किसी प्रशिक्षित अभिनेता के लिए बीस सालों का संघर्ष कम नहीं होता। वह भी ऐसा अभिनेता जो अभिनय के दौरान संवाद अदायगी के बीच खामोशी, अंतराल का महत्व समझता हो और जिसका अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण हो। 1988 में ‘सलाम बॉम्बे’ में छोटी-सी भूमिका से इरफान ने शुरुआत की, तब उन्हें कोई नहीं जानता था। अगले 15 सालों तक संघर्षरत अभिनेता के रूप में इरफान काम करते रहे। 2003 में किसी पुच्छल तारे की तरह उनकी चमक मुंबई फिल्मजगत ने ‘हासिल’ के रणविजय के रूप में देखी। मगर मुंबइया निर्माताओं में उन्हें लेकर झिझक थी।
यह झिझक ‘मकबूल’ और ‘आॅन- मैन एट वर्क’ (2004) तक बनी रही। ‘आन’ का गैंगस्टर यूसुफ पठान (इरफान) उसे गिरफ्तार करने आई पुलिस को देखकर बिना घबराए बोतल से अपने बच्चे को दूध पिलाता रहता है और पत्नी से कहता है कि इसे देखना अभी वापस आता हूं। इस एक सीन से गैंगस्टर के किरदार के साथ ही इरफान का कद भी बढ़ा। इसने मुंबई के निर्माताओं को चौंका दिया। इरफान की पूछ-परख होने लगी। झिझक की सारी दीवारें टूटी ‘बिल्लू’ (2009) में जब निर्माता शाहरुख खान ने अपनी भूमिका को कमजोर रख केंद्रीय भूमिका में इरफान को मौका दिया। फिल्म ने शाहरुख खान की नहीं मगर इरफान खान की किस्मत बदल दी।
सन 1998 में फिल्मों को उद्योग का दर्जा मिला और कॉरपोरेट कंपनियां इस ऊंची विकास दर वाले उद्योग में आने लगीं। ये फिल्मजगत में छोटे बजट की फिल्में बनाने लगीं, जिनसे फायदा मिला इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और राजकुमार यादव जैसे कलाकारों को। इरफान को आदित्य चोपड़ा की ‘न्यू यॉर्क’ (2009) मिली। इसी साल 11 निर्देशकोें द्वारा बनी ‘न्यू यॉर्क आइ लव यू’ कई फिल्मोत्सवों में दिखाई, जिसने इरफान के लिए वह अंतरराष्ट्रीय सुरंग बना दी, जो मीरा नायर 1988 में नहीं बना पार्इं थीं। इस प्रयोग से भारतीय कॉरपोरेट कंपनियां चौंकी।
अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों के लिए फिल्में बना कर दुनिया में अपने ब्रांड का प्रमोशन करने का उनके लिए अच्छा मौका था। इसका फायदा उठाने के लिए आगे आई यू टीवी। अक्षय कुमार की पत्नी ट्ंिवकल खन्ना की साझेदारी में ‘थैंक्यू’ और विशाल भारद्वाज की साझेदारी में ‘सात खून माफ’ जैसी यू टीवी की फिल्मों में इरफान को मौका दिया। यू टीवी ने इरफान को लेकर 2012 में ‘पान सिंह तोमर’ बनाई, जिसके बाद इरफान को लेकर मुंबई फिल्मजगत की सारी झिझक टूट गई। इरफान बहुत तेजी से अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के तौर पर उभरे। इसमें मदद की ‘द अमेजिंग स्पाइडरमैन’ ने।
हॉलीवुड कंपनी कोलंबिया पिक्चर्स की इस फिल्म में इरफान काम नहीं करना चाहते थे। अपने बेटे की सिफारिश के बाद उन्होंने हां कहा। दरअसल फिल्म के निर्देशक मार्क वेब्ब इरफान की सीरियल ‘इन ट्रीटमेंट’ देखकर उनके दीवाने हो गए थे।
बॉलीवुड पहले ही इरफान का दीवाना था। अब हॉलीवुड पर इरफान की दीवानगी छा रही थी। हॉलीवुड की मशहूर कंपनी ट्वेन्टीथ सेंचुर फॉक्स की आंग ली निर्देशित ‘लाइफ आॅफ पई’ (2012) और जुरासिक पार्क की चौथी कड़ी ‘जुरासिक वर्ल्ड’ (2015) ने इरफान के लिए हॉलीवुड के दरवाजे खोल दिए। 2013 में दस निर्माताओें (जिनमें अनुराग कश्यप, करण जौहर, यूटीवी शामिल थे)ने मिलकर एक फिल्म बनाई ‘लंच बॉक्स’। 22 करोड़ की इस फिल्म ने बॉक्स आॅफिस पर सौ करोड़ का धंधा किया। उत्तरी अमेरिका में दिखाने के लिए इसके अधिकार सोनी पिक्चर्स क्लासिक ने खरीदे।
इस फिल्म से इरफान की प्रतिष्ठा और बढ़ी। 2017 में एक और कॉरपोरेट कंपनी टी सीरीज ने दिनेश विजन के साथ मिलकर 14 करोड़ बजट की ‘हिंदी मीडियम’ बनाई, जिसने बॉक्स आॅफिस पर तीन सौ करोड़ से ज्यादा का धंधा किया और बॉलीवुड के निर्माता देखते गए। फिल्म में कोई सुपर स्टार नहीं था। भव्य सेट्स नहीं थे। यह था आम-से नजर आने वाले इरफान का जलवा, जिसके क्या बॉलीवुड, क्या हॉलीवुड, क्या दर्शक सभी दीवाने थे।