उत्तर प्रदेश में रेलवे स्ट्रेशनों पर भारी भरकम दिखने वाले लोहे के ट्रंक अब बीते दिनों की बात हो जाएंगे। उत्तर रेलवे और उत्तर-पूर्व रेलवे ने अंग्रेजों के समय से चली आ रही इस सिस्टम के खत्म करने का फैसला लिया है। इस सिस्टम के तहत ट्रेन के गार्ड को ट्रेन के साथ इमरजेंसी में जरूरत पड़ने वाले सामान का बक्सा लेकर चलना होता था। इस बक्से का वजन करीब 42 किलो होता है। उत्तर पूर्व रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी संजय यादव ने कहा कि इस बदलाव से मैनपावर की बचत के साथ ही इससे होने वाली असुविधा भी दूर होगी।
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार इन गार्ड बक्सों के बदले अब ट्रेन के गार्ड कोच में एक टेंपर प्रूफ मॉर्डन लॉकर लगाए जाएंगे। अधिकारियों का कहना है कि इस बदलाव से गार्डों को इन भारी बक्से को संभालने में होने वाली परेशानी से निजात मिल जाएगी। रेलवे के इस कदम का अधिकतर गार्ड और रेलवे स्टाफ ने स्वागत किया है।
उन लोगों का कहना है कि यह बदलाव समय की जरूरत थी। उत्तर रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने कहा कि दिल्ली में इस दिशा में काम शुरू हो गया है। अन्य डिविजन में भी इसका विस्तार करने की योजना है।
हालांकि इस बात का कोई सही रिकॉर्ड नहीं है कि गार्ड बक्सा या गार्ड लाइन बॉक्स कब से सिस्टम में लाया गया लेकिन कुछ रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इस सिस्टम को 1850 के दशक में शुरू किया गया था। इस सिस्टम के अंतर्गत गार्ड को एक ट्रंक अलॉट किया जाता है। इस पर वह अपना नाम और अन्य सूचनाएं अंकित करता है।
गार्ड के लिए इस बक्से को अपने साथ रखना अनिवार्य है। हालांकि, इस बॉक्स को ट्रेन में रखने के लिए पोर्टर नियुक्त किए जाते हैं फिर भी यह कठिन काम है। ये होता है इस बॉक्स मेंः इस बॉक्स में एक मेडिकल किट, एक ग्रीन फ्लैग, दो रेड फ्लैग, ट्रेन संचालन का मैन्यूल्स, टॉर्च, हैंड सिगनल लैंप, ब्लेड बॉक्स, टिन के केस में डेटोनेटर, सीटी और बॉक्स को सुरक्षित रखने के लिए चेन के साथ ताला होता है। इसके अलावा भी इसमें अन्य सामान होता है।

