वित्त मंत्रालय में प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने गुरुवार (23 जनवरी, 2020) को कहा कि भारतीय इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत है। उन्होंने तर्क दिया कि इससे भारत के वास्तविक इतिहास की सराहना करने में मदद मिलेगी। FICCI में 14वां नेताजी सुभाष मेमोरियल व्याख्यान पर बोलते हुए प्रधान आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘भारत को अपने इतिहास को फिर से शुरू करने की जरूरत है, और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी के साथ शुरुआत करने के लिए इससे बेहतर जगह और क्या हो सकती है।’

उन्होंने कहा कि अगर कोई पारंपरिक या आधिकारिक इतिहास की किताबें पढ़ता है तो किसी को भी यह आभास होगा कि भारत का स्वतंत्रता संग्राम एक विशिष्ट रूप से शांतिपूर्ण था। इसका मतलब है कि हमने धीरे से अंग्रेजों को सुझाव दिया कि उन्हें मुल्क छोड़ देना चाहिए और शिष्टतापूर्वक भारत छोड़कर चले गए। मगर आजादी के मौजूदा इतिहास से हकीकत बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के सशस्त्र प्रतिरोध के बारे में एक पूरी तरह से अलग ही कहानी बताई जा रही है, जो लंबे समय से चली आ रही है।

उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा आंदोलन ने एक भूमिका नहीं निभाई। मगर एक सशस्त्र प्रतिरोध भी था। इसमें क्रांतिकारियों के सशस्त्र प्रयासों को नकार देना कहीं से भी ठीक नहीं है। उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र करते हुए कहा कि वे सब एक तरह से एक ही तरीके से अंग्रेजी हुकूमत के विरोध के लिए उठे थे। जिसके बाद झारखण्ड में बिरसा मुंडा और मणिपुर में 1888-89 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ।

इसके बाद भी आजादी के लिए कई तरह के प्रयास किए गए मगर वो बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए मगर उन्होंने एक पैटर्न उपलब्ध कराया। लगभग इसी समय सावरकर ने बताया कि 1857 में जो तरीका अपनाया गया, भारत की आजादी के लिए वहीं सर्वक्षेष्ठ था।

इस दौरान जब सान्याल से जब पूछा गया कि वो इतिहास को दोबारा लिखे जाने पर जोर दे रहे हैं मगर पिछले करीब छह सालों से केंद्र में वही सरकार है जिसके साथ वो काम कर रहे हैं तो इतिहास का पुनर्लेखन कब होगा? उन्होंने कहा कि इतिहास लेखन बहुत विस्तृत काम है और इसे एकाएक नहीं किया जा सकता।