी का लेवल बढ़ गया – जगविंदर कुमार

वहीं जगविंदर कुमार ने बताया, ‘मैं दौड़कर बाहर गया और समझ नहीं पाया कि आवाज कहां से आ रही है। अचानक पानी का स्तर बढ़ गया और मैंने अपने पड़ोसी को फोन किया, जो धराली में काम करता है। उसने फोन उठाया और मैं चिल्लाया। कुछ गड़बड़ होने का आभास पाकर वह बाहर निकल आया। तभी एक भयानक लहर के रूप में मलबा आया। तब तक वह पुल के पास पहुंच चुका था, मौत और तबाही से दूर।’

भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ. मलिक को अभी भी वह भयानक पल याद हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हम बहुत अच्छा समय बिता रहे थे, एक दिन पहले गंगोत्री गए थे और हर्षिल में घूमे थे। हम धराली और हर्षिल से तस्वीरें ले रहे थे और उन्हें अपने दोस्तों और परिवार वालों को भेज रहे थे। वे इस क्षेत्र की सुंदरता देखकर दंग रह गए।’

एक आदमी इमारत की दूसरी मंजिल से कीचड़ में कूद गया- मलिक

डॉ. मलिक ने आगे कहा, ‘हालांकि सभी चीखने-चिल्लाने, सीटियां बजाने और अपने परिचितों को फोन करने लगे, लेकिन नदी के शोर और नीचे मंदिर में बज रहे ढोल-नगाड़ों के बीच किसी की भी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। हमने लोगों को भागते हुए देखा। कुछ लोग अपनी इमारत के साथ बह गए और उन्हें बीच रास्ते में ही इसका एहसास हुआ। एक आदमी इमारत की दूसरी मंजिल से कीचड़ में कूद गया, लेकिन कुछ लोगों ने उसे गाड़ी में बिठाने में मदद की। कुछ लोगों ने अपने दरवाजे खोले तो देखा कि उनके सामने कीचड़ ही कीचड़ है और भागने की कोई जगह नहीं है।’

मलिक ने कहा, ‘कल्प केदार मंदिर में महिलाएं यज्ञ कर रही थीं, एक राजनीतिक दल की बैठक चल रही थी और हम जैसे टूरिस्ट घूम रहे थे, लेकिन गांव के एक तरफ के लोग ही सुरक्षित बच सकते थे। ये तस्वीरें मेरे जहन में बसी हुई हैं।’ मलिक ने बताया, ‘एनडीआरएफ ने हमें अपने सैटेलाइट फोन दिए ताकि हम दो मिनट के लिए घर पर फोन करके उन्हें शांत कर सकें। मेरे भाई ने वीडियो देखकर घबराकर संस्थान को फोन किया था।’ पहाड़ों को मैदान बनाने की सजा भुगत रहा उत्तरकाशी