दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पासपोर्ट रखना हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। अथॉरिटी महज पासपोर्ट के दुरूपयोग की आशंका पर इसको रिन्यू करने से इनकार नहीं कर सकते। अदालत ने यह टिप्पणी पासपोर्ट में दर्ज जन्मतिथि में बदलाव करने का आग्रह करने वाले निशांत सिंघल की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

हाईकोर्ट ने कहा कि पासपोर्ट से इनकार करना एक नागरिक के अधिकारियों को गंभीर रूप से बाधित करता है। अधिकारी कानून में बताए गए आधार पर ही पासपोर्ट का नवीनीकरण करने से इनकार कर सकते हैं या इसे रद कर सकते हैं। मौजूदा मामले में अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पासपोर्ट को जन्मतिथि के साथ अपडेट करने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि सुधार का दावा वास्तविक नहीं लगता है।

पासपोर्ट प्राधिकरण के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता को पहला पासपोर्ट जारी किए हुए करीब 14 साल बीत चुके हैं। अगर इसको रिन्यू किया जाता है या नई जन्मतिथि के साथ फिर से जारी किया जाता है तो वह दस्तावेज का दुरुपयोग कर सकता है।

जस्टिस सुब्रमण्यम बोले- कानून के मुताबिक ही छीना जा सकता है अधिकार

अदालत ने आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि अधिकारियों ने याची के रिन्यूवल एप्लीकेशन को खारिज करने का कोई आधार नहीं बताया। जबकि आवेदन को वैध सरकारी दस्तावेजों के साथ भरा गया था। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने एक आदेश में कहा कि हर नागरिक के पास पासपोर्ट रखने का कानूनी अधिकार है। इसे कानून के मुताबिक ही छीना जा सकता है।

आदेश में कहा गया है कि मौजूदा मामले में रिट डालने वाले शख्श ने सिर्फ यह आशंका जताई है कि 11 फरवरी 2003 और दो जुलाई 2007 को जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर जारी किए गए पहले के पासपोर्ट का दुरुपयोग किया गया हो सकता है। ये पासपोर्ट जारी करने से इनकार का वैध कारण नहीं है। अदालत ने कहा है कि याचिकाकर्ता के माता-पिता की गलती के लिए याचिकाकर्ता को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं।

पासपोर्ट का नवीनीकरण करने से इनकार करने के आदेश को खारिज करते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि याची की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक बदली हुई जन्मतिथि के साथ नया पासपोर्ट जारी किया जाए।