जगजाहिर है कि चीन की कथनी-करनी में फर्क है। ऐसे में सीमा पर शांति बहाली को लेकर उसकी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता है। बीते कई सालों में चीनी सेना ने एलएसी पर इसे साबित भी किया है। सीमा पर आए दिन चीन ऐसे हथियारों का प्रयोग करता है जो गैर-पारंपरिक हैं। ऐसे में अब भारतीय सेना भी उसे जैसे को तैसा जवाब देने के लिए तैयार है। दरअसल सीमा पर सैन्य क्षमता के प्रयोग की मनाही के बीच चीनी सेना लाठी-भाले, डंडा और रॉड से हमला कर रही है।

चीनी सेना की इस नीति से निपटने के लिए भारतीय सेना भी ऐसे हथियारों से लैस हो गई है, जिससे बिना शांति समझौता तोड़े चीनी सेना को जवाब दिया जा सके। बता दें कि सेना के पास अब वज्र, त्रिशूल, सैपर पंच, भद्र और दंड जैसे हथियार होंगे।

जानिए इन हथियारों की खासियत

दंड: भारतीय सेना के पास बिजली से चलने वाला एक दंड होगा, जो 8 घंटे तक चार्ज रह सकता है। ये वाटरप्रूफ़ भी है। इससे वार करने पर तेज झटका लगता है।

सैपर पंच: यह बिजली से चलने वाला ग्लव या दस्ताना है। जो दुश्मन पर पंच मारने के काम आता है। यह भी बिजली से चार्ज होगा और क़रीब 8 घंटे तक चार्ज रहेगा। इस वाटरप्रूफ़ सैपर पंच को शून्य से 30 के तापमान में काम में लाया जा सकता है।

भद्र: यह एक तरीके का बिजली से चलने वाली ढाल है। जिसे आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाला करंट दुश्मन को जोर का झटका देता है।

त्रिशूल– त्रिशूल को भगवान शिव का हथियार माना जाता है। सेना को मिले इस आधुनिक त्रिशूल में करंट दौड़ेगा, जो दुश्मन के होश ठिकाने लगा देगा। इसकी नोक बेहद पैनी होती है, जोकि दुश्मन के शरीर से पलभर में आर-पार हो जाती है। इसको चलाने के लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है।

वज्र: वज्र एक तरह से मेटल की लाठी है, जिसमें दुश्मन को झटका देने के लिए करंट दौड़ती है। इसमें प्रवाहित होने वाली बिजली दुश्मन को बेहोश भी कर सकती है।

बता दें कि 15-16 जून 2020 की रात गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुए हिंसक झड़प में चीन के सैनिकों ने कीलदार लोहे की रॉड से हमला किया था। ऐसे में अब भारतीय सेना भी उन्हें जवाब देने के लिए इस तरह के हथियारों से लैस होगी।

इन हथियारो को लेकर सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं। पत्रकार रोहिणी सिंह ने इन हथियारों को लेकर तंज कसते हुए लिखा कि, चीन ने हाल ही में परमाणु सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया है। इस बीच, भारत में नवीनीकरण का यह स्तर है।

वहीं पत्रकार साक्षी जोशी ने इन हथियारों को लेकर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दी है

भारत-चीन समझौता: बता दें कि एलएसी पर बने तनाव को देखते हुए 29 नवंबर 1996 को दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था कि, “दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के ख़िलाफ़ किसी तरह की ताक़त का प्रयोग, या धमकी नहीं देंगे। इसके अलावा समझौते में कहा गया था कि, एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में कोई भी पक्ष जैविक हथियार, गोलीबारी, या हानिकारक केमिकल का प्रयोग अपनी शक्ति दिखाने के लिए नहीं करेगा। यहां तक कि ब्लास्ट ऑपरेशन या बदूंक़ों और विस्फोटकों से किसी पर हमला भी नहीं करेगा।”

इस समझौते से पहले 1993 में भी एक समझौता हुआ था, जिसके अनुसार, भारत-चीन सीमा विवाद का हल शांतिपूर्ण निकालने के लिए बातचीत का सहारा लेंगे। हालांकि चीन इन सभी समझौतो पर दगाबाजी करता आया है। और आधुनिक हथियारों की जगह लाठी-भाले, डंडा और रॉड से हमला कर रहा है।