आईएनएक्स मीडिया मामले (INX Media Case) में सुप्रीम कोर्ट ने देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम को जमानत देते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की दलीलों की धज्जियां उड़ा दीं। सीबीआई ने चिदबंरम की बेल याचिका के विरोध में जो भी तर्क पेश किए उनको लेकर सर्वोच्च अदालत संतुष्ट नहीं हुआ। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें पूर्व गृहमंत्री की जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की उस दलील में भी कोई दम नहीं पाया, जिसमें कहा गया था कि चिदंबरम को अगर जमानत मिलती है तो वह केस से संबंधित गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।

गौरतलब है कि सीबीआई ने कथित भ्रष्टाचार के मामले में चिदंबरम को 21 अगस्त को गिरफ्तार किया था और वह 5 सितंबर से न्यायिक हिरासत के तहत तिहाड़ जेल में बंद हैं। हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की हिरासत में होने के चलते अभी वह तिहाड़ में 24 अक्टूबर तक रहेंगे। 17 अक्टूबर को ईडी ने मनी लॉन्डिरिंग के मामले में पूछताछ के बाद चिदंबरम को गिरफ्तार किया था, जिन्हें एक हफ्ते के लिए ईडी की रिमांड पर भेजा गया है।

जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के निष्कर्ष, जिसमें चिदंबरम की जमानत याचिका को इस आधार पर खारिज किया गया कि वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, यह किसी भी तरह तथ्यों को पुष्ट नहीं करता है और यह सिर्फ एक आम धारणा बनाने और विशुद्ध रूप से काल्पिनक सोच को दर्शा रहा है। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता कोई ‘फ्लाइट रिस्क’ (फरार होने वाले) नहीं है और (चिदंबरम पर) लगाई गईं शर्तों के मद्देनज़र, ट्रायल से भागने की कोई संभावना ही नहीं है। अभियोजन पक्ष का बयान कि अपीलकर्ता ने गवाहों को प्रभावित किया है और आगे भी उसके द्वारा प्रभावित होने की संभावना है, यह जमानत देने से इनकार का आधार नहीं हो सकता है, वह भी तब जब अभियोजन पक्ष द्वारा दायर 6 रिमांड एप्लीकेशंस में इस तरह की बातों का कोई जिक्र नहीं है।”

पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता और सह-आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र 18-10-2019 को दायर किया गया। अपीलकर्ता 21-08-2019 से लगभग दो महीने के लिए हिरासत में है। सह-आरोपियों को पहले ही जमानत दे दी गई थी। अपीलकर्ता की आयु 74 वर्ष बताई गई है और यह भी कहा जाता है कि यह स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। उपरोक्त कारणों और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हमारा विचार विचार है कि याचिकाकर्ता जमानत हासिल करने का हकदार है।”