1984 में अंटार्कटिका पर भारत की पहली चढ़ाई के तुरंत बाद बर्फीले महाद्वीप पर इसका पहला डाकघर दाक्षी गंगोत्री में स्थापित किया गया था। यह वहां देश का पहला वैज्ञानिक बेस था। एक साल के अंदर इस ऐतिहासिक डाकघर में लगभग 10,000 पत्र और मेल पोस्ट किए गए और ‘रद्द’ किए गए। और इस तरह भारत की डाक बिरादरी के लिए एक “अनूठा प्रयोग” शुरू हुआ। दक्षिण गंगोत्री 1988-89 में बर्फ में डूब गया और बाद में इसे निष्क्रिय कर दिया गया। 26 जनवरी 1990 को अंटार्कटिका पर भारत के मैत्री अनुसंधान केंद्र में एक डाकघर ब्रांच स्थापित किया गया था।
तब से इन 35 से ज्यादा सालों में खाली लिफाफे में पत्र और पोस्टकार्ड ‘रद्दीकरण’ के लिए मैत्री डाकघर में भेजे जाते हैं। इनमें से अधिकतर डाक टिकट संग्रहकर्ताओं (Philatelists), संग्रहकर्ताओं और शौकीनों (Collectors and Hobbyists) के होते हैं। अंटार्कटिक रिसर्च बेस से ‘मैत्री नॉर्थ गोवा’ का चिह्न प्रसिद्ध “कलेक्टर्स आइटम” है।
डाक विभाग अंटार्कटिका में दूसरी शाखा खोलेगा
लगभग चार दशक बाद अंटार्कटिका के लिए आने वाले पत्रों में अब एक नया पिन कोड MH-1718 होगा। डाक विभाग अंटार्कटिका में भारती अनुसंधान स्टेशन पर डाकघर की दूसरी शाखा खोलेगा। अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान में दिया गया कोड “प्रयोगात्मक” है, जो एक नई शाखा शुरू होने का मानक है।
अंटार्कटिका के पत्रों को NCPOR को भेजे जाते हैं
अंटार्कटिका पर भारत के दो अनुसंधान अड्डे – मैत्री और भारती दोनों 3,000 किमी दूर स्थित हैं। ये दोनों शाखाएं विशेष रूप से गोवा पोस्टल डिविजन का हिस्सा हैं। डाक विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “आम तौर पर अंटार्कटिका में डाकघर के लिए आने वाले पत्र गोवा में भारत के ध्रुवीय अभियानों के लिए नोडल एजेंसी राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) को भेजे जाते हैं। जब महाद्वीप के लिए एक वैज्ञानिक अभियान एनसीपीओआर से रवाना होता है, तो आमतौर पर एक शोधकर्ता को पत्रों की खेप ले जाने का काम सौंपा जाता है। अनुसंधान केंद्र पर पत्रों को ‘रद्द’ कर दिया जाता है, वापस लाया जाता है और डाक के माध्यम से वापस कर दिया जाता है।’
अधिकारियों ने कहा कि ‘रद्द करना’ डाक टिकट या स्टेशनरी पर एक निशान लगाना है, जो टिकट को खत्म करने और दोबारा इस्तेमाल को रोकने के लिए किया जाता है। आमतौर पर ‘रद्द’ पत्रों में तारीख और डाकघर का स्थान शामिल होता है जहां टिकटें भेजी गई थीं। संग्राहकों के लिए वे टिकटों का मूल्य निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हैं।
अंटार्कटिका केवल वैज्ञानिक खोजे के लिए है
एनसीपीओआर के पूर्व वैज्ञानिक एम सुधाकर ने एक अन्य वजह के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि डाकघर महत्वपूर्ण क्यों है। उन्होंने कहा कि अंटार्कटिका पर अटलांटिक संधि लागू है, जो किसी भी देश के क्षेत्रीय दावों को अलग रखता है, और सैन्य गतिविधि या परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाता है और तय करता है कि महाद्वीप का उपयोग केवल वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, “आम तौर पर, एक भारतीय डाकघर केवल भारतीय भूमि के अधिकार क्षेत्र में ही हो सकता है। अंटार्कटिका एक ऐसी भूमि पर भारतीय डाकघर खोलने का अनूठा अवसर देता है जो विदेशी है और हमारी नहीं है। इसलिए यह महाद्वीप पर मौजूदगी का दावा करने के बारे में एक रणनीतिक उद्देश्य पूरा करता है।” इस अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ते हुए मुख्य पोस्टमास्टर जनरल महाराष्ट्र सर्कल केके शर्मा ने अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों से अपील की कि वे अपने परिवारों और दोस्तों को पत्र पोस्ट करना जारी रखें।
शर्मा ने कहा, “इन डाकघरों (दूरस्थ स्थानों में) को लेकर हमेशा बहुत उत्साह रहता है। आजकल व्हाट्सएप और ट्विटर ने इस सब (तकनीक) पर कब्जा कर लिया है। लेकिन लिखित शब्द को कोई हरा नहीं सकता। खासकर जब आप अपने परिवार से इतनी दूर बैठे हों। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि कृपया इस शानदार अवसर का उपयोग करें, और अपने प्रियजनों को पत्र लिखें…। आप यादें बना सकते हैं और वे भौतिक रूप में आपके साथ रहेंगी। ये सभी ई-प्रारूप तेजी से मिट जाते हैं, लेकिन आप वर्षों बाद एक पत्र देख सकते हैं और यह आपको उन यादों में वापस ले जाएगा।”
अंटार्कटिका में भारत की डाकघर शाखाओं में अधिकतर पत्र डाक टिकट संग्रह के शौकीनों और संग्रहकर्ताओं द्वारा भेजी जाती है। गोवा क्षेत्र के डाक सेवा निदेशक आर पी पाटिल ने कहा, “डाक टिकटों के संग्रहकर्ता इसे दूरस्थ डाकघर स्थान से टिकट की ‘छाप’ एकत्र करने के एक दुर्लभ अवसर के रूप में देखते हैं। डाक टिकट संग्रहकर्ताओं की ओर से पत्रों को रद्द करने की हमेशा उच्च मांग रहती है।”
एनसीपीओआर गोवा के निदेशक डॉ. थंबन मेलोथ ने कहा, “अंटार्कटिका जाने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए डाक टिकट प्राप्त करना एक अनुभव है। डाक टिकट संग्रह करने वाले समुदाय के बीच इनकी हमेशा उच्च मांग रहती है।”