पारंपरिक युद्ध के क्षेत्रों- भूमि, वायु, समुद्र से लेकर अंतरिक्ष तक में साइबर सुरक्षा को लेकर बहस तेज हो गई है। अंतरिक्ष प्रणालियों में कोई भी घुसपैठ, आकस्मिक हमला उसे अस्थायी या स्थायी रूप से पंगु बना सकता है। इन प्रणालियों पर भोजन, पानी, संचार, बांध, रक्षा, ऊर्जा, वित्तीय, स्वास्थ्य देखभाल, परमाणु, परिवहन और अन्य महत्त्वपूर्ण संरचनाएं निर्भर हैं।
घुसपैठ या हमले की स्थिति में इन संरचनाओं को नुकसान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। हमलावर अब ‘एअर-गैप्ड सिस्टम’ को आसानी से ‘बाइपास’ अर्थात उसमें घुसपैठ करने लगे हैं। ‘एअर-गैप्ड सिस्टम’ अर्थात ऐसी सुरक्षा प्रणाली, जिसमें किसी कंप्यूटर अथवा नेटवर्क को बाहरी नेटवर्क/हमले से सुरक्षित रखने के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था होती है। अब आपूर्ति शृंखलाओं से जुड़े साफ्टवेयर/हार्डवेयर या अंतरिक्ष प्रणालियों में घुसपैठ आसान हो सकता है। भारत में परमाणु संयंत्रों और अंतरिक्ष एजंसियों सहित भारत के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों को लेकर सरकार ने अहम कदम उठाए हैं।
वैश्विक क्षमता प्रदर्शन
रूस, अमेरिका (यूएस), चीन, ईरान, उत्तर कोरिया और इजÞराइल ने अपनी सैन्य अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा क्षमताओं को लचीला बनाए रखा है, जबकि जापान, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और इंग्लैंड ऐसा करने में तेजी दिखा रहे है। इतना ही नहीं, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामरिक समर्थन बल ने तो अपनी अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध क्षमताओं को केंद्रीकृत कर लिया है।
संभावित साइबर हमला करने की क्षमता रखने वालों में गुप्त सरकारी संस्थाओं के अलावा आतंकवादी संगठन, अराजक अथवा विध्वंसक तत्व, राजनीतिक अपराधी, कंप्यूटर सेंध लगाने वाले (हैकर), वाणिज्य प्रतियोगी, किसी संस्थान में मौजूद धूर्त अथवा बेईमान अंदरूनी सूत्र, असंतुष्ट कर्मचारी, विश्वसनीय लेकिन लापरवाही व्यापार भागीदार अथवा शरारती अंतरिक्ष यात्री शामिल हो सकते हैं।
इनमें से अधिकांश के पास एसमेट्रिक अर्थात विषम हमले करने की क्षमता होती है और ये सभी ‘क्रेडिबल डिटरेंस’ अर्थात ‘विश्वसनीय प्रतिरोध‘ की प्राकृतिक गतिशीलता से इम्यून अर्थात प्रतिरक्षित रहते हैं। इतना ही नहीं ये सभी ‘पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश‘ की नाजुक धारणा से भी मुक्त होते है। एअरोस्पेस कारपोरेशन का एसपीएआरटीए अर्थात स्पार्टा (स्पेस अटैक रिसर्च एंड टैक्टिक एनालिसिस), जो एमआइटीआरई एटीटीएंडसीके प्रतिकूल रणनीति और तकनीकों का विस्तार है।
विदेशी प्रणाली पर निर्भरता
इस वक्त दुनिया में तेल और गैस, दूरसंचार, बिजली, आपदा प्रबंधन, विनिर्माण, लाजिस्टिक्स्, डिलीवरी सर्विसेस अर्थात वितरण सेवाएं, सार्वजनिक परिवहन, ई-कामर्स, बीमा, कानून प्रवर्तन, रक्षा कार्यक्षेत्र और उनकी आपूर्ति शृंखला जैसे क्षेत्र, वैश्विक स्थिति, नेविगेशन अर्थात दिक्चालन पर निर्भर करते है। दुनिया भर में केवल चार ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) है : अमेरिका का जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम), रूस का जीएलओएनएएसएस, चीन का बीईआइडीओयू अर्थात बीडौ नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम और यूरोप का गैलीलियो नेविगेशन सिस्टम इसमें शामिल है।
इस वक्त भारत भी समय तुल्याकलन को सुव्यवस्थित करने, विदेशी जीएनएसएस पर अपनी निर्भरता को घटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा में इजाफा करने की दृष्टि से भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के तहत नैवआइसी (एनएवीआइसी) (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन) को विकसित कर रहा है। यह भारतीय भूभाग पर 10 मीटर से कम और हिंद महासागर पर 20 मीटर से कम की संपूर्ण सटीकता के साथ सही स्थिति महज नैनो सेकंड में मुहैया करवाने में सक्षम है।
राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक दोनों मिलकर भारतीय साइबर सुरक्षा संरचना और नीतियों को एकीकृत करने का प्रयास कर रहे है। इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक राष्ट्रीय मसविदा साइबर सुरक्षा रणनीति भी तैयार की गई है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के पास विचाराधीन है, लेकिन इसमें स्पेस अर्थात अंतरिक्ष से जुड़े तत्वों का अभाव दिखाई देता है।
दिलचस्प बात यह है कि डेटा सिक्योरिटी काउंसिल आफ इंडिया ने 2020 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति का मसविदा तैयार किया था। इसमें परमाणु संयंत्रों और अंतरिक्ष एजंसियों सहित भारत के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों को लक्षित किए जाने की अर्थात उन पर हमले किए जाने का उल्लेख तो किया था, लेकिन अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा को लेकर इसमें कुछ नहीं कहा गया था।
इस स्थिति को बदलना जरूरी बताया जा रहा है। राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति के एक अभिन्न अंग के रूप में, युद्ध के पांच क्षेत्रों एल-ए -एस-एस-सीवाई को महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के साथ एकीकृत करना जरूरी हो गया है। सुरक्षा और सैन्य कार्य के साथ ही संचार व्यवस्था भी अहम अंतरिक्ष अवसंरचना पर निर्भर है।
भारत में इंतजाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 सितंबर 2018 को डिफेंस साइबर एजंसी (डीसीए) और डिफेंस स्पेस एजंसी अर्थात रक्षा अंतरिक्ष एजंसी (डीएसए) के गठन को स्वीकृति प्रदान कर दी है। डीसीए पूर्णत: क्रियाशील है। दूसरी ओर डीएसए का भूमि, वायु, समुद्र और साइबर थिएटर अर्थात युद्ध क्षेत्र के साथ एकीकरण का कार्य प्रगति पथ पर है।
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को पंच युद्ध क्षेत्र के साथ एकीकृत करने का काम लंबे समय से अटका पड़ा है। इस एकीकरण के चलते एकीकृत युद्ध सिद्धांत स्पष्ट हो सकेगा। इस एकीकृत युद्ध सिद्धांत की वजह से भारत में एक पर्पल क्षमता (जो आक्रमण (लाल) और रक्षा (नीला) को जोड़ती है) का निर्माण होगा।
क्या कहते हैं जानकार
साइबर सुरक्षा के मामले में भारत की क्षमता इसके डिजिटाइजेशन के पैमाने और गति का मुकाबला करने में पिछड़ती रही है। इसमें खतरों की जटिलता की भी अपनी भूमिका है। यह साझा कार्रवाई करने, रणनीतियां बनाने और उन्हें प्रभावी तरीके से लागू करने की हमारी क्षमता के लिए चुनौती है।
- लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार
भारत को अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। प्रतिद्वंद्वी ने अंतरिक्ष क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है, जिसका मुकाबला करने के लिए भारत को अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करना होगा। यह जरूरी है कि भारत अपना खुद का साइबर-सुरक्षा, अंतरिक्ष-आधारित और उच्च गति वाला लचीला संचार तैयार करे।
- जनरल अनिल चौहान, सीडीएस