Delhi Assembly Election 2020: दिल्ली में शायद उस दिन सभी की आंखें फटी रह गईं जब 22 हजार शिक्षक और उनके परिजन बाल मुंडवाकरआत्मदाह की धमकी देकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चेतावनी देने के लिए बीते साल सड़क पर उतर गए। वे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर के बाहर प्रदर्शन करते हुए पुलिस की लाठी भी खाने में पीछे नहीं रहे। आनन फानन में केजरीवाल ने कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई और 22 हजार अतिथि शिक्षकों के भविष्य पर बड़ा फैसला लेने का ऐलान किया।

स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी उपराज्यपाल को पत्र लिखकर इन शिक्षकों के बारे में आगे की योजना के बारे में जानकारी ली। अतिथि शिक्षकों ने हरियाणा सरकार की तरह 58 साल की पालिसी की मांग को लेकर मुंडन कराया। पीड़ित शिक्षकों में शामिल अरुण डेरा का कहना था कि कई अतिथि शिक्षक ऐसे हैं जो घर में अकेले कमाने वाले हैं। उनके पास आत्मदाह के सिवा कोई चारा नहीं है। आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के सदस्य शोएब राणा ने बताया था कि लगातार अपनी मांगों के लिए सरकार को ज्ञापन दिया गया और जब कोई परिणाम नहीं निकला तो शिक्षक सड़क पर उतर गए और स्थिति यहां तक पहुंच गई।

यही स्थिति दिल्ली नगर निगमों की भी है। निगम में भी साल 2001 से इसी प्रकार के अनुबंधिक शिक्षक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां तो स्थिति और भी विकट है। करीब ढाई हजार शिक्षकों के इस परिवार में आठ हजार वोट हैं। वे इस चुनाव में अपने फैसले को चुनावी मुद्दा बनाने पर आमदा हैं।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों के शिक्षकों की संस्था अनुबंधित शिक्षक एकता मंच के प्रधान प्रवीण कुमार कहते हैं कि यह कितना दुर्भाग्य है कि जिस शिक्षा के पेशे को लोग इतना महत्त्वपूर्ण और बच्चों के भविष्य बनाने के रूप में देखते हैं उसी शिक्षक की हालत कितनी दयनी बनी हुई है।

उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी निगम में इस प्रकार के करीब ढाई हजार शिक्षक हैं जो साल 2001 से अपने अनुबंध को लेकर एक नीति बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें पहले तो दस महीने का अनुबंध दिया जाता था लेकिन अब तो निगम ने हद ही कर दी। उन्हें दो महीने और तीन महीने के टुकड़ों में अनुंबध पर नौकरी दी जा रही है।

साल 2015 में वे लोग निगम को घेरने के लिए जमा हुए थे और तब पुलिस भी बुलानी पड़ी थी। आखिर उनके लिए 58 साल की नीति क्यों नहीं बनाई जा रही ताकि वे अपने बाल बच्चों के लिए भी कुछ कर सकें। प्रवीण कुमार कहते हैं कि इस बार चुनाव में वे अपने इसी मुद्दे को लेकर फैसला लेने वाले हैं। वे अपने शिक्षकों की बैठककर यह तय करेंगे कि जो सरकार उनकी मांग नहीं मान रही उसे वोट दिया जाए या फिर जो सिर्फ आश्वासन देकर उन्हें अपनी ओर खींचने की कोशिश करते रहें है, उन्हें सबक सिखाया जाए।

दिल्ली सरकार के स्कूलों से एक जुलाई 2019 को बाहर किए जा चुके करीब 1500 से ज्यादा अतिथि शिक्षकों को सरकार ने एक और मौका देने का ऐलान किया था। आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन ने उन्हें वापस स्कूलों में ज्वाइनिंग को लेकर दिल्ली सरकार और सांसद मनोज तिवारी से मुलाकात कर उन्हें नन सीआईईटी को मौका देने कहा था। आल इंडिया गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के सदस्य शोएब राणा का कहना था कि लंबे समय से संगठन 60 साल की पालिसी की मांग कर रहा है। साथ ही नन सीआईईटी गेस्ट टीचर्स को कम से कम दो बार सीटेट करने का मौका दिया जाने को संघर्षरत था। बता दें कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में तकरीबन 22 हजार गेस्ट टीचर्स पढ़ा रहे थे। एसोसिएशन के नेता प्रवीण तोबड़िया ने कहा था कि ‘आप’ अतिथि शिक्षकों को पक्का करने के वादे को लेकर सत्ता में आई थी लेकिन उसने इस पूरा नहीं किया।

दिल्ली सरकार को बस दिल्ली की जनता को फ्री में बांटने से फुरसत नही है। सरकार को 22 हजार परिवारों के चूल्हे नजर नहीं आ रहे। एसोसिएशन ने मांग की है कि यदि उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ तो फिर चुनाव में उन्हें भी कोई फैसला लेने को मजबूर होना पड़ेगा।