केंद्र सरकार पांच साल बाद फिर से पैसेंजर ट्रेनों के किराए में बढ़ोतरी पर सक्रिय रूप से विचार कर रही है। इससे पांच साल पहले जब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आई थी, तब यात्री किराए में बढ़ोत्तरी की गई थी। सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि मौजूदा वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले ही इसे लागू करने की दिशा में कोशिशें जारी हैं। बशर्ते कि राजनीतिक समीकरणों का ख्याल रखते हुए सरकार की तरफ से इसकी हरी झंडी मिल जाय।
गुरूवार (26 दिसंबर) को जब रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी. के. यादव से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि रेलवे यात्री और माल भाड़ा दरों को “तर्कसंगत” बनाने की प्रकिया में कोशिशें जारी हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया के तहत क्या किराया बढ़ाया जायेगा इस बारे में बताने से उन्होंने इनकार कर दिया। यादव ने कहा कि भारतीय रेल ने घटते राजस्व से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। किराया बढ़ाना एक “संवेदनशील” मुद्दा है और अंतिम फैसला लेने से पहले इस पर लंबी चर्चा की जरूरत होगी।
उन्होंने कहा, “हम किराया और माल भाड़े की दरों को तर्कसंगत बना रहे हैं। इस पर सोच-विचार किया जा रहा है। मैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता, यह एक संवेदनशील विषय है। चूंकि माल भाड़े का किराया पहले से अधिक है, हमारा लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा यातायात को सड़क से रेलवे की ओर लाना है।”
जब यही सवाल रेलवे बोर्ड के प्रवक्ता आर डी वाजपेयी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पैसेंजर ट्रेन के यात्री किराए में फिलहाल बढ़ोत्तरी का कोई प्लान नहीं है। उन्होंने कहा कि किराए को तर्कसंगत बनाने का मतलब किराया घटाना भी हो सकता है। इसका मतलब यही नहीं होता कि किराया बढ़ाया जाएगा। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि महीनों से किराया बढ़ाने का एक प्रस्ताव सरकार के पास है, क्योंकि रेलवे को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।
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आर्थिक नरमी से भारतीय रेल की आय प्रभावित हुई है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में रेलवे की यात्री किराये से आमदनी वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले 155 करोड़ रुपये और माल ढुलाई से आय 3,901 करोड़ रुपये कम रही। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल – जून) में यात्री किराये से रेलवे को 13,398.92 करोड़ रुपये की आय हुई थी। दूसरी तिमाही जुलाई – सितंबर में यह गिरकर 13,243.81 करोड़ रुपये रह गई।

