आयकर दाताओं, पेंशन प्रावधान और किसानों के लिए छूट की जो घोषणाएं की गई हैं, उनसे सरकारी खजाने पर 75 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा। सरकार ने धन का आबंटन मात्र चालू वित्तीय वर्ष के लिए किया है। केंद्र सरकार के अंतरिम बजट में की गई लोकलुभावन घोषणाओं से आने वाली सरकार की चुनौतियां बढ़ी हैं। किसानों और आयकर दाताओं के लिए किए गए प्रावधानों को आगे बढ़ाने के लिए खजाने पर बढ़े अतिरिक्त भार के साथ ही नई लकीर खींचने की चुनौती होगी। देश में अब तक 12 अंतरिम बजट पेश किए जा चुके हैं। यह पहली बार है कि अंतरिम बजट में सरकार ने पूर्ण बजट की तरह बड़े एलान किए हैं। सरकार को अंतरिम बजट में करों में बदलाव की संवैधानिक छूट प्राप्त है। हालांकि अतीत में जितने भी अंतरिम बजट लाए गए, उनमें इस भाव का सम्मान किया जाता रहा कि सरकार कुछ महीनों के लिए ही है, इसलिए बड़े नीतिगत बदलाव और नई योजनाओं के एलान नहीं किए जाएं।

लोकसभा चुनाव के बाद जो नई सरकार बनेगी, नियमत: उसे ही पूर्ण बजट पेश करने का अधिकार होगा। मौजूदा सरकार ने अंतरिम बजट में जो घोषणाएं की हैं, वे मध्यम वर्ग के लिए लोकलुभावन बताए जा रहे हैं। अगर आने वाली सरकार इस फैसले में संशोधन करना चाहे तो उसे इससे भी बड़ी घोषणा करनी होगी। प्रभारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करने के बाद कहा भी अगर उनकी सरकार दोबारा आई तो वह आयकर स्लैब में बढ़ोतरी करेंगे। जाहिर है, सरकार के सामने खजाने पर बढ़ने वाले बोझ के प्रबंधन की चुनौती होगी।

केंद्र की भाजपा नीत सरकार ने शुक्रवार को अपने कार्यकाल का आखिरी और अंतरिम बजट पेश किया। कुछ ही महीने में देश में आम चुनाव होने हैं। कार्यकाल पूरे कर रही सरकार प्रथा के अनुसार अंतरिम बजट पेश करती है, और कई बार अंतरिम बजट की जगह लेखानुदान यानी वोट आॅन अकाउंट भी पेश किया जाता है। चूंकि मौजूदा सरकार के पास कार्यकाल का कुछ ही समय होता है, इसलिए नवगठित सरकार द्वारा पूर्ण बजट पेश करने तक का खर्च वहन करने के लिए सरकार को संसद से अनुमति लेनी होती है।

इस तरह के बजट में आम तौर पर सरकार की तरफ से कोई बड़ी घोषणाएं और नीतिगत फैसले नहीं लिए जाते। इसमें मात्र कुछ महीनों के आय और व्यय का ब्योरा भर होता है। मौजूदा सरकार अपने वित्तीय फैसले आने वाली सरकार पर नहीं थोप सकती। हालांकि संविधान में अंतरिम बजट का प्रावधान नहीं है, लिहाजा इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा माना गया है। मौजूदा सरकार उस परिस्थिति में अंतरिम बजट पेश करती है जब उसके पास पूर्ण बजट पेश करने का पर्याप्त वक्त नहीं होता या लोकसभा का चुनाव नजदीक होता है।

लोकसभा चुनाव के नजदीक होने की स्थिति में पूर्ण बजट पेश करने की जिम्मेदारी आने वाली नई सरकार पर होती है। संसद से पारित बजट के तहत सरकार को अगले 31 मार्च को खत्म होने वाले वित्त वर्ष तक ही खर्च करने का अधिकार मिलता है। अगर सरकार किसी कारण से अगले वित्त वर्ष के आरंभ से पहले बजट पेश नहीं कर पाई तो अगला पूर्ण बजट पेश किए जाने तक के खर्चों के लिए संसद की अनुमति लेनी होगी। इसलिए संसद अंतरिम बजट के जरिए लेखानुदान की मंजूरी देती है। चुनाव की स्थिति में लेखानुदान की अवधि अक्सर चार महीने की होती है।