उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय कैबिनेट में इस बार प्रदेश से सात नेताओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। हालांकि, इस फैसले से भाजपा के वरुण गांधी और जितिन प्रसाद जैसे कई बड़े चेहरे अलग-थलग भी पड़ गए हैं। वहीं, अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल, जिन्हें स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्यमंत्री पद दिया जाना था, उन्हें भी आखिर क्षण में सिर्फ राज्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा। इस बार यूपी से नए मंत्रियों में ओबीसी और एससी वर्ग का बोलबाला रहा, जबकि सिर्फ एक ही ब्राह्मण नेता को मौका दिया गया, जबकि यह समुदाय राज्य में एक प्रभावशाली वर्ग है।

माना जाता है कि यूपी से आने वाले मंत्रियों में आखिरी मिनट में जो बदलाव हुए, उनमें सीएम योगी आदित्यनाथ का काफी प्रभाव रहा। दरअसल, योगी बार-बार जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा की जीत की बात कहते रहे हैं। हालांकि, एक बात यह भी है कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव अधिकतर पैसे और ताकत का बोलबाला रहा है।

पार्टी के स्थानीय चुनावों में प्रदर्शन का एक उदाहरण जिला पंचायत में जीती गई सीटों से मिलता है, जहां समाजवादी पार्टी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। यहां तक कि एक समय तो इन नतीजों की वजह से नई दिल्ली में यह तक चर्चा थी कि यूपी में मुख्यमंत्री को बदला जाएगा। हालांकि, एक संघर्षशील योगी आदित्यनाथ को असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की तरह हटाना बिल्कुल भी आसान नहीं होना था।

कैबिनेट फेरबदल में एक चौंकाने वाला फैसला रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर की विदाई से जुड़ा रहा। दोनों ही नेताओं को को जिस तरह उनके पद से बेदखल किया गया, वह कहीं से भी सम्मानजनक विदाई नहीं थी। यहां तक कि दोनों को हटाए जाने की खबर को मीडिया में लीक होने से बचाने के लिए सरकार ने जो असल बयान जारी किया, उसमें सिर्फ 10 ही नेताओं के हटाए जाने की बात बताई। प्रसाद और जावड़ेकर को हटाए जाने की खबर शपथग्रहण समारोह से डेढ़ घंटे पहले ही सामने आई। बड़ी बात यह है कि इन दोनों के पद छोड़ने की खबर भी नए मंत्रियों के शपथग्रहण की खबर के बीच दब गई।

बताया जाता है कि जावड़ेकर अभी पार्टी के लिए काम जारी रख रहे हैं, वहीं प्रसाद को क्या भूमिका दी जाएगी, यह अभी तक साफ नहीं है। इस बीच हालिया कैबिनेट फेरबदल से जो एकमात्र पुराने नेता बच गए, वो हैं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। यहां तक कि संघ के बीच अच्छी पैठ रखने वाले नितिन गडकरी को भी अपना सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्म (MSME) का पोर्टफोलियो छोड़ना पड़ा है।