इंडस्ट्रियल एल्कोहल पर सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल पुराना आदेश पलट दिया है। इस आदेश को केंद्र सरकार के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है। असस में सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 की बहुमत से फैसला सुना दिया है कि राज्य सरकार के पास भी औद्योगिक शराब को भी रेगुलेट करने की ताकत राज्य सरकारों के पास रहने वाली है, इसे उनसे छीना नहीं जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या कहता है?
बड़ी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि कानून में द्योगिक और नशीली शराब के उत्पाद दोनों शामिल रखे जाएंगे। इसका मतलब यह है कि नशीली शराब पर भी कानून बनाने का अधिकार राज्य का रहने वाला है। जानकारी के लिए बता दें कि यह फैसला एक बड़ी बेंच ने सुनाया है जिसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़,जस्टिस हृषिकेश रॉय,जस्टिस अभय एस ओक,जस्टिस बी वी नागरत्ना,जस्टिस जेबी पारदीवाला,जस्टिस मनोज मिश्रा,जस्टिस उज्जल भुइयां,जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
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फैसले से क्या बदल जाएगा?
असल में 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर केंद्र सरकार के पास नियामक शक्ति रहेगी। लेकिन राज्यों ने ही उस फैसले को चुनौती दी थी और तब यह मामला 2010 में 9 जजों की बेंच के पास चला गया। उसके बाद से कई मौकों पर इस मुद्दे पर सुनवाई हुई है, केंद्र और राज्यों की दलीलों को समझा गया है। अब इतने सालों बाद 8:1 की बहुमत के साथ फैसला सुनाया गया है।
राज्य सरकार की क्यों जीत?
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस बात का भी जिक्र किया है कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 8, राज्यों को मादक मदिरा के निर्माण और बिक्री पर कानून बनाने का पूरा अधिकार देती है, दूसरी तरफ केंद्र सरकार के अधीन आने वाले उद्योगों की सूची संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में स्पष्ट रूप से दी गई है।