प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया द्वारा प्रस्तुत एक ताजा शोधपत्र के अनुसार भारत में ‘अत्यंत गरीबी’ (Extreme Poverty) लगभग समाप्त हो चुकी है। अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सटी में प्रोफेसर पनगढ़िया के अनुसार हिन्दुओं में अत्यंत गरीबी मुसलमानों से थोड़ी ज्यादा है। सोलहवें वित्त आयोग के चेयरमैन रहे पनगढ़िया और इंटेलिंक एडवाइजर्स के संस्थापक विशाल मोरे द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया गया है और इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली (EPW) में प्रकाशित हुआ है।
इस शोध पत्र के अनुसार वर्ष 2011-12 से 2023-24 के बीच भारत में अत्यधिक गरीबी लगभग खत्म हो गई है। नए आंकड़ों के अनुसार, मुसलमानों में गरीबी दर (1.5%) हिंदुओं (2.3%) की तुलना में थोड़ी कम हुई है।
रिसर्च पेपर बताता है कि 2022-23 में भी यही अंतर देखा गया था – मुसलमानों में अत्यंत गरीबी दर 4% थी, जबकि हिंदुओं में यह 4.8% थी, यानी मुसलमानों में यह 0.8 प्रतिशत अंक कम थी। पेपर कहता है कि जब देश में अत्यधिक गरीबी लगभग खत्म हो चुकी है, तो यह धारणा कि मुसलमानों में हिंदुओं की तुलना में गरीबी ज्यादा है, कम से कम अत्यधिक गरीबी के मामले में अब सही नहीं है।
विश्व बैंक प्रति दिन तीन डॉलर से कम पर जीवनयापन को अत्यधिक गरीबी मानता है (PPP के आधार पर)। यह सीमा तेंदुलकर गरीबी रेखा के करीब मानी जाती है, जो भारत में आधिकारिक तौर पर अपनाई गई आखिरी गरीबी रेखा थी। पेपर ने सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक समूहों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी इलाकों, दोनों में गरीबी का अनुमान लगाया है। इसमें कहा गया है कि 2011-12 से 2023-24 के बीच गरीबी में गिरावट पूरे देश में बड़ी और व्यापक रही है।
सरकार के उपभोग व्यय सर्वेक्षण (2011-12, 2022-23 और 2023-24) के ताजा संशोधित डेटा का उपयोग करते हुए यह आकलन किया गया है। तेंदुलकर पद्धति के आधार पर गरीबी रेखा 2011-12 में प्रति व्यक्ति प्रति माह 932 रुपये, 2022-23 में 1,714 रुपये और 2023-24 में 1,804 रुपये मानी गई।
सर्वे में खर्च से संबंधित जानकारी अलग-अलग समय-सीमाओं में जुटाई जाती है –
- 365 दिन: कम खरीदी जाने वाली वस्तुएं
- 30 दिन: मध्यम आवृत्ति वाली वस्तुएं
- 7 दिन: अक्सर खरीदी जाने वाली चीजें जैसे भोजन, तेल, सब्जियां
पेपर के अनुसार, देश में कुल गरीबी 2011-12 के 21.9% से घटकर 2023-24 में 2.3% हो गई। यानी 12 सालों में 19.7 प्रतिशत अंकों की कमी, लगभग हर साल 1.64 प्रतिशत अंक की गिरावट।
ग्रामीण क्षेत्रों में गिरावट शहरी इलाकों से ज्यादा रही –
- ग्रामीण गरीबी 22.5 प्रतिशत अंक घटी (हर साल लगभग 1.87 प्रतिशत अंक)
- शहरी गरीबी 12.6 प्रतिशत अंक घटी (हर साल लगभग 1 प्रतिशत अंक)
सभी सामाजिक समूह – एससी, एसटी, ओबीसी और अगड़ी जाति – सबमें गरीबी में तेज गिरावट दिखी। खास तौर पर एसटी समुदाय में 2023-24 में गरीबी 8.7% रह गई।
धार्मिक आधार पर गरीबी दर इस प्रकार है –
- हिंदू: 2.3%
- मुस्लिम: 1.5%
- ईसाई: 5%
- बौद्ध: 3.5%
- सिख व जैन: 0%
इस पेपर का महत्वपूर्ण निष्कर्ष है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अत्यधिक गरीबी का अंतर लगभग खत्म हो चुका है।
- ग्रामीण इलाकों में गरीब के रूप में वर्गीकृत मुसलमान 1.6% थे, जबकि हिंदू 2.8%।
- शहरी क्षेत्रों में 2011-12 में मुसलमानों में गरीबी 20.8% थी और हिंदुओं में 12.5%।
2023-24 में यह क्रमशः 1.2% और 1% रह गई।
पेपर का कहना है कि पिछले दो दशकों में तेज आर्थिक वृद्धि ने लगभग सभी समूहों को अत्यधिक गरीबी की सीमा से ऊपर आने में मदद की है। अब अत्यधिक गरीबी ज्यादातर आदिवासी समुदायों में अधिक दिखाई देती है।
पेपर आगे बताता है कि अब देश में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में दो-अंकीय गरीबी दर नहीं दिखती है। तीन राज्य – हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और गोवा – और तीन केंद्र शासित प्रदेश – चंडीगढ़, दिल्ली और दमन-दीव – ऐसे हैं जहां गरीबी दर एक प्रतिशत से भी कम हो चुकी है।
